क्योंकि मैंने कोई गलती नहीं की

punjabkesari.in Monday, Jun 14, 2021 - 05:34 AM (IST)

क्या आप जानते हैं कि जब मैंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपनी वैक्सीनेशन नीति में गड़बड़ के चलते उन्हें तड़पते देखा तो मुझे किसकी याद आई? एक कपटी चालबाज को उसकी जेब तराशने की कला पर नहीं बल्कि उसकी चकमा देने की कला पर हैरानी होती है। 

जिस तरह से मोदी ने ताना बुना और डुबकी लगाई उससे मैं उनकी योग्यता को देख कर वाकई में प्रशंसा करता हूं। जहां पर थोड़ा बाकी था वहां पर उन्होंने पूरे श्रेय का दावा किया और जहां पर तर्क की जरूरत थी वहां उन्होंने दोष को नकार दिया। चीजों को अलग दिखाने के प्रयास में जिसे हम सत्य मानते हैं वह अपने आप में एक कला है। यदि हम वास्तविकता के बारे में नहीं जानते तो मोदी शायद इससे दूर हो गए हैं। 

सच्चाई तीन महत्वपूर्ण बातों को लेकर है जिसे मोदी ने सोमवार को यू-टर्न लेते हुए घोषित किया। उनकी वास्तविक नीति 45 वर्ष की आयु के नीचे के लोगों के लिए वैक्सीन की थी। सुप्रीमकोर्ट ने इसे ‘मनमाना और तर्कहीन’ बताया। यह शायद इससे भी ज्यादा थी। आप यह भी तर्क दे सकते थे कि इसने हमारे संविधान द्वारा आश्वस्त किए गए मूल अधिकारों को भी तोड़ा है। यह आर्टिकल-14 और आॢटकल 21 के विरुद्ध है। इसलिए मैं आश्चर्यचकित नहीं हूं कि इसे पलट दिया गया। नहीं तो सुप्रीमकोर्ट इसे किसी एक की शक्ति से परे की गई बात के तौर पर बता सकती थी। 

मोदी सरकार उन जरूरतों से भी दूर हो गए जिसके तहत राज्यों को उसी वैक्सीन के लिए केंद्र से ज्यादा अदा करना चाहिए था। उन्होंने कभी भी व्या या नहीं की कि वह क्यों 18 से 44 साल के मध्य के लोगों को उनकी वैक्सीन के लिए अदा करना चाहते हैं। इसी तरह मोदी ने राज्य सरकारों को ऊंची कीमतों को अदा करने के लिए किसी भी समर्थन का प्रस्ताव नहीं दिया। मनमाना और तर्कहीन से ज्यादा इसे और अधिक गलत समझा गया। यदि उन्होंने इसे पलटा न होता तो मुझे कहने में कोई हिचकिचाहट न होती कि इसने मार ही डाला होता। 

मोदी का तीसरा यू-टर्न निजी अस्पतालों के उन अधिकारों से संबंधित है जिसके तहत वह मरीजों से उस  कीमत को चार्ज करें जो वैक्सीन के लिए एक उचित शुल्क समझते हों। मोदी ने 150 रुपए अलग से जोड़े हैं। यह बात टीका लगाने वाले को तो खुश कर सकती है मगर टीका लगवाने वाले को खुश नहीं कर सकती। यहां पर पुरानी नीति का एक और पहलू है जो जारी रहता दिखाई प्रतीत होता है जिसके तहत टीका लगवाने के लिए कोविन पर 44 साल के नीचे की आयु के लोगों को अपना पंजीकरण करवाना अपेक्षित है। 

ग्रामीण क्षेत्रों में यह एक बेहद गंभीर समस्या हो सकती थी। जैसा कि सुप्रीमकोर्ट ने कहा है क्या यह वास्तविक तौर पर निश्चित है कि ग्रामीण क्षेत्र के लोग कोवैक्सीन पर अपना पंजीकरण करवाएं? हालांकि अभी तक मोदी ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया नहीं दी मगर मैं आशा करता हूं कि प्रधानमंत्री इसका जवाब शीघ्र ही देंगे जो एक अन्य यू-टर्न हो सकता है। अब यदि आप मुझसे मोदी के परिवर्तन के बारे में सवाल करेंगे तो वह सुप्रीमकोर्ट के निकटस्थ खतरे में होंगे क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय उनकी नीति के कुछ तत्वों को असंवैधानिक घोषित कर सकती है। मोदी के लिए यह बेहद शॄमदगी वाली बात होगी। 

पिछले सोमवार को मोदी ने अपने आपको हमारे रक्षक के तौर पर पेश किया। उन्होंने कहा कि वह हमें राज्य सरकारों की मूर्खता से बचा रहे थे। जोकि असमान और अक्षम थी। मोदी ने अराजकता, परेशान और असंगत होने वाली नीति से ज्यादा एक कुशल कार्य करने वाली नीति के तौर पर बदल दिया। 

यह उनकी ताकत और दृढ़ता के बारे में सुझाव नहीं देती बल्कि यह तो कमजोरी और अस्थिरता को उजागर करती है। यदि उनकी व्याख्या सही है तो उन्हें दृढ़ता से उन चीजों को नकारना चाहिए जो राज्य सरकारें चाहती थीं। इसके बावजूद मोदी ने यह सब कुछ दे दिया। अंत में मैं यही लाइन लिखूंगा कि, ‘‘मैंने कोई गलती नहीं की मुझे इसे करने के लिए कहा गया।’’-करण थापा


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