कृतघ्नता का प्रतीक है बंगलादेश

punjabkesari.in Thursday, Dec 19, 2024 - 05:51 AM (IST)

पहले पाठक कृतघ्न शब्द को समझें तो मैं लेख को आगे बढ़ाऊं। एक औरत थाली में कुत्ते का पका हुआ मांस ले जा रही थी। किसी ने उस औरत से पूछा कि तुम यह थाली में सजा कर क्या ले जा रही हो? तो उसने कहा कि मैं कुत्ते का पका हुआ मांस खाने के लिए ले जा रही हूं कि रास्ते में इसे किसी कृतघ्न की नजर न लग जाए। तो पाठको, आप समझ गए होंगे कि कृतघ्न कौन होता है। मांस ले जा रही औरत से भी नीच, कुत्ते के पके हुए मांस से भी नीच, कृतघ्न अधम से भी अधम है। उसकी नजर कुत्ते के पके हुए मांस पर भी पड़ जाए तो वह खाने के लायक नहीं रहता। तो आप समझ गए होंगे कि कृतघ्न कितना घातक होता है। कृतघ्न वह है जो किसी के किए उपकार को न माने। यानी निंदक। ऐसे नीच, निंदक, व्यक्ति को कोई मुंह नहीं लगाता। निंदक को दूर से सलाम करें और निकल जाएं। यह हाल कृतघ्न देश ‘बंगला देश’ का है। 

जिस बंगला देश को भारत ने बनाया, वह आज भारत को आंखें दिखा रहा है। ‘बंग बंधु’ जिन्हें ‘बंगलादेश’ का संस्थापक कहा जाता है। उसकी बेटी के अधोवस्त्र सरेआम लहरा रहा है। उसकी बेटी को देशद्रोही ठहराया जा रहा है। प्रधानमंत्री शेख हसीना पर तरह-तरह के मुकद्दमे चला रहा है जिस भारत ने 1971 में पाकिस्तान और बंगलादेश के लाखों लोगों को जंग के दिनों पनाह दी, वही कृतघ्न ‘बंगला देश’ भारत को आज आंखें दिखा रहा है। हिंदू समुदाय पर हमले कर रहा है। हिंदुओं की बहू-बेटियों की आबरू लूट रहा है। हिंदुओं के मंदिरों को तोड़ रहा है। इस्कान जैसे धार्मिक प्रतिष्ठान के मुखिया को गिरफ्तार कर रहा है। जिस भारत ने चार लाख बंगलादेशी महिलाओं के बलात्कार की बात उजागर की उसे घृणित दृष्टि से देख रहा है। जिस भारत ने पाकिस्तानी फौजी छावनियों से 593 बंगलादेशी महिलाओं को सैक्स वर्कर के रूप में कैद महिलाओं को मुक्त करवाया उसी हिंदुस्तान को पंगु देश कह रहा है।

जिस पाकिस्तान ने 1971 तक बंगलादेश वासियों पर जुल्म ढहाए, वही ‘बंगलादेश’ पाकिस्तान के साथ संधि समझौते कर रहा है? कार्यकारी राष्ट्रवादी यूनिस साहिब भारत को गाली दे रहे हैं। अल्प संख्यक ‘बंगलादेश’ वासियों की संपत्ति को लूटते देख मुस्कुरा रहा है ऐसे कृतघ्न पड़ोसी देश के राष्ट्रपति से मुझे स्वयं घृणा हो रही है? ऐसे राष्ट्रपति को राष्ट्रपति होने का अधिकार किस ने दिया? वह भी धिक्कार के हकदार हैं। जो राष्ट्रपति होते हुए अपने देश में लॉ एंड आर्डर की स्थिति को बहाल नहीं रख सकता, वह राष्ट्रपति कैसा। 1947 में पाकिस्तान के गठन के समय पश्चिमी पाकिस्तान में पंजाबी, सिंधी, पठान, बलोच और मुजाहिरों की बड़ी संख्या थी परन्तु पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली भाषा बोलने वालों की संख्या ज्यादा थी। उन्हें राजनीतिक चेतना पर गर्व था परन्तु पाकिस्तान ने सत्ता में बंगलावासियों को कभी अपने बराबर नहीं होने दिया। राजनीतिक क्षेत्र में पाकिस्तान ने बंगलादेश वासियों को कभी भी उनका बनता हक नहीं दिया।

