मूल आवश्यकता आर.बी.आई. को ‘मजबूत’ करने की है

punjabkesari.in Wednesday, Feb 21, 2018 - 03:43 AM (IST)

बैंक विनिमयन और पर्यवेक्षण में एक निश्चित न्यूनतम राज्य क्षमता (स्टेट कैपेसिटी) आवश्यक है और हम बार-बार यह खोज रहे हैं क्योंकि यह अनुपस्थित है। कुछ लोग इसे सार्वजनिक बनाम निजी बैंकिंग क्षेत्र के तौर पर देखते हैं। भारत में निजी बैंकों के पास एन.पी.ए. सहित बड़ी कठिनाइयां हैं जिसमें माना जाता है कि बैंकिंग विनिमयन का प्रमुख कारक यही मूल कारण है। हमारा प्रथम लक्ष्य भारतीय रिजर्व बैंक (आर.बी.आई) को सशक्त बनाना है। एक बुरी तरह से विनियमित सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक से भी बदतर एक खराब विनियमित निजी बैंक है। 

हमें आर.बी.आई. की क्षमता निर्माण करते समय बैंकिंग प्रणाली के आकार को धीमी गति प्रदान करते हुए निष्पादित करने की आवश्यकता है। पंजाब नैशनल बैंक (पी.एन.बी.) संकट में हमने देखा कि निजी व्यक्ति की गारंटी देते हुए स्विफ्ट (सुरक्षित वित्तीय संदेश भेजने वाले वैश्विक प्रदाता) संदेश बाहर भेजे गए थे, जोकि बैंक की मुख्य लेखा प्रणाली में जाने नहीं जाते थे। जब पर्यवेक्षक बैंक में जाएं तो यह पहली चीज होती है जो उनके द्वारा पूछी जानी चाहिए कि गारंटियों की सूची क्या है जोकि स्विफ्ट द्वारा दी गई थी? क्या वे खातों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसके लिए साधारण से नमूने के तौर पर, क्या आपने जोखिम प्रबंधन की नियत प्रक्रिया का अनुसरण किया है, आप इसे प्रमाणित कर सकते हैं? ये सभी प्राथमिक चीजें हैं जोकि बैंक पर्यवेक्षक करते हैं। 

पी.एन.बी. कहानी के कुछ अन्य ऐसे तत्व भी हैं जो बैंकिंग पर्यवेक्षण में प्राथमिक जांच दौरान पकड़ में आए हैं। साप्ताहिक रिपोर्टों का प्रयोग करते हुए कि आर.बी.आई. ने फारैक्स गतिविधियों पर नजर रखने के लिए बैंकों से प्राप्त की, बैंकों के लिए अनिवार्य किया कि संवेदनशील पदों इत्यादि वाले लोगों की नियमित ट्रांसफरों पर ध्यान दिया जाए। अन्य समान मामलों में एन.पी.ए. संकट रोके जा सकते थे यदि विनियमक प्राथमिक चीजें कर चुके होते। व्यावसायिक कर्जों के लिए बैंकिंग पर्यवेक्षण जटिल नहीं है। जब बैंक देखते हैं कि परिसम्पत्ति की आंतरिक कीमत शून्य है तो इसे वसूली में व्यावसायिक निर्धारण नियम लागू करने होंगे। जब वसूली करनी होती है तो उन्हें कीमत पर सीधा नीचे की ओर जाना चाहिए तथा बैंक की निवेशक पूंजी पर वापस आना चाहिए। यह कोई राकेट साइंस नहीं है परन्तु आर.बी.आई. आज बहुत ही दयनीय स्थिति में है क्योंकि इसकी प्राथमिक प्रक्रिया पूरी नहीं की गई है। 

