शक के घेरे में बी.बी.सी. दफ्तरों पर छापे

punjabkesari.in Thursday, Feb 16, 2023 - 04:43 AM (IST)

कर कानूनों सहित कानून के उल्लंघनकत्र्ताओं का कोई बचाव नहीं हो सकता और दोषियों को न्याय के कटघरे में लाना अपनी एजैंसियों के माध्यम से सरकार का एकमात्र कत्र्तव्य है। हालांकि इन एजैंसियों को संदेह से ऊपर रहने की जरूरत है। महत्वपूर्ण बात यह है कि ऐसा लगता है कि वे राजनीतिक विचारों से ऊपर उठ कर अपना काम कर रही हैं। 

दुर्भाग्य से देश में ऐसा बिल्कुल नहीं हो रहा है। एक अनोखा और विशिष्ट पैटर्न है जिसमें कानून लागू करने वाली केंद्रीय एजैंसियां जिनमें आयकर, प्रवर्तन निदेशालय (ई.डी.) और केंद्रीय जांच ब्यूरो शामिल हैं, काम कर रही हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि शीर्ष अधिकारी ऐसे संगठनों और व्यक्तियों पर नजर रखते हैं जो सरकार के लिए असुविधाजनक हो जाते हैं और ऐसे संगठनों के खिलाफ जांच शुरू करने के लिए असाधारण प्रयास किया जाता है। 

यह सामान्य ज्ञान है कि छापे, सर्वेक्षण और तलाशी एक पैटर्न का पालन करते हैं। इन कार्रवाइयों के परिणामस्वरूप महीनों या वर्षों का समय लग सकता है और हो सकता है कि यह कार्रवाइयां अंतत: अदालतों द्वारा बरी कर दिए जाने के रूप में समाप्त हो जाएं लेकिन यह उन लोगों को भी शक्तिशाली संकेत भेजती हैं जो सरकार की किसी भी आलोचना में शामिल होने की सोच रहे हैं। 

सरकार और सत्ताधारी दल के समर्थक यह तर्क दे सकते हैं कि कोई भी संगठन जिसमें मीडिया के लोग भी शामिल हैं, कानून से प्रतिरक्षा का दावा नहीं कर सकते हैं और किसी भी उल्लंघन के लिए अभियोजन का सामना कर सकते हैं। हालांकि इन एजैंसियों द्वारा की जाने वाली कार्रवाइयां लगभग पूर्व से ही तय हो जाती हैं। इसी शृंखला में नवीनतम मामला ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कार्पोरेशन (बी.बी.सी.) का आता है। 

ब्रिटिश सरकार द्वारा आंशिक रूप से वित्त पोषित अंतर्राष्ट्रीय संगठन पर छापे तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की निगरानी में गुजरात दंगों से संबंधित एक वृत्तचित्र को लेकर हैं। डाक्यूमैंट्री की सत्ताधारी पार्टी ने कड़ी आलोचना की थी और यहां तक कि सरकार ने भी आदेश दिया था कि इसे सोशल मीडिया से हटा दिया जाए। इन वृत्तचित्रों के जारी होने के कुछ ही दिनों के भीतर आयकर विभाग के छापे बहुत अधिक संयोग हैं। यहां तक कि संगठन के लिए काम करने वाले पत्रकारों के मोबाइल फोन और लैपटॉप भी इस छापे के दौरान जब्त किए गए। इससे पहले भी कई अन्य मीडिया हाऊस के खिलाफ इस तरह की कार्रवाइयां की जा चुकी हैं। 

एडिटर्ज गिल्ड ऑफ इंडिया ने एक बयान में बी.बी.सी. इंडिया के कार्यालयों में आयकर सर्वेक्षणों के बारे में गहरी चिंता व्यक्त की है। इसमें कहा गया है कि आयकर विभाग द्वारा किए गए सर्वेक्षण सरकारी नीतियों या सत्ता प्रतिष्ठान की आलोचना करने वाले प्रैस संगठनों को डराने और परेशान करने के लिए सरकारी एजैंसियों का उपयोग करने की प्रवृत्ति को जारी रखते हैं। यह कहा जा रहा है कि ऐसी प्रवृत्ति संवैधानिक लोकतंत्र को कमजोर करती है। गिल्ड ने मांग की है कि ऐसी सभी जांचों में बहुत सावधानी और संवेदनशीलता दिखाई जानी चाहिए ताकि पत्रकारों और मीडिया संगठनों के अधिकारों को कमजोर न किया जा सके। 

दुर्भाग्य से मीडिया को नीचा दिखाने की कोशिशों से सरकार की कोई विश्वसनीयता नहीं बन रही है। दूसरी ओर यह अपने कट्टर समर्थकों की नजरों को छोड़ कर विश्वसनीयता खो रही है। जो इस तरह के सभी कार्यों के बचाव में कूद पड़ते हैं। वे न केवल इस तरह की कार्रवाइयों पर अपना हर्ष व्यक्त करते हैं बल्कि सरकारी एजैंसियों पर कुछ अन्य मीडिया घरानों को भी निशाने पर लेने के लिए कहते हैं। जाहिर है यह मीडिया घराने सरकार का आदेश नहीं मानते हैं। 

भले ही कोई भारत की 150वीं रैंकिंग पर विश्व स्वतंत्रता रैकिंग से सहमत न हो, मीडिया और स्वतंत्र पत्रकारों के लिए स्वतंत्रता का रिकार्ड बहुत उज्ज्वल नहीं है। हाल ही में दक्षिण के एक पत्रकार सिद्दिकी कप्पन को इस आधार पर गिरफ्तार करने के बाद 2 साल के लिए सलाखों के पीछे रखा गया था क्योंकि वह उत्तरप्रदेश में एक सामूहिक बलात्कार के मामले की रिपोर्ट कर रहा था। सुप्रीमकोर्ट के हस्तक्षेप पर ही उसे रिहा किया गया था। बी.बी.सी. कार्यालयों के तथाकथित सर्वेक्षण का उद्देश्य उसके वोट बैंक और मीडिया के वर्गों को यह संदेश देना है कि कोई भी संगठन यहां तक कि बी.बी.सी. को भी नहीं बख्शा जाएगा यदि वह सत्ता की आलोचना करने का साहस करता है। विडम्बना यह है कि सत्ताधारी पार्टी ठीक वही कर रही है जिसकी उसने आपातकाल के दौरान ङ्क्षनदा की थी। यह धमकाना और डराना बंद होना चाहिए।-विपिन पब्बी


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