कोरोना : इस समय मुसलमानों की न केवल सामाजिक बल्कि धार्मिक ‘जिम्मेदारी’ भी है

punjabkesari.in Thursday, Apr 09, 2020 - 03:53 AM (IST)

आज जबकि पूरी दुनिया कोरोना वायरस की महामारी की चुनौती से निपटने के लिए परिश्रम कर रही है और विभिन्न सरकारी तथा निजी संगठन इस अवसर पर विभिन्न प्रयत्न कर एहतियाती उपाय कर रहे हैं और भारत की केन्द्र सरकार व प्रांतीय सरकारें इस आपदा से निपटने के लिए अलग-अलग योजनाएं बना रही हैं और डाक्टर, नर्स, पुलिस और विभिन्न सरकारी विभाग इस आपदा से दुनिया को बचाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर भारत में हाल ही की कुछ घटनाओं के परिणामस्वरूप इस आपदा के अवसर पर इस्लाम को भी निशाना बनाया जा रहा है और इस्लाम को इस बीमारी के फैलाने के लिए दोषी ठहराया जा रहा है। 

अधिकारियों का आज्ञापालन एक मुसलमान का धार्मिक कत्र्तव्य है 
अहमदिया मुस्लिम जमात भारत सबसे पहले केन्द्र तथा राज्य सरकारों के प्रति अपना आभार व्यक्त करती है कि इस अवसर पर उन्होंने इस महामारी को नियंत्रित करने तथा लोगों की बेहतरी के लिए कई एहतियाती उपाय किए हैं। सरकार ने लोगों का मार्गदर्शन करते हुए बीमारी से निपटने के लिए कई दिशा-निर्देश भी दिए हैं। सरकार के सभी दिशा-निर्देशों का पालना करना एक मुसलमान का धार्मिक कत्र्तव्य है। इस्लामी शिक्षाओं के मद्देनजर इन निर्देशों का पालन करने के परिणामस्वरूप न केवल एक मुसलमान खुद को बीमारी से बचा सकता है, बल्कि यह मुस्लिम की सामाजिक जिम्मेदारी है और मानव जाति के साथ सहानुभूति की अभिव्यक्ति भी है जो वास्तव में शिक्षाओं का मूल है। 

संक्रामक रोग से निपटने के लिए इस्लामी सावधानियां
इस्लाम ने हमेशा बीमारियों से निपटने के लिए जहां दुआओं पर जोर देने का आग्रह किया है वहां सावधानी बरतने का भी निर्देश दिया है क्योंकि दुआ के साथ किया गया कार्य ही सफल हो सकता है। इस्लाम के संस्थापक हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने महामारी रोगों की रोकथाम के लिए भी शिक्षाएं प्रदान की हैं। उन्होंने कहा कि यदि तुम्हें किसी भी स्थान पर महामारी के फैलने की सूचना मिले, तो तुम उस क्षेत्र में प्रवेश न करना और यदि तुम उस प्रभावित क्षेत्र में उपस्थित हों तो उस क्षेत्र से बाहर न निकलना। सरकारों की ओर से जो यात्रा-प्रतिबंध और क्वारंटाइन के दिशा-निर्देश दिए जा रहे हैं वे वास्तव में इसी शिक्षा से समानता रखते हैं। 

इस्लाम महामारी के समय में सामाजिक दूरी बनाए रखने का आग्रह करता है
हजरत नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बीमारों के लिए एक-दूसरे से दूरी बनाए रखने के निर्देश भी दिए हैं। एक व्यक्ति जिसे कुष्ठ रोग था, जब उसने इस्लाम में सम्मिलित होने के लिए बैअत (हाथ पकड़ कर निष्ठा का इजहार) करने की इच्छा व्यक्त की, तो आपने फरमाया कि उसकी निष्ठा स्वीकार कर ली गई है लेकिन इस व्यक्ति को अपने घर वापस चले जाना चाहिए। एक अन्य अवसर पर, आप ने फरमाया कि एक बीमार व्यक्ति को एक स्वस्थ व्यक्ति से नहीं मिलना चाहिए ताकि स्वस्थ व्यक्ति भी बीमारी से प्रभावित न हो जाए। उन्होंने ये शिक्षाएं केवल इंसानों के लिए नहीं, बल्कि जानवरों के लिए भी दी है। आज कुछ मुसलमानों को क्वारंटाइन तथा सामाजिक दूरी से संबंधित नियमों का पालन करना मुश्किल लग रहा है जबकि स.अ.अ. ने इसे धार्मिक दायित्व बताया है। 

