चीनी एप्स पर बैन से ‘स्वदेशी अर्थव्यवस्था’ का विकास होगा

Wednesday, Jul 01, 2020 - 05:21 AM (IST)

कहावत है कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते। अनेक दौर की बातचीत के बावजूद लद्दाख सीमा पर चीन अपनी दादागिरी को खत्म करने पर जब सहमत नहीं हुआ तो भारत सरकार ने 59 एप्स को ब्लाक करने का आदेश प्रैस रिलीज से जारी कर दिया। सोशल मीडिया में कहा जा रहा है कि चीन ने भारत के मैप को छेड़ा है तो भारत ने चीन के एप्स को ब्लाक करके जवाबी हमला किया है। 

इस आदेश को सार्वजनिक करने की बजाय पी.आई.बी. से प्रैस रिलीज जारी की गई, इससे जाहिर है कि सरकार सावधानी से कदम बढ़ा रही है। सरकारी प्रैस रिलीज के जवाब में टिकटॉक ने भी प्रैस रिलीज जारी करके खुद को पाक साफ बताया है। गूगल और एप्पल के प्ले स्टोर से यह एप हटने से स्पष्ट है कि सरकार के आदेश के पालन की शुरूआत हो गई है, लेकिन इसमें अनेक कानूनी पेंच अभी बाकी हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय की सिफारिश पर आई.टी. मंत्रालय द्वारा आई.टी. एक्ट की धारा 69-ए के तहत जारी इस आदेश पर प्रभावित पक्षों की सुनवाई के बाद सरकार की समिति द्वारा मुहर लगने पर ही यह आदेश फाइनल माना जाएगा। 

डिजिटल इंडिया में विदेशी कंपनियों के नियमन के लिए सख्त कानूनी ढांचा नहीं बना 
दिलचस्प बात यह है कि सरकारी आदेश में एप्स पर प्रतिबंध में चीन शब्द का इस्तेमाल ही नहीं हुआ है। इसलिए आगे चलकर अन्य देशों के एप्स पर भी ऐसी ही कार्रवाई की मांग आगे बढ़ेगी। इंटरनैट कंपनियों और एप्स को कानून की भाषा में इंटरमीडियरी कहा जाता है। इनको नियंत्रित करने के लिए सन 2011 में जो नियम बने थे, उन पर अभी तक कड़ाई से पालन ही नहीं हुआ। उसके बाद नियमों में बदलाव के लिए 2 साल पहले जो ड्रॉफ्ट (मसौदा) जारी किया गया, उसे अभी तक कानूनी तौर पर नोटिफाई ही नहीं किया गया।

पिछले साल मद्रास हाईकोर्ट ने टिकटॉक को प्रतिबंधित करने के लिए आदेश पारित करते हुए सख्त टिप्पणी की थी। इसके बावजूद डिजिटल जगत में बच्चों और महिलाओं की सुरक्षा के लिए केंद्र सरकार ने ठोस कदम नहीं उठाया। आई.टी. मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इन प्रतिबंधों को जायज ठहराने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा, अखंडता और देशहित की जो बात कही है, उससे शायद ही किसी को इन्कार हो।  जम्मू-कश्मीर में भी इंटरनैट बंदी के दौरान एप्स को गैर-कानूनी तरीके से इस्तेमाल करने की व्यवस्था बन गई। भारत में एप्स को बैन करने के लिए आदेश पारित करने का केंद्र सरकार को पूरा अधिकार है लेकिन अंतर्राष्ट्रीय डिजिटल बाजार में आदेश को लागू करने की तकनीकी और प्रशासनिक व्यवस्था भारत में अभी भी बनना बाकी है। 

विदेशी कंपनियों के स्वामित्व का पूरा विवरण जारी हो
चीनी एप्स के साथ अमेरिका और दूसरे देशों की कंपनियों ने भी भारत के डिजिटल बाजार में गैर-कानूनी कब्जा जमा रखा है। भारत के 130 करोड़ लोगों की डाटा चोरी से विदेशी कंपनियां मालामालहोने के साथ भारत डाटा उपनिवेश का सबसे बड़ाकेंद्र बन गया है। इस चुनौती का जवाब देने के लिए डाटासुरक्षा कानून के साथ डिजिटल कम्पनियों की आमदनी परटैक्स वसूली के लिए सख्त कानूनी व्यवस्था बनानी होगी। 