भारत में हम व्यक्तियों को उसके स्वयं के हित में कार्यरत देखते हैं एवं संगठन के लक्ष्यों पर पहुंचने में असफल रहते हैं जोकि उसने प्रस्तुत किए होते हैं। रेलवे, रेलवे ब्यूरोक्रेसी के हित में आकार रूप है। शिक्षा, शिक्षा ब्यूरोक्रेसी के हित में आकार लिए है, रक्षा विभाग वर्दीधारियों के हित में है तथा आर.बी.आई. ब्यूरोक्रेसी के हितों द्वारा आकार रूप में है। आजकल सार्वजनिक बैंकों की आलोचना हो रही है परन्तु समस्या पर्यवेक्षण की है स्वामित्व की नहीं। यदि आर.बी.आई. ने पर्यवेक्षण में सही चीजें की होतीं तो सार्वजनिक अथवा निजी बैंकों में ये गलतियां न होतीं। निजी बैंक जैसे कि आई.सी.आई.सी.आई. बैंक एवं एक्सिस बैंक भी एन.पी.ए. समस्याओं से जूझ रहे हैं।

उदाहरण के तौर पर जब सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुन: पूंजीकरण की घोषणा की थी तो आई.सी.आई.सी.आई. बैंक का शेयर 9 प्रतिशत तक चला गया था। क्यों? जनता का पैसा डिफाल्टरों को बचाने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र बैंकों द्वारा अब प्रयुक्त किया जाने लगा है एवं ये सभी डिफाल्टर आई.सी.आई.सी.आई. बैंक के कर्जदार थे। सार्वजनिक क्षेत्र बैंक के नियम आसान हैं। इन बैंकों के शीर्ष प्रबंधन को निश्चित वेतन एवं बिना किसी शेयर के कम भत्ते दिए जाते हैं। उनका विशेष प्रबंधन आर.बी.आई. से मौलिक रूप से अलग होता है जबकि निजी बैंकों के वरिष्ठ प्रबंधक भी इससे अलग होते हैं। उन्हें अच्छे वेतन, बोनस, स्टाक्स स्वामित्व तथा स्टाक विकल्प सहित अच्छे भत्ते भी दिए जाते हैं। सार्वजनिक एवं निजी बैंकों के विनिमयन क्रियान्वयन पर्यवेक्षण में बड़ा अंतर यहीं से प्रारंभ हो जाता है। 

आर.बी.आई. की कारगुजारी बढ़ाने के लिए क्या किया जा सकता है। इसके लिए चार अव्यव हैं। पहला-आर.बी.आई. के पास अच्छा पैसा व सुदृढ़ बैंकिंग हो। दूसरा-बोर्ड के नियम का है। वर्तमान में आर.बी.आई. बोर्ड मीटिंग केवल चाय-कॉफी के लिए होती है और संगठन द्वारा बाकी सभी चीजों को नजरअंदाज कर दिया जाता है। बोर्ड को संगठन के मूलभूत परिरूप, संसाधन आबंटन एवं विभागीय खातों का प्रबंधन देखना चाहिए। तीसरा अव्यव विधान पालिका, कार्यकारी एवं न्यायिक संचालनों के लिए अपनाई जाने वाली विस्तृत प्रक्रिया है जिसमें आर.बी.आई. स्टाफ के पास पूरा अधिकार हो कि ये सभी चीजें कैसे की जानी हैं जिसमें निष्पक्ष कानूनी प्रक्रिया तथा सामथ्र्य भी आता है। नियमित रिपोॄटग एवं जवाबदेही को चौथा मूल अव्यव माना जाना चाहिए। 

आर.बी.आई. भारत का सर्वाधिक बड़ा व महत्वपूर्ण वित्तीय विंग है परन्तु इसके फाइनैंशियल क्लोजर के केवल चार पृष्ठ हैं तथा इन्हें कम्प्ट्रोलर एवं आडिटर जनरल द्वारा आडिट नहीं किया जाता जबकि हमें उच्च गुणवत्ता वाली जवाबदेही की तत्काल आवश्यकता है। अंतत: आर.बी.आई. को यदि ये उपलब्धियां हासिल करनी हैं तो इसे इसके अभिभावकीय विभाग (आर्थिक मामलों के विभाग)के संस्थानागत सामथ्र्यों  को भी विकसित करना होगा। हमें नान-बैंक फाइनांसिंग की ओर देखना होगा तथा बैंकों के नाममात्र विकास को तब तक रोकना होगा जब तक हम आर.बी.आई. के सामथ्र्य का न्यूनतम स्तर प्राप्त नहीं कर लेते हैं।-अजय शाह


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