अयोध्या ही ‘भारत’ है, यह कभी न भूलना

Friday, Mar 16, 2018 - 04:11 AM (IST)

जिन्होंने राम जन्मभूमि आंदोलन अपनी आंखों से देखा, वे भूल नहीं सकते कि हिंदू नामधारियों की सरकार में सिर्फ वोट और चुनावी जीत के लिए खेतों को श्मशान में और शहरों को वीरान में बदल दिया गया था। अर्थी ले जाने वाले राम नाम सत्य बोलें तो उन पर भी पाबंदी। सब्जी मंडी को ही जेल बना दिया इतने लोग और व्यवस्था कम। तब आचार्य विष्णु कांत शास्त्री जी ने कहा, ‘देखो, रामलला का खेल, सब्जी मंडी बन गई जेल।’ अशोक सिंघल पांचजन्य संवाददाता का कार्ड बनवाकर अयोध्या जा पाए और वैसे ही उ.प्र. के पूर्व पुलिस महानिदेशक तथा विश्व हिंदू परिषद के अग्रणी नेता श्रीश चंद्र दीक्षित। 

पर आज कोई बात दे कि अयोध्या आंदोलन का पहला हुतात्मा कौन था? कितने कार सेवक शहीद हुए? उनके नाम क्या हैं? यदि न बता पाएं तो आश्चर्य नहीं। वे वोट नहीं, चुनावी गणित का हिस्सा नहीं, उनकी मूर्ति बनवाकर कोई राजनीतिक लाभ होने वाला नहीं, वे तो बस ‘थे’। आज कारसेवक शब्द का उच्चारण भी शायद आप न सुन पाएं। रामजी से छल करके कोई सुख नहीं पा सकता। कुछ क्षण जरूर जातिवादी नेताओं की कृपा से अच्छे बीत जाएं भले ही। जिस मधुकर उपाध्याय कमिशनर फैजाबाद और सुभाष जोशी, एस.एस.पी. ने कारसेवकों पर औरंगजेबी जुल्म ढहाए, गोलियां बरसाईं जिनको न्याय दिलाने की कसमें खाई गईं-अयोध्या के हत्यारों को माफ नहीं करेंगे। लेकिन वे कसमें भुला दी गईं और इन  दोनों को बाद में उत्तराखंड में पदोन्नतियां मिलीं। 

अयोध्या राम मंदिर ने देश की हवा, पानी, मिट्टी का तेवर बदल दिया था। उसके पीछे श्रीराम के प्रति कोटि-कोटि भारतीयों की अनन्य भक्ति और श्रद्धा है। उसे जो चुनावी शतरंज का हिस्सा बनाए उससे बढ़कर पातकी कोई हो ही नहीं सकता। गांव-शहर, खेत, खलिहान, देश-विदेश, नेता-अभिनेता, ग्रामीण-गृहिणी, बाल-वृद्ध, अगर आप रामजी के नहीं, तो आप भारत के भी नहीं। सत्ता कैसे व्यक्ति को बदलती है, इसे रामभक्त जानते हैं। शपथ के लिए राष्ट्रपति भवन की सीढिय़ां चढ़ते लोग और शपथ के बाद सीढिय़ां उतरते लोग कितने भिन्न हो जाते हैं, यह भी रामभक्त जानते हैं। रामद्रोहियों को जनता पटका-पटका कर दंड देती है। 

राम आंदोलन का पहला शहीद तथाकथित उच्च जाति का नहीं था, पर गोलियां चलाने वाला और तदनंतर उसे पदोन्नति देना वाला अवश्य ही उसी वर्ग से था। जो लोग समता, समरसता की बात करते हैं वे यह अच्छी तरह जानते हैं कि यदि जाति के जंगल में रहे तो हिंदू को खो देंगे। यदि हिंदू को थामा तो जाति स्वत: विलीन हो जाएगी। अयोध्या आंदोलन ने जाति को राम नाम में तिरोहित कर दिया था। जो राजनीति के जादूगर हैं वे समय के प्रहार को भूल जाते हैं। जाति, धन और ‘मेरे से तुम्हारी नजदीकी’ इतना भर योग्यता की कसौटी बन जाता है। कोई तो वजह होती कि भगवा वस्त्रधारी योगी की मांग केरल से त्रिपुरा और गुजरात से बंगाल तक होने लगी है? कोई तो वजह होगी कि श्रीराम का नाम पुन: अयोध्या की ओर चलने का आह्वान करता दिखता है। कोई तो वजह होगी कि हर संकट, हर विपत्ति, हर आसन्न पराजय पर विजय के लिए पुन: राम शरण जाने की हूक उठती है। यही हूक, यही आह्वान, यही भावना अयोध्या है। 

स्वप्न है अयोध्या जी देश की सर्वश्रेष्ठ, अंतर्राष्ट्रीय नगरी के रूप में पुष्पित-पल्लवित हो। स्वप्न है सरयू जी पुन: देश के जन-जन को अपनी ओर खींचे और देश का हर बड़ा नगर सीधे-सीधे अयोध्या जी से जुड़े। स्वप्न है देश की सबसे तेज गाडिय़ां, देश का सर्वश्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, देश का महान विराट राम कथा का सचित्र संकुल-अंगकोरवाट की भांति अयोध्या जी में दिखे। स्वप्न है देश के विज्ञान, प्रौद्योगिकी, नारी-सम्मान एवं सशक्तिकरण की गूंज से अनुनादित वातावरण अयोध्या जी में बने। स्वप्न है भारत की संसद का एक विशाल, विराट संयुक्त अधिवेशन अयोध्या जी में हो-कोटि जन का प्रणाम श्रीराम के चरणों तक पहुंचे। राष्ट्र चुनावी रणनीति और सड़क, पानी, बिजली से परे एक आत्मा के मिलन का भी विषय होता है। उसे राष्ट्र का मन कहते हैं। जिसने मन को थाम लिया, उसने ब्रह्म को स्वयं में समा लिया। अयोध्या भारत है,यह भी भूलना मत और राम से द्रोह करने वालों को क्षमा करना मत।-तरुण विजय

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