चीन ने विदेशों की डिजिटल कंपनियों पर बैन लगा रखा है। लेकिन चीनी एप्स और डिजिटल पूंजी ने भारत समेत विश्व के अधिकांश डिजिटल बाजार में कब्जा कर रखा है। भारत में लगभग 50 करोड़ स्मार्टफोन के माध्यम से चीनी एप्स ने 30 करोड़ यूजर्स को अपनी सीधी गिरफ्त में लिया है। भारत में टिकटॉक ने 61 करोड़ बार डाऊनलोड से 30 फीसदी अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार पर कब्जा कर लिया है। चीनी एप के इस्तेमाल से भारत के करोड़ों लोगों का डाटा चीन की सरकार और पी.एल.ए. की सेना के पास पहुंचने से भारत की सुरक्षा को खतरे के साथ चीनी कंपनियां मालामाल हो रही हैं। 

केंद्र सरकार ने चीनी सामान के इस्तेमाल में कमी के लिए विदेशी सामान पर ई-कॉमर्स कंपनियों को विशेष विवरण देने का आदेश दिया है। भारत में पे.टी.एम., जोमैटो और ओला जैसी अनेक बड़ी कम्पनियों में चीन का बड़ा निवेश है। चीन में विदेश की डिजिटल कम्पनियों पर अनेक बंदिशें हैं। जबकि भारत में विदेशी डिजिटल कम्पनियों पर कोई नियम कायदे कानूनलागू नहीं हो रहे। भारत में कारोबार कर रही सभी कंपनियों के विदेशी स्वामित्व का विवरण आम जनता को उपलब्ध कराया जाए, तो सही अर्थों में मेड इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत को सफल बनाया जा सकता है। 

राजनीतिक दलों और पी.एम. केयर फंड को चीनी कम्पनियों से अनुदान
चीन से तनातनी के बीच कांग्रेस और भाजपा में आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला बढ़ गया है। कानून के अनुसार विदेशी देशों के साथ हुए समझौतों का पूरा विवरण सरकारी विभागों को दिया जाना चाहिए। सरकार के नए आदेश के अनुसार चीन की जो कम्पनियां भारत की सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के लिए खतरा हैं, उनसे किसी भी प्रकार का डोनेशन लिया जाना देश के लिए शुभ नहीं हो सकता। इसके बावजूद जिन चीनी एप्स पर प्रतिबंध लगाया गया है उनमें से कई कम्पनियों ने पीएम केयर्स फंड में डोनेशन दिया है। राजनीतिक दलों के चंदे की व्यवस्था पर पिछले कई सालों से अनेक विवाद हुए हैं। आम जनता के ऊपर नैतिकता के साथ नियमों का भारी बोझ है। 

अब राजनीतिक दलों में भी पारर्दिशता के साथ नियमों के पालन की व्यवस्था बने तो देश में लोकतंत्र मजबूत होगा। सरकार ने इन चीनी एप्स को बैन करने के लिए जो कारण बताए हैं उन्हें दुरुस्त किए बगैर दोबारा इन एप्स को भारत में कारोबार की अनुमति अब मिलना मुश्किल है। के.एन.  गोविंदाचार्य की याचिका पर 7 साल पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने भारतीय डाटा की सुरक्षा, इन्टरनैट और एप्स पर टैक्स, डाटा के भारतीय सर्वर में स्टोरेज जैसी महत्वपूर्ण बातों पर आदेश जारी किए थे, जिनपर इस आदेश के बाद पूरी तरह से अमल करने की जरूरत है।  अंग्रेजों के खिलाफ सन् 1857 की लड़ाई को प्रथम स्वाधीनता संग्राम माना जाता है। उसी तरीके से डिजिटल इंडिया की इस सॢजकल स्ट्राइक को विदेशी डिजिटल औपनिवेशिक ताकतों के खिलाफ भारत के महायुद्ध का ऐलान माना जा सकता है।-विराग गुप्ता (सुप्रीम कोर्ट के वकील)

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