विराट कोहली के पिता जैसे बनो

Tuesday, Mar 29, 2016 - 01:29 AM (IST)

(राबर्ट क्लीमैंट्स): यदि विराट कोहली के पिता ने स्वर्गलोक से नीचे देखा होगा तो अपने बेटे को आस्ट्रेलियनों की धुनाई करते देख बहुत चैन की सांस ली होगी और खुुद को गौरवान्वित महसूस किया होगा। विराट के पिता प्रेम कोहली एक फौजदारी वकील थे और उनकी मृत्यु तब हो गई जब विराट 18 वर्ष के ही थे, लेकिन इस असमय मृत्यु से पूर्व ही वह अपने पुत्र के क्रिकेट कौशल को विकसित करने के लिए बहुत अधिक समय और पैसे का निवेश कर चुके थे। 

 
यह लड़का अभी 9 वर्ष का ही था जब पश्चिम दिल्ली क्रिकेट अकादमी का सृजन हुआ था। विराट के पिता जी उसे वहां लेकर गए थे। जब वह 9वीं कक्षा में पहुंचा तो उसके पिता ने उसे इससे भी बेहतर स्कूल में दाखिल करवा दिया जहां क्रिकेट इसकी तुलना में कहीं अधिक प्रोफैशनल था। वह सदा ही यह विश्वास से सराबोर रहते थे कि उनके बेटे में बल्लेबाजी और गेंदबाजी के कौशल की महान संभावनाएं हैं। 
 
यदि प्रेम कोहली जिंदा होते तो रविवार का मैच देखकर वह गर्व से फूले न समाते और उन्हें महसूस हो जाता कि उन्होंने अपने बेटे पर विश्वास करके बिल्कुल सही किया था। 
 
हम में से कितने पिता ऐसे हैं जिन्हें अपने बेटों पर विश्वास है? हम में से कितने बाप ऐसे होंगे जो अपने बच्चों को ऐसे व्यवसायों में धकेल देते हैं जो उनकी अपनी दृष्टि के अनुसार बच्चों के लिए बेहतर हैं, जबकि बच्चे इस ओर नहीं जाना चाहते?
 
मुझे याद है जब मेरी एक बेटी कालेज में पढ़ती थी, वह मेरे कमरे में आई और मुझे कहने लगी कि क्या वह साइंस विषयों को बदलकर आटर्स के विषय रख सकती है? ‘‘लेकिन तुम तो पशु चिकित्सक बनना चाहती थी? आटर्स विषय लेकर तुम पशु चिकित्सक कैसे बन सकती हो?’’ मैंने निराशा से कहा। 
 
‘‘पिता श्री, आप मुझे पशु चिकित्सक बनाना चाहते हैं, यह मेरा खुद का विचार नहीं है। मैं तो मनोवैज्ञानिक बनना चाहती हूं।’’ मैंने उसे कोर्स बदलने की अनुमति दे दी और इस प्रक्रिया में उसका एक वर्ष बर्बाद हो गया। सियाटल (अमरीका) से पढ़ाई करने के बाद आज वह बहुत ही सफल मनोवैज्ञानिक है।
 
लेकिन उसे विज्ञान के विषयों में धकेल कर मैंने कितनी बड़ी गलती की थी, जबकि उसका दिल और प्रतिभा उसे किसी अन्य क्षेत्र की ओर ले जा रहे थे।
 
हम अभिभावकों में से कितने ही हैं जो इसी प्रकार का व्यवहार करते हैं। गत सप्ताह लंच के दौरान मैंने एक मां को फफक-फफक कर रोते देखा। वह अपनी बेटी के बारे में बातें कर रही थी, ‘‘वह डैंटिस्ट है लेकिन फिर भी इस काम को घृणा करती है। जब भी उसे किसी का दांत उखाडऩा पड़ता है, वह मुझे बददुआएं देती है। मैंने तो सोचा था कि मैं उसकी जिंदगी बना रही हूं लेकिन मुझे क्या पता था कि असल में मैं उसकी जिंदगी बर्बाद कर रही हूं।’’
 
विराट के पिता प्रेम कोहली की तरह ही हमको अपने बच्चों की प्रतिभा को ताड़ते रहना चाहिए। उनके साथ समय गुजार कर पता करना चाहिए कि उनकी रुचि और प्रतिभा उन्हें किस दिशा में ले जाना चाहती है और उसी के अनुरूप उनको प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि वे जीवन में आगे बढ़ सकें। जो हम आंखों से देखते हैं उसी को बढ़ावा देने का प्रयास करना चाहिए।  यदि हमारे बच्चे में लेखक बनने की  प्रतिभा है तो उसे उसी दिशा में  प्रेरित करना चाहिए, बिल्कुल उसी तरह जिस प्रकार मेरे माता-पिता ने मेरे मामले में किया था। यदि आपके बच्चे डांस अच्छा कर लेते हैं तो उन्हें इसी में से अपना करियर बनाने की अनुमति दें।
 
भारत रविवार के उस मैच को नहीं भूलेगा जब हमने आस्ट्रेलिया वालों को आगे-आगे भगाया और विराट ने बिल्कुल अकेले दम पर ही एक शक्तिशाली टीम को धराशायी कर दिया।  लेकिन जब आप इस जीत का स्मरण  करते हुए मंद-मंद मुस्कुरा रहे हों, तब विराट के पिता  प्रेम की तरह गहराई से सोचना कि क्या आप बच्चे को उस दिशा में बढ़ाने के लिए पर्याप्त समय  दे पा रहे हैं जिसमें वह आगे बढऩा चाहता है?
 
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