बाइडेन ने ठोकी जेलेंस्की की पीठ

punjabkesari.in Wednesday, Feb 22, 2023 - 04:35 AM (IST)

अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की यूक्रेन यात्रा ने सारी दुनिया को आश्चर्यचकित कर दिया है। वैसे पहले भी कई अमरीकी राष्ट्रपति, जैसे जॉर्ज बुश, बराक ओबामा और डोनाल्ड ट्रम्प ईराक और अफगानिस्तान में गए हैं, लेकिन उस समय तक इन देशों में अमरीकी फौजों का वर्चस्व कायम हो चुका था लेकिन यूक्रेन में न तो अमरीकी फौजें हैं और न ही वहां युद्ध बंद हुआ है। वहां अभी रूसी हमला जारी है। दोनों देशों के डेढ़ लाख से ज्यादा सैनिक मर चुके हैं। हजारों मकान ढह चुके हैं और लाखों लोग देश छोड़ कर परदेस भागे चले जा रहे हैं।

यूक्रेन फिर भी रूस के सामने डटा हुआ है। आत्मसमर्पण नहीं कर रहा। इसका मूल कारण अमरीका का यूक्रेन को खुला समर्थन है। अमरीका के समर्थन का अर्थ यह नहीं है कि वह यूक्रेन को सिर्फ डॉलर और हथियार दे रहा है, उसकी पहल पर यूरोप के 27 नाटो राष्ट्र भी यूक्रेन की रक्षा के लिए कमर कसे हुए हैं। बाइडेन तो युद्ध शुरू होने के साल भर बाद यूक्रेन पहुंचे हैं लेकिन फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, जर्मन चासंलर ओलफ शुल्ज, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन और ऋषि सुनक भी यूक्रेन की राजधानी कीव जाकर वोलोदोमीर जेलेंस्की की पीठ थपथपा आए हैं।

राष्ट्रपति बाइडेन का कीव पहुंचना इसलिए भी आश्चर्यजनक रहा कि इस समय रूसी हमला बहुत जोरों पर है और बाइडेन के जीवन को कोई भी खतरा हो सकता था। इसीलिए यह यात्रा बिल्कुल गोपनीय रही लेकिन अमरीकी शासन ने यात्रा के कुछ घंटे पहले मास्को को चेताया कि बाइडेन कीव जा रहे हैं ताकि इस युद्ध को समाप्त किया जा सके। लेकिन बाइडेन ने वहां जाकर क्या किया? जेलेंस्की की पीठ ठोकी और 500 मिलियन डॉलर के हथियार और सौंप दिए। इसके अलावा उन्होंने रूस और चीन को चेतावानियां दे डालीं।

अमरीकी प्रवक्ता ने चीन पर आरोप लगाया कि वह रूस को हथियार सप्लाई कर रहा है। चीन ने इस आरोप को रद्द कर दिया और अमरीका से कहा कि वह यूक्रेन को भड़काने की बजाय समझाने का काम करे। अमरीका के भी कुछ रिपब्लिकन नेता बाइडेन की नीतियों को गलत बता चुके हैं। मुझे संदेह है कि बाइडेन ने जेलेंस्की को कई ऐसे सुझाव दिए होंगे, जिनसे यह युद्ध बंद हो सके। वास्तव में विश्व महाशक्ति बनते हुए चीन से अमरीका ने ऐसा पंगा ले रखा है कि वह इस युद्ध को चलते रहते ही देखना चाहता है। इससे अमरीका का शस्त्रास्त्र उद्योग भी परम प्रसन्न रहता है। इस मौके पर भारत की भूमिका बेजोड़ हो सकती है, लेकिन भारत के पास उस स्तर का कोई नेता या कोई कूटनीतिज्ञ होना जरूरी है। -डा. वेदप्रताप वैदिक


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