महंगाई काबू करने से पहले इन 4 बहानों पर काबू पाएं

punjabkesari.in Tuesday, May 24, 2022 - 04:35 AM (IST)

आखिर सरकार ने महंगाई की सच्चाई को स्वीकार कर ही लिया। क्या अब सरकार महंगाई के यहां तक पहुंचने में अपनी जिम्मेदारी भी स्वीकार करेगी? बीमारी को काबू करने से पहले मोदी सरकार को उन 4 बहानों को काबू करना होगा, जिनके सहारे उसने अब तक अपनी जिम्मेदारी टाली है। महंगाई के कड़वे सच का सामना करना इस संकट के समाधान का पहला कदम होगा। 

पहला बहाना : ‘महंगाई तो हमेशा घटती-बढ़ती रहती है। जैसे चढ़ी है, वैसे उतर जाएगी। कोई चिंता की बात नहीं है।’ इस बहाने का भंडाफोड़ खुद सरकार के आंकड़े कर चुके हैं। पिछले सप्ताह जारी मुद्रास्फीति के आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2021 से 2022 के बीच महंगाई का थोक सूचकांक 15.1 प्रतिशत और उपभोक्ता सूचकांक 7.8 प्रतिशत बढ़ा था। उपभोक्ता सूचकांक में घरेलू इस्तेमाल की वस्तुओं (खाना, कपड़ा, पैट्रोल, सेवाएं आदि) के दाम शामिल किए जाते हैं, जबकि थोक सूचकांक में उद्योग और व्यापार में इस्तेमाल की जाने वाली वस्तुओं (स्टील, बिजली, रसायन, धातु, औद्योगिक उत्पाद आदि) के थोक दाम भी शामिल किए जाते हैं। 

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि घरेलू खर्च में इतनी महंगाई 2013 के बाद पहली बार हुई है, जबकि थोक वस्तुओं की महंगाई 1991 के बाद से पिछले 30 साल में इतनी अधिक कभी नहीं हुई। सरकार के अपने कानून के हिसाब से यह महंगाई उपभोक्ता सूचकांक में 6 प्रतिशत की अधिकतम स्वीकार्य सीमा से बहुत ऊपर जा चुकी है। आटा, सब्जी, रसोई का तेल, कैरोसिन, गैस आदि की महंगाई गरीब का जीवन दूभर कर रही है। रिजर्व बैंक की महंगाई रोकने वाली समिति (एम.पी.सी.) कई महीनों से इस पर चिंता व्यक्त कर रही है। सभी अर्थशास्त्री कह रहे हैं कि मामला यहां रुकने वाला नहीं, अभी महंगाई और बढ़ेगी। 

दूसरा बहाना : ‘यह महंगाई यूक्रेन युद्ध की वजह से है। महंगाई पूरी दुनिया में है, भारत की क्या बिसात।’ यह बात पूरी तरह झूठ नहीं है, लेकिन ऐसा अर्धसत्य है, जो हमें भ्रमित कर सकता है। इसमें कोई शक नहीं कि यूक्रेन युद्ध की वजह से दुनिया भर में सप्लाई चेन बाधित हुई हैं और महंगाई बढ़ी है, लेकिन भारत के सरकारी आंकड़े साफ करते हैं कि हमारे यहां महंगाई का थोक सूचकांक यूक्रेन युद्ध से बहुत पहले पिछले 13 महीनों से 10 प्रतिशत का आंकड़ा पार कर चुका था। युद्ध की वजह से दुनिया में खाद्यान्न का दाम बढ़ा है, लेकिन इसका कोई असर भारत पर नहीं पडऩा चाहिए था, क्योंकि हम गेहूं विदेश से आयात नहीं करते। 