1970 में पाकिस्तान ‘बंगला देश’ सहित आम चुनाव हुए। इस आम चुनाव में शेख मुजीब-उर-रहमान की ‘अवामी लीग’ पार्टी ने जबरदस्त जीत हासिल की। याहिया खान ने जनरल टिक्का खान की ड्यूटी लगाई कि ‘बंगला देश’ के हालात ठीक करो परन्तु जनरल टिक्का खान ने ‘बंगला देश’ वासियों पर जुल्म करना शुरू कर दिया। यह बात अलग थी कि आम चुनावों में शेख मुजीब-उर-रहमान को पाकिस्तान संसद में बहुमत प्राप्त हुआ था। परन्तु पाकिस्तानी सरकार ने उन्हें प्रधानमंत्री बनाने के स्थान पर जेल में डाल दिया। बस यहीं से ‘बंगला देश’ की नींव पड़ी। पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना ने जबरदस्त नरसंहार किया। इससे ‘बंगला देश’ में भारी विरोध हुआ।

पाकिस्तानी फौज ने निरपराध, हथियार-विहीन जनता पर अत्याचार जारी रखा। भारत ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से अनुरोध किया कि इस नरसंहार को रोका जाए. परन्तु किसी भी देश ने भारत के अनुरोध पर ध्यान नहीं दिया। फिर उस समय देश की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी राजनीतिक हालात में ‘दुर्गा’ बन कर सामने आईं। उन्होंने ‘बंगला देश’ को आजाद करवाने का ऐतिहासिक निर्णय लिया। 25 मार्च 1971 को शुरू हुआ यह युद्ध 16 दिसम्बर, 1971 तक चला। इस युद्ध में भारतीय सेना के कमांडैंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के आगे पाकिस्तानी फौज के जनरल ए.के. नियाजी ने सेना सहित आत्मसमर्पण कर दिया। 25 मार्च 1971 को शुरू हुए ‘आप्रेशन सर्च लाइट’ के अधीन खूब हिंसा हुई। इसमें लगभग 30 लाख लोग मारे गए। चार लाख ‘बंगला देश’ महिलाओं की आबरू लूटी गई। 

इस सारे युद्ध में शेख मुजीब-उर-रहमान ‘हीरो’ बन जेल से बाहर आए। उन्हें राष्ट्रपति घोषित किया गया। याद रहे 93,000 पाकिस्तानी फौजियों का भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण करना दुनिया के इतिहास में एक फौजी दुर्घटना थी। शेख मजीब-उर-रहमान ‘बंग बंधु’ की उपाधि से नवाजे गए परन्तु इसे ‘बंगला देश’ का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि उसी बंग बंधु की 1975 को उन्हीं के पार्टी के कुछ गद्दारों और जूनियर रैंक के फौजी सैनिकों ने हत्या कर दी। उनके सारे परिवार को मार दिया और राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया। उस वक्त मुजीब-उर-रहमान की दोनों पुत्रियां शेख हसीना और शेख रेहाना पश्चिम जर्मनी की यात्रा पर थीं। वह बच गईं। शेख हसीना  बतौर प्रधानमंत्री भारत सरकार से सहयोग करती थीं। वह कृतघ्न नहीं थीं। यद्यपि ‘बंगला देश’ इस्लामिक देश था परन्तु शेख हसीना बतौर प्रधानमंत्री धर्म निरपेक्षता का पक्ष लेती रहीं। एक मित्र-पड़ोसी देश ‘बंगला देश’ बना रहा परन्तु पता नहीं उन्हें अपदस्थ कर दिया गया। लोगों का रोष सड़कों पर उतर आया।  ‘बंगला देश’ न जाने क्यों भारत से किस बात का बदला लेना चाहता है। शायद ‘बंगला देश’ की भारत द्वारा दिखाई गई कृतघ्नता का परिणाम है।-मा. मोहन लाल(पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)


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