इस्लाम और स्वच्छता
इस्लाम हमें खुद को साफ-सुथरा रखने की प्रेरणा देता है और स्वच्छता को ईमान (आस्था) का हिस्सा करार देता है। पांच समय वुजू के दौरान एक व्यक्ति हाथ और नाक साफ करता है। हुजूर स.अ.अ. का यह आदर्श है कि जब आप छींकते थे तो अपना चेहरा ढंक लेते थे। ये क्रियाएं इन दिनों इस महामारी से खुद को बचाने के लिए आवश्यक चिकित्सक उपाय बन गई हैं। इस्लाम दुआ (प्रार्थना) के साथ-साथ मैडीकल चिकित्सा की सलाह देता है इस्लाम ने हमेशा बीमारी के इलाज के लिए दुआ के साथ-साथ दवाओं के उपयोग का आह्वान किया है। हजरत मो. स.अ.अ. ने कहा है कि हर बीमारी की एक दवा होती है। अगर दुआ के साथ उस दवा का इस्तेमाल किया जाए तो अल्लाह उसे ठीक कर देता है। 

इस्लाम ऐसे अवसरों पर मुसलमानों को बिना धार्मिक तथा कौमी भेदभाव के मानव जाति की सेवा की ओर भी ध्यान दिलाता है और प्रभावित लोगों की सहायता का आदेश देता है। हजरत उमर जब एक ऐसे क्षेत्र से गुजरे जहां कुछ ईसाई कुष्ठ रोग से पीड़ित थे, तो उन्होंने तुरंत उन्हें वित्त पोषित किया और उन्हें चिकित्सा सुविधा प्रदान करने का आदेश दिया। 

ये हैं इस्लाम की सर्वोच्च शिक्षाएं जो पूर्णत: मानव स्वभाव के अनुरूप हैं। संक्रमित महामारियों में जो सावधानियां अपनाने की आवश्यकता है तथा जिन चिकित्सा संबंधी निर्देशों का पालन आवश्यक है, इस्लाम और हजरत मोहम्मद स.अ.अ. ने बड़े स्पष्ट रूप से उनका वर्णन कर दिया है। लेकिन आजकल कुछ मुसलमान चूंकि इस्लाम की इन वास्तविक शिक्षाओं को भूल गए हैं इसलिए उनको महामारी के अवसर पर अपनी सामाजिक तथा धार्मिक जिम्मेदारियों का आभास नहीं है। 

अहमदिया मुस्लिम जमात भारत इस्लाम की शिक्षाओं के अनुसार काम करने वाली जमात है। सरकारी नियमों का पालन इस जमात की एक विशिष्ट विशेषता है। इमाम जमात-ए-अहमदिया हजरत मिर्जा मसरूर अहमद साहिब ने 27 मार्च 2020 ई. को एक विशेष संदेश में विश्व के 213 देशों में रहने वाले अहमदियों को निर्देश दिया कि जो भी उनके देश के कानून हैं उनका पालन करना हर अहमदी का कत्र्तव्य है। उन्होंने सलाह दी कि अहमदी मुसलमान नियमित रूप से अपनी पांच नमाजें और जुम्मे की नमाज अपने घरों में, अपने परिवारों के साथ अदा करें और सरकार के नियमों के अनुसार अपने घर में ही रहें और इन दिनों में अपने ज्ञान को बढ़ाने का प्रयत्न करें। इसके साथ-साथ वैश्विक जमात अहमदिया के इमाम ने बहुत अधिक दुआएं करने का निर्देश दिया है। 

लॉकडाऊन का पालन करने में अहमदी लोग सबसे आगे हैं
कादियां, जो अहमदिया मुस्लिम जमात भारत का मुख्यालय है, यहां पर भी सरकारी नियमों की पूरी तरह से पालना की जा रही है। अहमदी मुसलमान अपने घरों में ही नमाजें पढ़ रहे हैं। जिले में शीर्ष पुलिस अधिकारी ने मीडिया में बयान दिया कि ‘कादियां’ जिलेभर में लॉकडाऊन आदेशों का पालन करने में सबसे आगे है। कुलगाम (जम्मू-कश्मीर) में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने एक अहमदी के अंतिम संस्कार में अपने विचार इस प्रकार व्यक्त किए कि ‘‘इस जमात ने लाकडाऊन के कानूनों का पूरी तरह से पालन किया है। लॉकडाऊन दौरान जमात-ए-अहमदिया के स्वयंसेवकों ने संबंधित विभाग की अनुमति से देशभर में 15 हजार से अधिक जरूरतमंद परिवारों को दो सप्ताह का आवश्यक राशन पहुंचाया है और 40,000 से अधिक गरीबों को खाना खिलाया है। 

आज जरूरत इस बात की है कि कोरोना वायरस की आपदा से निपटने के लिए हम सभी खुदा से अधिक दुआ करें और सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पूरी तरह से पालन करें और इसी प्रकार हम सबको एकजुट होकर इस महामारी से निपटने की कोशिश करनी चाहिए। अल्लाह ताला इस विपदा से दुनिया को बचाए। आमीन -के. तारीक अहमद(प्रैस सचिव अहमदिया जमात, कादियां)


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