आतंकवादी हमलों से अधिक हानिकारक हैं ‘खराब सड़कें’

Monday, Dec 16, 2019 - 02:02 AM (IST)

 भारत में 50 से अधिक राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित किए गए हैं जिनके निर्माण का सीधा दायित्व केन्द्र सरकार का है। पंजाब के अबोहर क्षेत्र में स्थित मलोट से उत्तराखंड के असकोट क्षेत्र तक लगभग 900 किलोमीटर का यह राजमार्ग पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से निकलता है। इसी राजमार्ग के साथ लगता एक छोटा रूट निकालकर उसे राष्ट्रीय राजमार्ग 709 ए.डी. नम्बर दिया गया जो लगभग 400 किलोमीटर का है। इसे पानीपत-खटीमा राजमार्ग नाम से भी जाना जाता है। यह रोड उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले से होकर निकलती है। मुजफ्फरनगर बाईपास से जानसठ तक का लगभग 24 किलोमीटर का रास्ता पार करने में एक घंटे से अधिक समय लगता है। इसका कारण ट्रैफिक जाम नहीं अपितु भयंकर रूप से जीर्ण-शीर्ण सड़कें हैं जिनमें अनेकों गहरे गड्ढे देखे गए।

नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत की प्रगतिशील और आधुनिक अर्थव्यवस्था के तेज गति से बढ़ते कदमों को ब्रेक लगाते हुए महसूस हुए यह गड्ढों से भरे मार्ग। भारत की सड़कों पर गहन चिंतन करने के बाद सर्वहित नामक एक गैर-सरकारी संगठन की तरफ से केन्द्रीय परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी को भेजे गए एक विस्तृत पत्र के द्वारा यह आग्रह किया गया है कि सड़कों की बुरी अवस्था भारत की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ शासक वर्ग के आध्यात्मिक दायित्व को भी चुनौती देती है। 

हमारे देश में लगभग 20 लाख किलोमीटर सड़कों का जाल है। जिसमें से केवल 9 लाख 60 हजार किलोमीटर सड़कें ही पक्की हैं। शेष 10 लाख किलोमीटर से अधिक सड़कें कच्ची या बुरी हालत में हैं। राष्ट्रीय राजमार्गों पर ट्रैफिक का 40 प्रतिशत बोझ पड़ता है। केन्द्र सरकार प्रतिवर्ष सड़कों के निर्माण और रख-रखाव पर लगातार बजट राशि बढ़ाती जा रही है। परन्तु धरातल पर कार्य करने में इतना जबरदस्त भ्रष्टाचार है कि स्थानीय सड़कों की हालत एक वर्ष बाद ही बिगडऩी शुरू हो जाती है। एक अच्छी सड़क के लिए तीन स्तर का निर्माण किया जाता है। सबसे नीचे मजबूत आधार बनाने के बाद बीच की परत और उसके ऊपर रोड़ी-तारकोल की परत बिछाई जाती है। कंक्रीट रोड अपेक्षाकृत खर्चीली होती है परन्तु तारकोल रोड से कई गुना लम्बी अवधि की होती है। सड़क निर्माण की वैज्ञानिक सोच यह कहती है कि सड़क की ढलान दाईं और बाईं तरफ रखी जानी चाहिए जिससे पानी जमा न हो सके और सड़कों  का नुक्सान न हो। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तो अच्छी सड़कों को लोगों के स्वास्थ्य और लम्बी आयु के साथ जोडऩे का प्रयास किया है। इस अंतर्राष्ट्रीय दबाव के चलते ही भारत की संसद को मोटर वाहन अधिनियम में संशोधन करके ट्रैफिक नियमों में उल्लंघन को भारी जुर्माने से निपटने के लिए विवश होना पड़ा। खराब सड़कें भारत के वाहनों को भी करोड़ों-अरबों रुपए की हानि पहुंचा रही हैं। हाल ही में किए गए एक सर्वे के अनुसार प्रतिदिन 29 मौतें केवल खराब सड़कों के कारण होने वाली दुर्घटनाओं का परिणाम होती हैं। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी खराब सड़कों के कारण होने वाली मौतों को आतंकवादी हमलों से होने वाली मौतों से भी अधिक संख्या में पाए जाने पर ङ्क्षचता जताई है जबकि इन मौतों में किसी व्यक्ति की गलती या अपराधी नीयत नहीं अपितु सड़कों के गड्ढे ही एकमात्र कारण हैं। इसलिए सरकारों को इन गड्ढों का उन्मूलन भी उसी प्रकार करना चाहिए जैसे आतंकवादियों के उन्मूलन के लिए प्रयास किए जाते हैं। 

कानून का सिद्धांत है कि किसी दूसरे व्यक्ति या संस्था की गलती के कारण यदि किसी व्यक्ति को हानि होती है तो उसका मुआवजा भी गलती करने वाले व्यक्ति या संस्था को ही देना  होगा। भारत के मोटर-वाहन कानून, 1988 में मोटर दुर्घटनाओं के कारण पीड़ितों को होने वाले जान और माल के नुक्सान की पूॢत के लिए तो अनेकों प्रावधान हैं परन्तु खराब सड़कों के कारण जान और माल के नुक्सान की पूर्ति के लिए कोई विधिवत कानून नहीं बन सका। ऐसी समस्याओं का निदान टौट कानून के सिद्धांत में ढूंढा जा सकता है। टौट कानून मूलत: एक अंग्रेजी कानून है जिसके अनुसार किसी भी व्यक्ति को उसकी गलती के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। जिस दिन भारत के निवासी खराब सड़कों से होने वाली प्रत्येक हानि को लेकर अदालतों में राज्य सरकार या केन्द्र सरकार के विरुद्ध मुआवजों के मुकद्दमे दाखिल करना प्रारम्भ कर देंगे उसके बाद ही सरकारों की नींद खुलेगी और सड़कों की हालत सुधरेगी।-विमल वधावन(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट)
 

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