कर्नाटक में चुनावी मुकाबला सिद्धरमैया तथा भाजपा-जनता दल (एस) के बीच

Sunday, Apr 08, 2018 - 03:13 AM (IST)

हर मामले में कर्नाटक में स्पर्धा अभी भी व्यापक खुली है। यह किसी भी तरफ जा सकती है। यदि गत वर्ष पंजाब के विधानसभा चुनावों में कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने अपनी पताका फहराई और एक तरह से कांग्रेस उच्च कमान को हाशिए पर कर दिया, कर्नाटक में नियंत्रण सिद्धरमैया के हाथ में है जहां राहुल गांधी तथा अन्य कांग्रेसी नेताओं को द्वितीय स्तर की भूमिका निभाने को मजबूर कर दिया गया है। 

संभवत: राज्य तथा केंद्रीय नेतृत्व के बीच भूमिकाओं का बदलाव पार्टी के भीतरी लोकतंत्र को स्वस्थ बनाएगा मगर यह गौरवशाली पुरानी पार्टी के पहले परिवार की आकर्षण शक्ति धूमिल होने को भी रेखांकित करता है। इसका राजनीति में अब पहले वाला ध्रुवीय स्थान नहीं है और संभवत: आने वाले लम्बे समय में नहीं होगा। दरअसल कर्नाटक में राहुल की जोशीली जनसभाओं और एक मठ से दूसरे मठ का दौरा करने के बावजूद वह मतदाताओं में जोश भरने में असफल रहे। एक दिन वह शिमोगा में, जो मध्य कर्नाटक का एक प्रमुख शहर है, जहां इतने कम लोग आए थे कि वह अपना आपा खो बैठे और सारा गुस्सा पार्टी कार्यकत्र्ताओं पर निकाल दिया कि उन्होंने लोगों को एकत्रित करने में पर्याप्त मेहनत नहीं की। बढ़ते तापमान को एक घटिया बहाने के तौर पर खारिज कर दिया गया। यद्यपि कोई भी नेता उन्हें यह कहने की हिम्मत नहीं दिखा सका है कि उनमें लोगों को आकर्षित करने के करिश्मे का अभाव है। 

इसके विपरीत सिद्धरमैया की तुलना में विपक्षी मुख्यमंत्री उम्मीदवार बी.एस. येद्दियुरप्पा को भाजपा की राज्य इकाई में पहले लोगों की कतार में बैठे लोगों के बराबर देखा जा रहा है। जहां अमित शाह तथा संघ-भाजपा की चुनावी मशीनरी पूरी तरह से गतिशील है। येद्दियुरप्पा ढीली गांठों को बांधने में व्यस्त हैं। वह जमीनी स्तर की कार्रवाइयों का प्रबंधन करते हुए जाति तथा समुदाय संबंधी विरोधाभासों के बारे में बेशकीमती सूचनाएं उपलब्ध करवा रहे हैं। नि:संदेह वह मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बने रहे हैं मगर चुनावी प्रयासों का नेतृत्व शाह कर रहे हैं और कांग्रेस उच्च कमान के विपरीत भाजपा के पास प्रधानमंत्री के रूप में एक विजेता शुभंकर है। एक बार जब मोदी पूरी तरह से खुद को चुनावी अभियान में झोंक देंगे तो भाजपा को संतुलन 50:50 में होने की उम्मीद है जो वर्तमान में 70:30 है, विशेषकर तब जब राहुल सिद्धरमैया का मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं। 

