अटल जी चले गए पर अटल जी कभी जाएंगे नहीं

punjabkesari.in Monday, Aug 20, 2018 - 03:31 AM (IST)

संवेदनशील राजनीति के प्रणेता अटल जी चले गए पर अटल जी कभी जाएंगे नहीं। उनका विशाल व्यक्तित्व, विचार और कार्य सदा हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे।अटल बिहारी वाजपेयी जी केवल एक नेता नहीं, भारतीय राजनीति में समन्वय और उदारवाद के प्रणेता और 1977 के जनता पार्टी के प्रयोग की विफलता के बाद गठबंधन सरकार चलाने का प्रयोग सफल करने वाले पहले नेता थे।

आपातकाल के काले अध्याय के बाद देश में बड़ी आशाओं के साथ जनता पार्टी की सरकार बनाई। अच्छा प्रारंभ हुआ परन्तु फूट पड़ी, पार्टी टूटी और सरकार भी टूट गई। जनमानस में एक निराशा-हताशा छाई और एक धारणा पैदा की जाने लगी कि कांग्रेस के अतिरिक्त कोई भी देश की सरकार नहीं चला सकता। किसी एक पार्टी के पास बहुमत न था, न हो सकता था। राजनीतिक निराशा के उस वातावरण में अटल जी के नेतृत्व में राष्ट्रीय गठबंधन बना, चुनाव लड़ा और सरकार बनाई। परस्पर विचार-विरोधी बाइस राजनीतिक दलों को एक साथ करके सफलता से सरकार चलाने का प्रयोग भारत की राजनीति में एक नया अध्याय था। जार्ज फर्नांडीस जैसे उग्र विचारधारा वाले समाजवादी नेता और राष्ट्रीय स्वयंसेवक से आए भाजपा के नेता-अटल जी ने सबको साथ चलाया। सरकार पूरे समय चली और बहुत बढिय़ा काम हुआ। अटल जी के नेतृत्व में इस धारणा को समाप्त किया गया कि कांग्रेस के अतिरिक्त देश में कोई भी सरकार नहीं चला सकता। 

अटल जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक थे, प्रचारक रहे और हिंदुत्व पर उनका अटल विश्वास था। उनकी कविता, ‘हिंदू तन-मन हिंदू जीवन, रग-रग हिंदू मेरा परिचय’ उनके हिंदुत्व को पूरी तरह से प्रकट करती थी। इस सबके बाद भी उन पर कभी साम्प्रदायिक होने का आरोप नहीं लग सका। इसका एक ही कारण था कि अटल जी का हिंदुत्व वेदांत का ङ्क्षहदुत्व था। स्वामी विवेकानंद द्वारा परिभाषित हिंदुत्व था। उसमें कभी संकीर्णता व कट्टरपन निकट नहीं आया। सच्चाई यह है कि जहां कट्टरता है वहां हिंदुत्व नहीं हो सकता और जहां हिंदुत्व है वहां कट्टरता भी नहीं हो सकती। 

भारतीय जनसंघ और उसके बाद भाजपा पर सबसे बड़ा आरोप साम्प्रदायिकता का लगाया जाता था परन्तु अटल जी के व्यवहार और भाषणों से यह आरोप बहुत सीमा तक समाप्त हुआ और उन्हें संघ और भाजपा के सैक्युलर चेहरे के नाम से जाना जाने लगा। भारतीय जनसंघ के साथ राजनीतिक दूरी समाप्त हुई। हिंदुत्व के प्रति उनके इस उदार दृष्टिकोण के कारण संघ और भाजपा से उनके मतभेद भी हुए। बाबरी मस्जिद पर भी उनका एक अलग दृष्टिकोण था। इस संबंध में उनके साथ मेरी कई बार बात भी हुई थी, पर वह अपने मतभेद बड़ी शालीनता व मर्यादा के साथ व्यक्त करते थे। 

वोट बैंक व मूल्य विहीन राजनीति के रेगिस्तान में अटल जी मूल्यों व नैतिकता की राजनीति के एक उपवन थे। विरोध के लिए विरोध और संकीर्णता की राजनीति से बहुत ऊपर थे। वह कहा करते थे, ‘राजनीति की दीवारें बहुत छोटी हैं और राष्ट्र का मंदिर बहुत ऊंचा है।’ ‘‘हम केवल सरकार ही नहीं बनाना चाहते हम तो समाज बनाना चाहते हैं।’’ ‘‘मैं उनमें से नहीं हूं जो यह कहते हैं कि कांग्रेस ने देश के लिए कभी कुछ नहीं किया।’’ 13 दिन की सरकार के बाद त्यागपत्र देते समय उन्होंने कहा था : ‘‘किसी दल को तोड़ कर नया गठबंधन बनाकर यदि सत्ता मिलती है तो उस सत्ता को मैं चिमटे से भी छूना नहीं चाहूंगा।’’ 

