‘भारतीय भावनाओं’ के हित में था अयोध्या फैसला

punjabkesari.in Saturday, Nov 16, 2019 - 12:56 AM (IST)

सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने सदियों पुराने राम जन्म भूमि-मस्जिद विवाद पर उत्पन्न ङ्क्षहदू-मुस्लिम मुद्दे का भारतीय भावना के अनुरूप आदेश सुनाया। यह मामला अदालत में 70 वर्षों से चला आ रहा था। आखिर भारत की भावना कैसी है, मैं इसे भारतीय आत्मा के साथ एक चमकती हुई धारणा के तहत देखता हूं। इसने लोगों को सदियों तक झगड़े में बांधे रखा।

इस फैसले ने एक प्रौढ़ तथा संयम वाली सभ्यता का उदाहरण दिया। यह फैसला राजनीतिक मूल्यों से परे हटकर था। इसी ने प्राचीन भारत को मूल्यों की भावना के लिहाज से महान बनाया। यह भावना अब गिरते स्तर पर है। इस फैसले ने लोगों की नजरों में देश तथा इसके शासकों की कमजोरियों को उजागर किया। यह कमजोरी घरेलू तौर पर तथा बाहरी तौर पर उजागर हुई थी। 

मैं साम्प्रदायिक-राजनीतिक झरोखे से भारतीय भावना को नहीं देखता। जड़ों, मूल्यों तथा धर्म के नियमों को तलाशने की तीव्र इच्छा हुई है। ये सभी सामाजिक बदलावों के उत्प्रेरक एजैंट हैं। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पांच जजों की पीठ की सुंदरता देखने से ही बनती थी क्योंकि इन सब का फैसला एकमत था। इस बैंच में रंजन गोगोई नामांकित सी.जे.आई. शरद अरविंद बोबडे, जस्टिस धनंजय वाई. चंद्रचूड़, अशोक भूषण तथा एस. अब्दुल नजीर ने 929 पृष्ठों वाले इस फैसले को देने के लिए 23 दिन लगाए। यह फैसला 9 नवम्बर को आया। 

बैंच ने यह फैसला रामलला के पक्ष में दिया क्योंकि ङ्क्षहदू पाॢटयों ने विवादित भूमि के ऊपर सिद्ध करने वाले बेहतर साक्ष्य प्रस्तुत किए। इसी तरह पीठ ने मुस्लिम पक्ष को पांच एकड़ भूमि देने का तर्क भी सही ठहराया। हालांकि मुस्लिम 22-23 दिसम्बर 1949 को मस्जिद को तोडऩे-मरोडऩे पर उतारू थे जोकि अंतत: 6 दिसम्बर 1992 को ध्वस्त कर दी गई। बैंच ने बाबरी मस्जिद की क्षति, तोडऩे तथा विध्वंस करने के कृत्य को अनुचित ठहराया। 

ऐतिहासिक गलतियों को कोर्ट द्वारा ठीक नहीं किया जा सकता
इस मुद्दे को बड़े स्वरूप में देखने से सुप्रीम कोर्ट ने यह सही माना कि ऐतिहासिक गलतियों को कोर्ट द्वारा ठीक नहीं किया जा सकता। इसी कारण कोर्ट ने हिंदू पाॢटयों की उस याचिका को मानने से इंकार कर दिया जिसमें यह कहा गया था कि मुगलों द्वारा अयोध्या सहित अन्य मंदिरों के विध्वंस के कृत्य को सही ठहराया जाए। 

सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी दृढ़ता से कहा कि 1934 को बाबरी मस्जिद के गुम्बद की साम्प्रदायिक दंगों में हुई क्षति, 22 दिसम्बर 1949 को इसके भीतर मूॢतयां रखे जाना तथा 6 दिसम्बर 1992 को विध्वंस की गतिविधियां गैर कानूनी कृत्य थे। निष्कर्ष में संतुलन बनाए रखने के लिए इस पर राजी होना पड़ा कि विवादित स्थल को मंदिर के लिए दिया जाए। मस्जिद के लिए पांच एकड़ भूमि दी जाए। मैं सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले को भारतीय भावना के तौर पर देखता हूं जो विपत्तियों के समय, जाति, समुदाय तथा धर्म के बंधनों को तोड़ कर बहती है। इसके मायने यह हैं कि भारतीय भावना ने बाहरी दबावों को शांतिपूर्वक तथा विनम्रता से झेला है। 

वास्तव में भारतीय भावना या फिर परम्परा यह जानती है कि महत्वपूर्ण तथा दबाने या फिर कुचलने वाले हमलों से कैसे बचा जाता है? भारतीय हमले के किसी भी बदलाव को झेलना जानते हैं। भारतीय भावना की प्रशंसा की जानी चाहिए कि यह अनंत तथा चिरस्थायी है। श्री अरविंदो चाहते थे कि भारतीयों का यह दृढ़विश्वास हो कि वे उठेंगे तथा महान बनेंगे। मैं उनके इस स्वरूप को इस शताब्दी में भारत को आगे ले जाने वाला मानता हूं और यह ट्रैंड अयोध्या फैसले में भी जारी रहा। इस बारे में मुझे यही कहना है कि भारतीय भावनाओं के आधार का राजनीतिकरण न किया जाए और न ही इसे भारतीयता के विवादास्पद सिद्धांत में फंसाया जाए। वास्तव में नेताओं के आगे मुख्य परेशानी यह थी कि कैसे हिंदुओं तथा अल्पसंख्यकों विशेष तौर पर  मुसलमानों में भी धैर्य तथा राष्ट्रीय लक्ष्यों की भारतीय भावना को चौड़ा तथा मजबूत किया जाए। 

पिछली गलतियों के संदर्भ में हमें वर्तमान से सीख लेने की जरूरत है और इसी तरह वर्तमान के प्रकाश में हमें पूर्व के बारे में सीखना होगा। मैं इतिहास को चुनौती तथा प्रेरणा के स्रोत के तौर पर देखता हूं। यहां पर मैं यह भी कह देता हूं कि शिया वक्फ बोर्ड को सुप्रीम कोर्ट का फैसला सम्मानपूर्वक मान लेना चाहिए तथा इसके रिव्यू के लिए न कहा जाए। मुझे यह भी खुशी है कि मुस्लिम समुदाय ने विशेष कर अयोध्या में ले-दे कर इस फैसले का अभिनंदन किया है। मगर बार के सदस्यों ने कुछ आपत्तियां कीं। 

आल इंडिया मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड सुप्रीम कोर्ट द्वारा पांच एकड़ भूमि के प्रस्ताव पर अपना पक्ष 17 नवम्बर को रखेगा। यह निंदनीय होगा कि आल इंडिया मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड अगर नकारात्मकता की राजनीति खेलेगा जोकि समुदाय के लिए गैर फायदेमंद होगा। सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी ठीक कहा कि बतौर संवैधानिक संस्था के नाते उसका कत्र्तव्य है कि पूजा के प्रत्येक स्थान के धार्मिक चरित्र को बनाकर रखा जाए। उसने आगे यह भी कहा कि इस देश ने धर्मों तथा विचारों की विभिन्नता के बावजूद एकता को कायम रखा है। 

पांच एकड़ भूमि देना कोई संवैधानिक दरियादिली नहीं 
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि पांच एकड़ भूमि को देना कोई संवैधानिक, कोई दरियादिली का कार्य नहीं। मगर कोर्ट संविधान के आॢटकल 142 के तहत पूर्ण न्याय देने की शक्ति तथा फर्ज को निभाता है। इसी सच में भारत की भावना समाई हुई है और मुझे इसको विस्तृत तरीके से बयां करना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय राजनीति के गम्भीर क्षणों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शासन के अंतर्गत एक महान कार्य किया है।-हरि जयसिंह


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