‘अफगानिस्तान में बाइडेन को मिलने वाली विरासत’

punjabkesari.in Tuesday, Dec 08, 2020 - 04:04 AM (IST)

9 सितम्बर 2001 को अमरीका पर हुए आतंकी हमले के मद्देनजर अमरीकी तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू. बुश ने 7 अक्तूबर 2001 को आप्रेशन एंड्यूरिंग फ्रीडम को हरी झंडी दे दी। इसका उद्देश्य तालिबान और अल कायदा से अफगानिस्तान का छुटकारा पाना था। 17 महीनों के लिए बुश-चिनाय-रम्सफील्ड के तहत तत्कालीन अमरीकी प्रशासन ने उस युद्ध को बहुत तेजी से आगे बढ़ाया। तबाह देश को और तबाह कर दिया गया। यह कार्रवाई तब तक चलती रही, जब तक कि तालिबान और अल कायदा का नेतृत्व पाकिस्तान और यहां तक कि ईरान भाग न गए। ब्लैक साइट्स, वाटर बोॄडग, रैनडीशन तथा ग्वांटेनामो कुछ ऐसे नए शब्द थे जो दुनिया भर के लोगों के रोजमर्रा जीवन में प्रवेश कर गए। 

20 मार्च 2003 को अमरीका ने ईराक पर हमला बोला और इसके तुरंत बाद अफगानिस्तान बुश प्रशासन के लिए एक जल क्षेत्र बन गया। जनवरी 2008 में जब बुश ने कार्यालय संभाला तब अफगानिस्तान में अमरीकी सैनिकों की संख्या 47,000 थी। वहां पर 50 हजार से अधिक नाटो सैनिक तथा अफगान नैशनल आर्मी के 70 हजार सैनिक थे। हालांकि यह मिशन योजना के तहत सफल न हुआ। 22 दिसम्बर 2001 को हामिद कारजेई के पदभार संभालने के दौरान और नागरिक प्रशासन होने के बावजूद अफगानिस्तान सरकार और वहां पर गठबंधन सेना की पकड़ सबसे बेहतर स्थिति में थीं। 

बराक ओबामा को युद्ध विरासत में मिला। डैमोक्रेटिक राष्ट्रपति पद के नामित उम्मीदवार ओबामा ने 19 जुलाई, 2008 को अफगानिस्तान की यात्रा की। उन्होंने ईराक में अमरीकी भागीदारी तथा अफगानिस्तान में अमरीकी सेना की भागीदारी के बीच एक अंतर बना दिया। फरवरी 2009 में ओबामा ने अमरीकी सैनिकों की संख्या में 21 हजार की वृद्धि की, जिसमें चार हजार सैन्य प्रशिक्षक शामिल थे। इसके 10 महीने बाद पैंटागन तथा जमीनी कमांडर के दबाव के आगे झुकते हुए ओबामा ने अफगानिस्तान में 30 हजार सैनिकों की वृद्धि की घोषणा कर डाली। इसके अलावा 40 हजार नाटो सैनिक पहले से ही उस देश में अपनी ड्यूटी निभा रहे थे। अमरीकी सैनिकों की कुल गिनती एक लाख हो गई। 

हालांकि स्थिति स्थिर नहीं हुई और तालिबान जमीन पर कायम रहे। हालांकि देश की ओर से इसकी पकड़ कम होती गई लेकिन इसका पूरा प्रभाव बढ़ता चला गया। 28 दिसम्बर, 2014 को अमरीका तथा नाटो का अफगानिस्तान में युद्ध अभियान समाप्त हुआ। इसके बाद आप्रेशन फ्रीडम सैंटीनल और नाटो के नेतृत्व वाले संकल्प समर्थन की शुरूआत की गई। इसका मुख्य उद्देश्य  आतंकवाद विरोधी समूहों को संचालित करने के लिए अल कायदा और इसके स्थानीय सहयोगी आई.एस.आई.एस. जैसे आतंकी समूहों को निशाना बनाना था। इसके अलावा तालिबान से लडऩे में मदद के लिए स्थानीय अफगान सुरक्षा के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना था। 

