विपक्ष की एक प्रमुख आवाज को ‘खामोश’ करवाने की कोशिश

punjabkesari.in Sunday, Mar 26, 2023 - 04:35 AM (IST)

कानून और न्याय के माननीय मंत्री किरण रिजिजू इस बात पर जोर देने के लिए हर मौके का उपयोग करते हैं कि वे और उनकी सरकार न्यायपालिका की स्वतंत्रता के साथ हस्तक्षेप नहीं करते हैं। एक नागरिक और एक प्रैक्ट्ङ्क्षिसग एडवोकेट के रूप में मैं उस पर विश्वास करना चाहूंगा। 

एक चैनल के साथ बातचीत में रिजिजू द्वारा सरकार की स्थिति बारे बताते हुए सुनकर मुझे खुशी हुई। इस दौरान उन्होंने वज्र गिराते हुए कहा, ‘‘मुझे लगता है कि यह मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण विषय है। न्यायपालिका को कमजोर करने के लिए सोच-समझ कर प्रयास किया जा रहा है। रोज कहा जा रहा है कि सरकार न्यायपालिका को अपने कब्जे में लेने की कोशिश कर रही है। 

एक तरह से यह एक भयावह स्थिति है। भारत और भारत के बाहर भी विरोधी ताकतें एक ही भाषा का उपयोग करती हैं। देश के भीतर और विदेशों में भी एक ही ईको सिस्टम काम कर रहा है। इस टुकड़े-टुकड़े गैंग को भारत की अखंडता और हमारी सम्प्रभुता को नष्ट करने की अनुमति हम नहीं देंगे।’’ 

पहलू 1 : हाल ही में दिल्ली में एक सैमीनार का आयोजन हुआ। सर्वोच्च न्यायालय के कुछ सेवानिवृत्त न्यायाधीश, कुछ वरिष्ठ वकील तथा कुछ अन्य लोग शामिल हुए। सैमीनार में संगोष्ठी का विषय ‘न्यायाधीशों की नियुक्ति में जवाबदेही था’। लेकिन पूरे दिन चर्चा इस बात पर रही कि किस प्रकार सरकार भारतीय न्यायपालिका को अपने कब्जे में ले रही है। ये कुछ रिटायर्ड जज, कुछ 3 या 4 लोगों में कुछ कार्यकत्र्ता भारत विरोधी गिरोह का हिस्सा है। 
कार्रवाई की जाएगी, कानून के अनुसार कार्रवाई की जा रही है लेकिन अगर मैं कहता हूं कि मैं कार्रवाई करूंगा तो एजैंसियां कानून के प्रावधानों के अनुसार कार्रवाई करेंगी। कोई नहीं बचेगा, ङ्क्षचता मत करो, कोई नहीं बचेगा। देश के खिलाफ काम करने वालों को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। यह एक स्पष्ट कथन था।

देश की शक्ति अपने कानून मंत्री के माध्यम से प्रदर्शित की गई। शक्तिशाली देश कह रहा था कि अगर सरकार आत्मपरक रूप से इस निष्कर्ष पर पहुंचती है तो कोई टुकड़े-टुकड़े गैंग है या कोई भी व्यक्ति भारत विरोधी गिरोह का हिस्सा है तो पहले से ही सचेत हो जाएं कि जो भी बोलता है या खेलता है उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। हम जानते हैं कि एजैंसियां कौन हैं। हम जानते हैं कि वे क्या कदम उठाएंगी। हम यह भी जानते हैं कि व्यक्ति को क्या कीमत चुकानी पड़ेगी और हम यह भी जानते हैं कि प्रक्रिया ही दंड है। कई लोगों ने माननीय कानून और न्याय मंत्री के बयान तथा मुक्त भाषण पर इसके प्रभाव की आलोचना की है। मेरे विचार में यह सरकार की कच्ची शक्ति का प्रदर्शन था और पर्याप्त सबूत प्रदान करता है कि लोकतंत्र खतरे में है। 