हिमाचल में 1985 के चुनाव में भाजपा को 29 और कांग्रेस को 31 सीटें मिलीं। 6 निर्दलीय जीते। जोड़-तोड़, तोल-भाव होने लगा। मुझ पर दबाव था कि कुछ भी करके सरकार बनाई जाए। मैं राजनीति की खरीद-फरोख्त में शामिल नहीं होना चाहता था। मैंने सार्वजनिक रूप से कह दिया था, ‘‘मैं जिंदा मांस का व्यापारी नहीं हूं।’’ मैंने यहां तक कह दिया यदि पार्टी को विधायक खरीद कर सरकार बनानी हो तो पार्टी नेता बदल लें। शिमला में हलचल बढ़ी। कुछ विधायक मेरे विरोधी हो गए। अटल जी जयपुर में थे, मैंने फोन पर अपनी व्यथा बताई। उन्होंने वहीं से घोषणा की, ‘‘हिमाचल में जनता ने हमें विपक्ष में बैठने का आदेश दिया है। जोड़-तोड़ से सरकार नहीं बनाएंगे।’’ मैंने राहत की सांस ली। 

29 विधायक जीतने के बाद यह बात अटल जी ही कर सकते थे। मैं 29 विधायकों को लेकर सारे प्रदेश में घूमा और जनता का धन्यवाद किया। विपक्ष की भूमिका निभाई, संगठन बढ़ाया। इन सबका परिणाम यह हुआ कि उसके बाद 1990 के चुनाव में भाजपा को अभूतपूर्व ऐतिहासिक विजय मिली। समझौते में 51 सीटें लड़ीं और 46 जीतीं। ऐसी जीत कभी किसी को नहीं मिली थी। अटल जी के व्यक्तित्व में कई विशेषताएं थीं। वह कवि थे, उनका कवि-हृदय राजनीति में भी झलकता रहा। मुझे उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व में उनकी संवेदनशीलता बहुत महत्वपूर्ण लगती है। उनके मंत्रिमंडल में मैं खाद्य मंत्री बना। 

सैंपल सर्वे की एक रिपोर्ट पढ़ी उसमें लिखा था कि देश में गरीबी रेखा से नीचे 26 करोड़ लोग हैं परन्तु 5 करोड़ लोग इतने गरीब हैं कि रात को भूखे पेट सोते हैं। उस समय देश में अनाज की कमी नहीं थी। भंडार भरे पड़े थे। बाहर रखा अनाज खराब हो जाता था। वह रिपोर्ट पढ़कर मैं बहुत चिंतित हुआ। अटल जी के पास गया, उनसे एक योजना बनाने की अनुमति ली। सबसे सलाह करके अन्त्योदय अन्न योजना बनाई। अति गरीब 10 करोड़ लोगों को 25 किलो अनाज, 2 रुपए किलो गेहूं और 3 रुपए किलो चावल देने का प्रावधान किया। 

योजना जब मंत्रिमंडल में गई तो आर्थिक कारणों से वित्त विभाग ने इसका विरोध किया। समाचार पत्रों में योजना की चर्चा होने लगी। एक प्रमुख समाचार पत्र ने लम्बी टिप्पणी की कि शांता कुमार गरीबों के लिए बड़ी योजना बनाना चाहते हैं परन्तु यशवंत सिन्हा लगातार विरोध कर रहे हैं। इससे यशवंत सिन्हा मुझसे नाराज हो गए थे। वह बिना कारण विरोध कर रहे थे। मेरे आग्रह पर दो बार मंत्रिमंडल में योजना पर फिर विचार हुआ। मंत्री समूह बना, अनुकूल सिफारिश हुई परन्तु वित्त मंत्रालय के विरोध के कारण योजना स्वीकृत नहीं हुई। मैं उन दिनों बहुत परेशान रहता था। यह सोचकर कि अनाज के भंडार भरे पड़े हैं और करोड़ों लोग भूखे पेट सोते हैं। 

25 दिसम्बर, 2000 को अटल जी के जन्मदिन पर प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना प्रारंभ की जा रही थी। कुछ दिन पहले कालाहांडी में भुखमरी से 10 लोगों की मृत्यु हो गई। समाचार पढ़कर मैं बहुत अधिक व्यथित हुआ। समाचार पत्र लेकर अटल जी के पास पहुंचा और उनके सामने रख दिया। वह पढऩे लगे, भावुक हो गए, सजल नैनों से मेरी तरफ देखा। भावुकता से मुझसे कहा गया, ‘‘मुझे मैं खुद और आप अपराधी लग रहे हैं।’’ हैरान होकर पूछने लगे, ‘‘कैसे?’’ मैंने कहा, ‘‘मैं देश का खाद्य मंत्री और आप प्रधानमंत्री, अनाज के भंडार भरे पड़े हैं और कालाहांडी में भुखमरी से कुछ लोग मर गए।’’ अटल जी की आंखें सजल थीं, कुछ बोले नहीं। 

