आसिया अंद्राबी की गिरफ्तारी पाक-परस्तों के लिए कड़ा संदेश

punjabkesari.in Wednesday, Jul 11, 2018 - 04:14 AM (IST)

आसिया अंद्राबी की गिरफ्तारी पर अलगाववादी, विखंडनकारी और पाकिस्तान परस्त बिलबिलाए पड़े हैं, उलटे-पुलटे आरोप जड़ रहे हैं, भारत सरकार को खलनायक बता रहे हैं, आसिया अंद्राबी को निर्दोष और अपने आप को पीड़ित भी बता रहे हैं, धमकियां दे रहे हैं कि इसके दुष्परिणाम भयानक होंगे? 

उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान परस्ती और आतंकवाद का संरक्षण-समर्थन देने के आरोप में तालिबानी संगठन दुख्तरान-ए-मिल्लत की प्रमुख आसिया अंद्राबी को एन.आई.ए. ने गिरफ्तार किया है। दुष्परिणाम भयानक क्या होंगे? अलगाववादी और पाकिस्तान परस्त तो आतंकवाद व हिंसा का हर अवसर लपकने के लिए तैयार होते हैं। उनके आरोप और उनकी चेतावनियां-धमकियां कोई ज्यादा असरकारी होंगी नहीं, न ही भारत सरकार अपना रुख बदलने वाली है, और न ही भारतीय सेना तथा अन्य भारतीय सुरक्षा एजैंसियां उनको कोई रियायत देने के लिए तैयार होंगी। 

मान-मनोव्वल का समय समाप्त हो गया है, जब अलगाववादियों, विखंडनकारियों और पाकिस्तान परस्तों की हर मांग पर सहानुभूतिपूर्वक विचार होता था, उनकी हर हिंसा को नजरअंदाज कर दिया जाता था। आखिर क्यों? इसलिए कि इन्हेंं शांति और वार्ता का अवसर दिया जाए इसलिए सैंकड़ों पत्थरबाजों को माफी दी गई, रमजान के अवसर पर एकतरफा युद्ध विराम किया गया। इसका दुष्परिणाम क्या निकला, यह कौन नहीं जानता है, आतंकवादी हिंसा बढ़ी, पाकिस्तान की तरफ  से फायरिंग बढ़ी। विखंडनकारी और पाकिस्तान परस्त यह खुशफहमी पाल रखे थे कि अब भारत सरकार तो कुछ करने ही वाली नहीं है। जब नाउम्मीदी उत्पन्न होती है तब सैनिक-पुलिस कार्रवाई का विकल्प बचता है, भारत सरकार इसी विकल्प का प्रयोग कर रही है। अब आतंकवाद समर्थक राजनीति कश्मीर में नहीं चल सकती है। 

जब-जब लोकतांत्रिक शासन कश्मीर के अंदर अस्तित्व में होता है, तब-तब आतंकवाद और हिंसा बढ़ जाती है, राष्ट्र विरोधी अराजक हो जाते हैं, उनकी अराजकता शांति को भंग करती है, पुलिस और सेना पर हिंसक बन कर टूटती है। कश्मीर का इतिहास यह कहता है कि जब-जब लोकतांत्रिक शासन ने कश्मीर समस्या के प्रति गंभीरता दिखाई है, समाधान के ङ्क्षबदू तलाशे हैं, तब-तब पाकिस्तान की पैंतरेबाजी, हिंसक कारस्तानी सामने आई। उसनेे अपने मोहरे संगठनों को हिंसक रूप से सक्रिय कर दिया। भाजपा ने भी पी.डी.पी. के साथ मिलकर लोकतांत्रिकसरकार की स्थापना की थी। पी.डी.पी. की ङ्क्षहसक व विखंडन प्रक्रिया के साथ दोस्ती जगजाहिर थी, परन्तु भाजपा यह भी समझती थी कि पी.डी.पी. और विखंडनकारियों की दोस्ती जल्द छूटने वाली नहीं है। फिर भी उसने पी.डी.पी. के साथ मिल कर लोकतांत्रिक सरकार बनाई थी। 

भाजपा को उम्मीद थी कि अच्छी सरकार और अच्छे प्रशासन का लाभ उठाया जा सकता है, अलगाववादियों, विखंडनकारियों और पाकिस्तान परस्तों की सक्रियता तोड़ी जाए, उनके समर्थन को तोड़ा जाए पर पी.डी.पी. की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती की विखंडनकारी सोच टूटी नहीं। महबूबा की सोच हमेशा की तरह विखंडनकारियों के प्रति नरम रही। दरअसल महबूबा की सोच गलत थी, वह सोचती थीं कि भाजपा की मजबूरी के कारण उसकी अराजकता और आतंकवाद समर्थक नीति चलती रहेगी। सेना के अधिकारियों पर मुकद्दमे चलने लगे, पुलिस और सेना के अधिकारियों का मनोबल तोड़ा जाने लगा। फलस्वरूप लोकतांत्रिक सरकार दफन हुई। मोदी पर आतंकवादी संगठनों और पाकिस्तान पर कड़ा प्रहार करने का दबाव था। 