तीसरा बहाना : ‘अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम अचानक बढ़ गए, जिससे हमारे यहां भी डीजल, पैट्रोल, गैस और उसके चलते बाकी चीजों के दाम भी बढ़े।’ यह बात सरासर झूठ है। सच यह है कि मई 2014 में जब नरेंद्र मोदी ने पहली बार प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी, उस वक्त अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का दाम 106 रुपए प्रति बैरल था। फिर कई साल तक दाम बहुत गिरे और पिछले कुछ समय से वापस चढ़े।

आठ साल बाद मई 2022 में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का दाम फिर से बराबर 106 रुपए प्रति बैरल ही है। लेकिन इस बीच पैट्रोल का दाम 71 रुपए से बढ़कर 102 रुपए (कटौती के बाद 97 रुपए), डीजल का दाम 55 रुपए से बढ़कर 96 रुपए (कटौती के बाद 90 रुपए) और गैस सिलैंडर का दाम 410 रुपए से बढ़कर 1000 रुपए हो गया है। मतलब यह कि पैट्रोल, डीजल और गैस के दाम में बढ़ौतरी की वजह अंतर्राष्ट्रीय बाजार नहीं, बल्कि केंद्र सरकार और कुछ हद तक राज्य सरकारों द्वारा बढ़ाए गए टैक्स हैं। वर्ष 2014 में केंद्र सरकार पैट्रोल पर टैक्स से 99,000 करोड़ रुपए कमाती थी, जो 2021 में बढ़कर 3,72,000 करोड़ रुपए हो गए। 

चौथा और सबसे बड़ा बहाना : ‘महंगाई रोकने के लिए सरकार जो कुछ कर सकती थी उसने किया है। हाल ही में रिजर्व बैंक में ब्याज की दर बढ़ाई है और केंद्र सरकार ने पैट्रोलियम पदार्थों पर टैक्स घटा दिए हैं। इससे ज्यादा सरकार क्या कर सकती है?’ सच यह है कि मोदी सरकार ने महंगाई को हल्के में लिया, शुरूआती चेतावनी को नजरअंदाज किया और इसे काबू करने की हर कोशिश में अड़ंगा लगाया। 

हाल ही में ‘रिपोर्टर्स कलैक्टिव’ नामक समूह ने रिजर्व बैंक की मॉनीटरी पॉलिसी कमेटी के कामकाज को लेकर सनसनीखेज खुलासे किए हैं। सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त किए इन कागजात से पता लगा है कि वित्त मंत्रालय ने 2019 और 2020 में महंगाई रोकने के लिए बनी समिति के काम में गैरकानूनी तरीके से दखल दिया और उद्योगपतियों के हितों की रक्षा के लिए ब्याज की दर बढ़ाने की सिफारिश को लागू नहीं होने दिया। यही नहीं, वित्त मंत्रालय के एक दस्तावेज में यह दावा किया गया कि महंगाई के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इसका असर गरीबों पर नहीं, चंद अमीरों पर पड़ेगा। 

सच यह है कि इस मन:स्थिति के चलते सरकार ने महंगाई को रोकने में बहुत देरी कर दी। आज देश सरकार की इस कोताही का फल भुगत रहा है। अब भी सरकार ने जो कदम उठाए हैं, वे पर्याप्त नहीं हैं। पैट्रोलियम पदार्थों पर टैक्स की जो कटौती हुई है, वह पिछले कुछ हफ्तों की बढ़ौतरी को मुश्किल से बराबर करती है। आज भी केंद्र सरकार 2014 की तुलना में पैट्रोल पर दोगुना और डीजल पर 4 गुना ज्यादा टैक्स वसूल रही है। आज भी सरकार  पर्याप्त गेहूं खरीद कर आटे के दाम को नियंत्रित नहीं कर पा रही। आज भी रिजर्व बैंक ब्याज की दरें बढ़ाने में देरी कर रहा है। देखना है कि देरी से आने के बाद सरकार की चेतना दुरुस्त होने में अभी कितना वक्त लगेगा।-योगेन्द्र यादव
 


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