कुछ देर के बाद मैंने कहा, ‘‘यदि अंत्योदय अन्न योजना लागू कर दी होती तो भुखमरी से ये मौतें कभी न होतीं।’’ वह सुनते रहे और चुप रहे। मैंने फिर कहा, ‘‘अटल जी, क्या ही यह अच्छा हो यदि आपके जन्मदिन पर प्रधानमंत्री ग्राम सड़़क योजना के साथ ही अंत्योदय अन्न योजना का भी शुभारंभ हो जाए।’’ भावुक होकर सजल नेत्रों से कुछ देर सोचने के बाद अटल जी अपने अंदाज में एक दम बोल पड़े, ‘‘ठीक है योजना शुरू कर दो।’’ मैं बहुत प्रसन्न हुआ। मंत्रिमंडल की स्वीकृति के बिना 25 दिसम्बर, 2000 को अंत्योदय अन्न योजना प्रारंभ कर दी गई। गरीबों को सस्ता अनाज देने की विश्व की यह सबसे बड़ी योजना थी। खाद्य सुरक्षा अधिनियम का आधार यही योजना बनी जिसके अनुसार आज देश के 80 करोड़ लोगों को सस्ता अनाज मिल रहा है। यदि अटल जी की तरह एक संवेदनशील प्रधानमंत्री न होता तो इस रूप में यह योजना उस समय कभी भी प्रारंभ न हुई होती। 

कुछ दिनों के बाद मुझे बताया गया कि देश में कुछ लोग इतने अधिक गरीब हैं कि 2 रुपए और 3 रुपए में भी अनाज नहीं खरीद सकते। मैंने ऐसे अति गरीब लोगों के लिए अन्नपूर्णा योजना बनाई। अटल जी ने स्वीकृति दी। उस योजना के अनुसार ऐसे गरीब लोगों को 10 किलो अनाज मुफ्त दिया जाने लगा। अटल जी उच्च कोटि के राजनेता, विचारक कवि, गंभीर चिंतक थे परन्तु साथ ही अत्यंत विनोदप्रिय भी थे। अटल जी जब चुनाव हार गए तो मैं और कृष्ण लाल शर्मा उनसे मिलने गए, उन्होंने भोजन के लिए हमें भी रोक लिया। कृष्ण लाल जी ने उनसे कहा कि मध्य प्रदेश में एक कार्यक्रम के लिए उनका समय मांग रहे हैं। गुस्से से भरे अटल जी ने कहा कि वह किसी कार्यक्रम में नहीं जाएंगे। 

कृष्ण लाल जी ने दो बार पूछा, गुस्से से भरे अटल जी ने इन्कार कर दिया। भोजन के बाद हम विदा लेने लगे तो कृष्ण लाल जी गंभीर होकर बोले, ‘‘अटल जी, मैं कार्यक्रम के लिए आपकी तरफ से मना कर रहा हूं, पर एक बात पूछना चाहता हूं। शांता कुमार का परिवार है, व्यवसाय है उसमें लग जाएंगे, पर आप बताएं आप कार्यक्रम में नहीं जाएंगे तो करेंगे भी क्या?’’ सुनते ही अटल जी जोर से हंसने लगे। सारी गंभीरता व गुस्सा एकदम समाप्त हो गया। ऐसे मौकों पर उनकी उन्मुक्त हंसी लाजवाब थी। हम तीनों बड़ी देर तक हंसते रहे। फिर थोड़ा गंभीर होकर कहने लगे, ‘‘ठीक कह रहे हो, मैं करूंगा भी क्या? बना दो मेरा कार्यक्रम।’’

बहुत पहले की बात है सोलन में उनका कार्यक्रम हुआ। पार्टी की ओर से 11 हजार रुपए की थैली भेंट की गई। तब 11 हजार बहुत बड़ी धनराशि थी। भाषण के बाद चाय पर कुछ कार्यकत्र्ता बैठे थे। एक कार्यकत्र्ता बोला, ‘‘अटल जी, बहुत बढिय़ा था आपका भाषण, पर आपने छोटा भाषण किया। जनता और अधिक सुनना चाहती थी।’’ चाय की चुस्की के साथ अटल जी बोले, ‘‘11 हजार में और कितना भाषण हो सकता था।’’ सब हंसी में लोट-पोट होने लगे। उनकी गंभीरता में भी विनोद और उल्लास का रस रहता था।-शांता कुमार


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Pardeep

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