आसिया अंद्राबी जैसे ङ्क्षहसक व  विखंडनकारी और पाकिस्तान परस्त आतंकवादियों को तभी समझ में आ जाना चाहिए था जब भाजपा ने पी.डी.पी. के साथ गठबंधन तोड़ा था और जम्मू-कश्मीर की सरकार गिराई थी। नरेन्द्र मोदी सरकार के सामने कोई दूसरा चारा भी नहीं था। अगर वह आतंकवादियों पर सख्त कार्रवाई करने के लिए तैयार नहीं होती तो फिर उनका आधार ही समाप्त हो जाता। उधर पाकिस्तान अब पहले की तरह मजबूत नहीं है, वह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत विरोधी भावनाएं नहीं भड़का सकता है, क्योंकि उसकी छवि एक आतंकवादी देश की है। दुनिया यह मान चुकी है कि पाकिस्तान दुनिया भर में आतंकवाद की आऊटसोर्सिंग करता है, कश्मीर में पाकिस्तान ही आतंकवादी हिंसा की जड़ में है। 

भारत अब मजबूती के साथ दुनिया के देशों के सामने पाकिस्तान परस्त आतंकवाद की पोल खोल रहा है और दुनिया को आईना दिखा रहा है कि पाकिस्तान परस्त आतंकवाद सिर्फ  भारत के लिए नहीं बल्कि पूरी मानवता के लिए खतरनाक है। आसिया अंद्राबी के आतंकवादी कारनामे कोई छोटे नहीं हैं, नजरअंदाज करने वाले नहीं हैं। इनके कारनामे बड़े हिंसक, मानवता को शर्मसार करने वाले, तालिबानी हैं। इनकी मानसिकता आई.एस. की, अलकायदा की है। कश्मीर के अंदर वह तालिबानी शासन लागू करना चाहती थी, इसके लिए वह हिंसा का सहारा लेती थी। वह बुर्का पहनना अनिवार्य करना चाहती थी, जिसके समर्थन में उसने अभियान भी चलाया था। वह किसी भी स्थिति में कश्मीर के अंदर कैफे संस्कृति विकसित नहीं होने देना चाहती थी, कैफे जाने वाली लड़कियों पर हमला कराने का आरोप भी उस पर लगा था। 

वह यह भी कहती थी कि जो महिलाएं और लड़कियां इस्लाम का आदेश न मानकर बुर्का नहीं पहनती हैं वे सभी सजा के लायक हैं। आसिया अंद्राबी के अभियान से प्रेरित होकर कई युवकों ने बुर्का न पहनने वाली लड़कियों पर हिंसा भी बरपाई थी। आसिया की इस तालिबानी करतूत की कश्मीर में बड़ी आलोचना भी हुई थी। उदार संस्कृति के पक्षधर लोगों के बीच आसिया अंद्राबी डर पैदा करती थी। आसिया अंद्राबी पर पाकिस्तान परस्ती हमेशा हावी रहती है। वह कहती है कि उसे पाकिस्तान में मिलना है, उसका संघर्ष पाकिस्तान के लिए है। पाकिस्तान में उसे मजहबी शांति मिलेगी। वह भारत को काफिर देश कहती है। काफिर की मानसिकता क्या है? 

काफिर की मानसिकता बड़ी ही खतरनाक और जहरीली है। गैर मुस्लिमों को काफिर कहा गया है। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि वह हर साल पाकिस्तान डे मनाती है और न केवल पाकिस्तान की प्रशंसा करती है बल्कि भारत के खिलाफ  आग उगलती है। भारत को वह हिंसक देश कहती है। अब तक उसे पाकिस्तान डे मनाने की आजादी कैसे मिली? भारत सरकार की कमजोरी का लाभ उसने खूब उठाया है। एन.आई.ए. ने आसिया अंद्राबी को गिरफ्तार कर प्रहारक संदेश दिया है। विखंडनकारी और ङ्क्षहसक आतंकवादियों को वह संदेश समझ लेना चाहिए कि अब उनकी पाकिस्तान परस्ती चलने वाली नहीं है। दुनिया अब कश्मीर में आतंकवादी हिंसा की जड़ को समझ चुकी है। 

कश्मीर में पाकिस्तान परस्त आतंकवादी संगठनों की सबसे बड़ी शक्ति भारत और दुनिया के मानवाधिकार संगठन रहे हैं पर ये संगठन अब खुद ही संदेह के घेरे में हैं इसीलिए आसिया अंद्राबी की गिरफ्तारी पर कोई बड़ा देश या बड़ा नियामक विरोध में सामने नहीं आया है। सेना और पुलिस के दबाव से पाकिस्तान परस्त आतंकवादी संगठनों के हौसले पस्त हैं। कई कुख्यात आतंकवादी सरगना मारे गए हैं। अब पाकिस्तान परस्त आतंकवाद पर अंतिम कील ठोंकने की जरूरत है। इसकी शुरूआत आसिया अंद्राबी की गिरफ्तारी से हो चुकी है।-विष्णु गुप्त    


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Pardeep

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