पहलू 2 : दुर्दशा :अब हम सरकार के दूसरे पहलू न्यायपालिका को देखते हैं। न्यायपालिका के शीर्ष पर भारत का सर्वोच्च न्यायालय बैठता है जिसे कभी-कभी दुनिया का सबसे शक्तिशाली न्यायालय कहा जाता है। 21 मार्च 2023 को 3 जजों की बैंच ने सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो के मामले में फैसला सुनाया। जमानत के मुद्दे पर इसी मामले में जुलाई 2022 में पारित अपने पहले फैसले को ध्यान में रखते हुए अदालत ने जो कहा उसे मैं यहां प्रस्तुत करता हूं :
‘‘वकीलों ने हमारे समक्ष सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम सी.बी.आई. और अन्य के मामले में फैसले के उल्लंघन में पारित आदेशों का एक समूह केवल  नमूने के रूप में पेश किया है कि कैसे जमीनी स्तर पर करीब 10 महीने बीत जाने के बावजूद विपथन है। यह कुछ ऐसा है जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है। 

हमारे विचार में यह सुनिश्चित करना उच्च न्यायालयों का कत्र्तव्य है कि उनकी देख-रेख में अधीनस्थ न्यायपालिका देश के कानून का पालन करती है। यदि कुछ  मैजिस्ट्रेटों द्वारा इस तरह के आदेश पारित किए जा रहे हैं तो न्यायिक कार्य को भी वापस लेना पड़ सकता है और उन मैजिस्ट्रेटों को कुछ समय के लिए उनके कौशल के उन्नयन के लिए न्यायिक अकादमियों में भेजा जा सकता है।’’ 

एक अन्य पहलू जिसे इंगित करने की मांग की गई है वह यह है कि न केवल न्यायालय का कत्र्तव्य है बल्कि सरकारी अभियोजकों का भी न्यायालय के अधिकारियों के रूप में न्यायालय के समक्ष सही कानूनी स्थिति की वकालत करना है। जिस तरह भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत ‘अभिव्यक्ति की आजादी की गारंटी है जो उसी तरह है जिस तरह अनुच्छेद 19 और 21 के तहत आजादी की गारंटी है।’ दोनों लोकतंत्र की बुनियादी, अपरिवर्तनीय विशेषताएं हैं। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा व्यक्त की गई पीड़ा कानून की दुर्दशा को दर्शाती है जो दबंग जांच एजैंसियों और एक उदार अधीनस्थ न्यायपालिका (उल्लेखनीय अपवादों के साथ) के बीच फंस गई है। 

पहलू 3 : शक्ति और दुर्दशा : 23 मार्च 2023 को कांग्रेसी नेता राहुल गांधी को एक राजनीतिक अभियान/साक्षात्कार के दौरान बोले गए कुछ शब्दों के लिए आई.पी.सी. की धारा 499 और 500 के तहत मानहानि के अपराध की एक शिकायत (भाजपा पदाधिकारी द्वारा) पर एक मैजिस्ट्रेट की अदालत द्वारा दोषी ठहराया गया था। उन्हें 2 साल की कैद की सजा सुनाई गई। 

गांधी का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों ने क्षेत्राधिकार की कमी, प्रतिक्रियात्मक त्रुटियों और प्रकट अन्याय के आधार पर विद्वान मैजिस्ट्रेट के फैसले में गलती पाई है। उन्होंने 2 साल के कारावास (कानून के तहत अधिकतम) की सजा को भी असामान्य रूप से कठोर माना। मजबूत राजनीतिक प्रवचन लोकतंत्र का सार है। गहन विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट हो जाएगा कि लोकतांत्रिक विपक्ष की एक प्रमुख आवाज को खामोश करवाने के लिए कानून की गति दी गई थी। कानून की ‘ताकत’ की शोरगुल भरी प्रशंसा को लोकतांत्रिक आवाजों की ‘दुर्घटना’ पर शांत आत्मनिरीक्षण द्वारा संयमित किया जाना चाहिए।-पी. चिदम्बरम


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