बराक ओबामा ने डोनाल्ड ट्रम्प को अफगान युद्ध सौंप दिया जिन्होंने अपने 2016 के चुनावी अभियान के दौरान अफगानिस्तान में अमरीका की निरंतर उपस्थिति की भारी आलोचना की थी। हालांकि 21 अगस्त 2017 को अपने कार्यकाल के 8वें महीने में उन्होंने फोर्ट मायर में घोषणा की, ‘‘मैं अफगानिस्तान में अमरीका के मूल हितों के बारे में तीन मूलभूत निष्कर्षों पर पहुंचा हूं। सबसे पहले हमारे देश के जबरदस्त बलिदानों, सम्माननीय और स्थायी परिणाम की तलाश करनी चाहिए जो किए गए हैं। विशेष रूप से जीवन के बलिदान के रूप में। 

9/11 हमारे इतिहास में सबसे खराब आतंकी हमला था, जो अफगानिस्तान से योजनाबद्ध और निर्देशित था क्योंकि उस देश में एक ऐसी सरकार का शासन था जिसने आतंकवादियों को आराम और आश्रय दिया था। जल्दबाजी में अमरीकी सैनिकों की वापसी एक वैक्यूम को बना देगी जिसे आई.एस.आई.एस. तथा अल कायदा तुरंत ही भर देंगे, जैसा कि 11 सितम्बर को हुआ था। तीसरा और अंत में मैंने निष्कर्ष निकाला है कि अफगानिस्तान में हम जिस सुरक्षा खतरे का सामना कर रहे हैं, वह एक विशाल और व्यापक क्षेत्र है। आज 20 अमरीकी नामित विदेशी आतंकी संगठन अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान में सक्रिय हैं। दुनिया में कहीं भी किसी क्षेत्र में इन दोनों देशों पर अधिक एकाग्रता रखी गई है।’’ 

एक साल बाद 21 सितम्बर 2018 को उन्होंने तालिबान के साथ एक समझौते की कोशिश करने के लिए अमरीकी विशेष प्रतिनिधि के रूप में राजदूत जल्मेई खलीलजाद को नियुक्त किया। 29 फरवरी 2020 को खलीलजाद और मुल्ला अब्दुल गनी ने दोहा में अफगानिस्तान में शांति लाने के समझौते पर हस्ताक्षर किए। काबुल में सरकार के बीच अंतर अफगान वार्ता 12 सितम्बर को शुरू हुई। तालिबान के साथ बात की राजनीतिक भूमिका निभाने के लिए इसे शुरू किया गया था। समवर्ती हिंसा के स्तर घटने की बजाय बढ़ रहे हैं। अक्तूबर 2020 में अफगानिस्तान में कम से कम 369 सरकारी समर्थक तथा 2012 अन्य नागरिकों को मार डाला गया। यह सितम्बर 2019 के बाद से एक महीने में उच्चतम नागरिक मृत्यु का आंकड़ा है। 

यह वह स्थिति है जो बाइडेन को विरासत में मिली है। एक पत्रिका के अंश में उन्होंने कहा, ‘‘यह हमेशा के लिए युद्ध को समाप्त करने का अतीत है।’’ हालांकि यह कहना आसान है कि अगर बाइडेन तालिबान के साथ अमरीकी सैनिकों की संख्या 2500 से नीचे लाने की दोहा निकास योजना से चिपके रहते हैं तो सौदेबाजी का अंत नहीं होने के कारण यह संदिग्ध है कि क्या अशरफ गनी सरकार पकड़ में आ सकेगी। अमरीका ने जो अपना खून खर्च किया है, वह क्या व्यर्थ चला जाएगा।-मनीष तिवारी


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