प्रवासियों पर हमले : गुजरात में भीड़तंत्र की मानसिकता हावी

punjabkesari.in Thursday, Oct 11, 2018 - 04:48 AM (IST)

बिहार तथा उत्तर प्रदेश से आए मजदूरों पर शृंखलाबद्ध हमले तथा उन्हें गुजरात छोडऩे की धमकियां अत्यंत ङ्क्षचताजनक हैं। प्रवासियों के खिलाफ हमले तब भड़क उठे जब 28 सितम्बर को साबरकांठा जिले में 14 माह की एक बच्ची के कथित अपहरण तथा उससे दुष्कर्म के आरोप में बिहार के 19 वर्षीय एक मजदूर को गिरफ्तार किया गया। 

हालांकि कोई आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, मगर हजारों प्रवासी मजदूर पहले ही राज्य को छोड़ कर जा चुके हैं। काफी ऐसे वीडियो तथा चित्र हैं, जिनमें बड़ी संख्या में प्रवासियों को अपने सिर पर छोटी गठरियां उठाकर बस स्टैंडों तथा रेलवे स्टेशनों पर कतारों में खड़े दिखाया गया है। प्रवासियों पर हमलों की 60 से अधिक घटनाएं रिपोर्ट की गई हैं और लगभग 500 लोगों को राज्य भर से गिरफ्तार किया गया है मगर स्थिति के वापस सामान्य होने के कोई संकेत नहीं हैं। किसी विशेष समुदाय के किसी सदस्य द्वारा किए गए अपराध को बहाना बनाकर उसके खिलाफ ङ्क्षहसा को बड़े लम्बे समय से इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसा अतीत में बड़े पैमाने पर असम, महाराष्ट्र और यहां तक कि बेंगलूर जैसे महानगरों में भी हाल में देखने को मिला जब कुछ वर्ष पूर्व स्थानीय भीड़ों ने उत्तर-पूर्वी राज्यों के निवासियों को निशाना बनाया। 

गुजरात में राजनीतिक दल भी काफी लम्बे समय से प्रवासियों के खिलाफ भावनाओं को भड़का रहे थे मगर गत वर्ष विधानसभा चुनावों के दौरान इन भावनाओं का इस्तेमाल किया गया। विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता वोटें हथियाने के लिए स्थानीय लोगों के लिए नौकरियों का मुद्दा उठाते रहे हैं। यहां तक कि पाटीदार आंदोलन भी स्थानीय लोगों के लिए नौकरियों के अवसरों के अभाव की मांग पर आधारित था। यहां तक कि अब भाजपा नेता ‘बाहरी लोगों’ के खिलाफ हिंसा भड़काने के लिए कांग्रेस नेता अल्पेश ठाकोर पर उंगलियां उठा रहे हैं।

यद्यपि उन्होंने आरोप का खंडन किया है और कहा है कि वीडियो, जिसमें उन्हें अन्य राज्यों के लोगों के खिलाफ बोलते दिखाया गया है, ‘पुराना’ था। जब भाजपा के एक प्रवक्ता से पूछा गया कि यदि यह सच था तो उन्हें गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया तो उन्होंने बचाव में यह कहा कि मामले की कानूनी तौर पर समीक्षा की जा रही है। दूसरी ओर कांग्रेस सारा दोष राज्य की भाजपा सरकार पर डाल रही है। इस बात में कोई संदेह नहीं कि बेरोजगारी की समस्या बढ़ती जा रही है, जो संबंधित सरकारों की रोजगार पैदा कर पाने में विफलता को प्रतिबिंबित करती है। गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने भी हाल ही में घोषणा की थी कि वह राज्य में स्थानीय लोगों के लिए 80 प्रतिशत नौकरियां आरक्षित करने के लिए एक विधेयक पारित करेंगे।

हालांकि यह गुजरात में प्रवासियों के प्रश्र तथा ‘बाहरी लोगों’ को नौकरियों पर प्रतिबंध के बारे में एक व्यंग्य के समान ही है। मामला गुजरात में उठाया जा रहा है जहां के निवासी देश से विदेशों में जाने वाले शीर्ष प्रवासियों में से एक हैं। वे अपने उद्यम तथा व्यापार कौशल के लिए जाने जाते हैं। इसके साथ ही उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि राज्य में मूलभूत ढांचा खड़ा करने का बड़ा श्रेय राज्य से बाहर के कार्यबल को जाता है। अब राज्य में नैनो कार फैक्टरी बंद करने की धमकियां मिल रही हैं और अमूल मिल्क प्लांट में काम करने वाले प्रवासी कर्मचारियों पर हमलों की रिपोट्स हैं। ऐसा दिखाई देता है कि गुजरात में एक बार फिर भीड़ तंत्र की मानसिकता हावी हो गई है तथा राज्य सरकार की या तो इसमें मिलीभगत है अथवा स्थिति से निपटने में असफल हो रही है। 

इस तरह की स्थिति देश भर में गम्भीर परिणामों का कारण बन सकती है। पहले ही ऐसे संकेत हैं कि कुछ राज्य किसी विशेष राज्य के बाहरी लोगों की संख्या रिकार्ड करने के लिए नैशनल रजिस्टर आफ सिटीजन्स की मांग कर रहे हैं। ऐसी मांग करने वालों में शामिल होने वाले नवीनतम हैं हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर। यह रुझान इसके मद्देनजर गम्भीर है कि यह सभी नागरिकों का मूलभूत अधिकार है कि वे देश के किसी भी हिस्से में रहें और निश्चित तौर पर विभिन्न राज्यों के लोग बिना किसी रोक-टोक के अन्य राज्यों में बसे हैं।

राजनीतिज्ञों द्वारा फैलाई जा रही नफरत की इस राजनीति के कारण पारस्परिक संदेह बढऩे का खतरा है। यह एक भारत तथा इसके सभी नागरिकों के लिए समान अवसरों के विचार के विरुद्ध जाता है। राजनीतिज्ञों को यह सुनिश्चित करने के लिए कि शांति बनी रहे तथा ऐसे रुझानों के साथ कड़ाई से निपटा जाए, अपने झगड़ों को समाप्त करना होगा। देश का विकास तभी हो सकता है जब देश को समृद्ध बनाने के लिए सभी हाथ मिला लें। गुजरात में जो हो रहा है वह आत्मघाती है।-विपिन पब्बी


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Pardeep

Recommended News