इसी बीच कुछ रोचक संघर्ष देखने को मिलने वाले हैं। ऐसा दिखाई देता है कि पूर्व प्रधानमंत्री तथा जनता दल (एस.) प्रमुख एच.डी. देवेगौड़ा, जो खुद को एक विनम्र किसान बताते हैं, संभवत: सिद्धरमैया को चुनौती दे सकते हैं जबकि येद्दियुरप्पा के बेेटे बी.वाई. विजयेंद्र के सिद्धरमैया के बेटे यतीन्द्र के खिलाफ लडऩे की संभावना है। सिद्धरमैया को नीचा दिखाने के लिए भाजपा तथा जद (एस.) के बीच एक समझ से इंकार नहीं किया जा सकता, यद्यपि अन्यथा यह एक त्रिकोणीय संघर्ष हो सकता है। स्मृति ईरानी के स्व-निर्धारित लक्ष्य स्मृति ईरानी को यह जानकर यदि हैरानी हो कि केवल पत्रकार ही फर्जी खबरें फैलाने में सक्षम नहीं हैं, स्मार्ट फोन वाले लाखों-करोड़ों भारतीय आसानी से वह काम कर सकते हैं जो नई दिल्ली में बैठा कोई भी पत्रकार कर सकता है। कोई ऐसा प्रयास क्यों करें जो संभव नहीं है। कम से कम तब तक जब तक सोशल मीडिया एक मुक्त मंच बना हुआ है और एक इंटरनैट कनैक्शन के माध्यम से हर किसी को उपलब्ध है।

टुम्बकटू में बैठा कोई भी व्यक्ति बस दो पंक्तियां पंच करके डर या खुशी का माहौल पैदा कर सकता है जो इस बात पर निर्भर करता है कि आप कहां हैं और आप किसका समर्थन करते हैं और उसके लिए प्रैस इंफॉर्मेशन ब्यूरो द्वारा मान्यता प्राप्त होने की भी जरूरत नहीं है और शायद न ही कानून के प्रति जवाबदेह होने की। इंटरनैट अधिकतर आपको चालबाजियां करने देता है और वह भी आपकी पहचान छुपाए हुए। ईरानी के साथ समस्या यह है कि वह हमेशा यह साबित करने का प्रयास करती हैं कि जो वह कर रही हैं वह उसे जानती हैं कि हर किसी के लिए क्या सर्वश्रेष्ठ है मगर इस प्रक्रिया में गलती हो जाती है। मानव संसाधन विकास मंत्री के नाते उन्होंने शिक्षा प्रणाली में कोई बदलाव किए बिना कई प्रयास किए। कपड़ा मंत्री के तौर पर एक बार फिर उन्होंने कई बार पंख फडफ़ड़ाए और अब सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की प्रभारी होने के नाते उन्होंने बिना किसी जरूरत के अधिकारियों को इधर से उधर हिला दिया। 

फर्जी समाचारों के मामले में वह परिणामों को सोचे बगैर आगे बढ़ गईं, सोशल मीडिया बारे नीति की असम्भवता तथा इस बात पर ध्यान न देते हुए कि अमरीका में वे अभी भी इस बात का समाधान नहीं खोज पाए कि अपनी चुनावी प्रक्रिया में पुतिन के हैक्स जैसी खामियों को कैसे रोका जाए? ईरानी एक सैल्फ मेड महिला हैं और उनके पास कई टेलैंट हैं मगर यह उनकी हीनभावना है जो उन्हें उन पर निर्भर रहने को प्रेरित करती है जो उनके अहं पर हमला करके उनकी असुरक्षाओं को बढ़ावा देते हैं। एक विश्वस्त व्यक्ति को किसी डोमेन एक्सपर्ट से सलाह लेने में कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए जो इस व्यवसाय में सर्वश्रेष्ठ दिमाग होते हैं और उन्हें यह भी पता होना चाहिए कि कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसे हर चीज के बारे में सब कुछ पता हो। अन्यों से सलाह लेने में कोई शर्म नहीं होनी चाहिए। उन्हें अपने खुद के निर्धारित किए लक्ष्यों से बचने के लिए अपनी निर्णय लेने की क्षमता को प्रखर बनाना चाहिए।-वरिन्द्र कपूर                       
                    

Pardeep

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