भाजपा के ‘संकटमोचक’ थे अरुण जेतली

Monday, Aug 26, 2019 - 02:36 AM (IST)

भाजपा के संकटमोचक, तेजतर्रार वकील, राजनेता, क्रिकेट प्रशासक, मंत्री और एक सच्चे मित्र अरुण जेतली का 66 वर्ष की उम्र में 24 अगस्त को एम्स में दोपहर 12.07 बजे निधन हो गया। उन्हें 7 अगस्त को सांस लेने में तकलीफ की शिकायत के बाद एम्स में भर्ती करवाया गया था। जेतली ने 1973 में श्री राम कालेज से स्नातक की पढ़ाई की और 1974 में दिल्ली यूनिवॢसटी छात्र संघ के अध्यक्ष बने। 1980 में वह भाजपा में शामिल हुए और तब से भाजपा की राजनीति में सक्रिय रहे। शुरू से ही उन्होंने अपने संगठन के लिए न्यायालय, संसद तथा राजनीति के मैदान में सक्रिय भूमिका निभाई। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) के कार्यकत्र्ता के समय से लेकर अंत तक वह मीडिया के प्रिय बने रहे और पार्टी के मुख्य प्रवक्ता थे तथा हमेशा पार्टी के फ्रंट पर रहते थे। 

वह पार्टी में कई प्रवक्ताओं को लेकर आए और अशोक रोड स्थित उनका आधिकारिक आवास वर्षों तक मीडिया रूम के रूप में रहा जबकि वह खुद अपने कैलाश कालोनी स्थित  बंगले में रहते थे। उन्होंने एक ऐसे नेता के तौर पर प्रसिद्धि पाई जिसने 2004 तथा 2014 के बीच कई महत्वपूर्ण चुनावों में पार्टी को विजय दिलाई। उन्हें गुजरात, मध्य प्रदेश, बिहार और कर्नाटक में पार्टी का राज्य प्रभारी बनाया गया था। 2009 से 2014 तक वह राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे। संसद में होने वाली महत्वपूर्ण चर्चाओं में भाजपा की ओर से वही शुरूआत करते थे। 

वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अच्छे दोस्त थे और उन्होंने मोदी के गुजरात में मुख्यमंत्री होने से लेकर बाद के समय तक सार्वजनिक क्षेत्र में तथा न्यायालयों में मोदी का बचाव किया। वित्त मंत्री के तौर पर जब जेतली ने कामकाज संभाला तो विकास दर गिर रही थी। ऐेसे समय में उन्होंने जी.एस.टी. तथा इन्सॉल्वैंसी एंड बैंकरप्सी कानून लागू करके अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी। जेतली की एक बड़ी उपलब्धि जी.एस.टी.कौंसिल का लोकतांत्रिक रूप से संचालन था जिसमें विपक्ष शासित राज्यों के वित्त मंत्रियों को भी शामिल किया गया था। विपक्षी नेताओं का कहना है कि उन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र में एक अच्छा व्यक्ति, एक शालीन इंसान, एक सम्मानित प्रोफैशनल राजनीति का एक विद्यार्थी एक उल्लेखनीय कम्युनिकेटर तथा एक नजदीकी दोस्त खो दिया है। 

अखिलेश-राजभर गठबंधन
लोकसभा चुनावों के बाद मायावती ने उत्तर प्रदेेश में समाजवादी पार्टी से गठबंधन तोड़ लिया जिसके बाद बहुत से नेता और कार्यकत्र्ता समाजवादी पार्टी को छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। अब सपा प्रमुख अखिलेश यादव छोटी पाॢटयों से गठबंधन का प्रयास कर रहे हैं ताकि उनके नेता और कार्यकत्र्ता पार्टी छोड़ कर न जाएं और उनका उत्साह बरकरार रहे। शुक्रवार को अखिलेश यादव ने ओम प्रकाश राजभर से मुलाकात की और यह फैसला किया कि दोनों दल 13 विधानसभा उपचुनावों को एक साथ मिलकर लड़ेंगे। यह बैठक सपा कार्यालय लखनऊ में हुई। 

राजभर की पार्टी ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में 12 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था और प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र में 20,000 से लेकर 40,000 तक वोट हासिल किए थे। राजभर चाहते हैं कि उनकी पार्टी के उम्मीदवार आगामी विधानसभा उपचुनावों में जलालपुर, घोसी तथा बाल्हा सीट से चुनाव लड़ें। इन तीनों सीटों पर राजभर वोटरों की संख्या काफी अधिक है और यादवों तथा मुस्लिमों की सहायता से वह ये सीटें जीत सकते हैं। इसी प्रकार अखिलेश यादव इन विधानसभा उपचुनावों के नतीजों से गठबंधन की शक्ति का अंदाजा लगा सकते हैं और यदि यह गठबंधन सफल रहता है तो वह इसे उत्तर प्रदेश में जारी रख सकते हैं। 

पश्चिम बंगाल में कांग्रेस-लैफ्ट गठबंधन
पश्चिम बंगाल के कांग्रेस अध्यक्ष सोमन मित्रा ने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात कर संगठन के विभिन्न मसलों पर चर्चा की है जिनमें राज्य मेंं होने वाले विधानसभा उपचुनाव भी शामिल हैं।  सोनिया गांधी ने राज्य में लोकसभा चुनावों के दौरान पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन को देखते हुए राज्य में विधानसभा उपचुनावों के लिए कांग्रेस-लैफ्ट फ्रंट गठबंधन को मंजूरी दे दी है। राज्य में भाजपा के विजय रथ को रोकने के लिए टी.एम.सी. द्वारा सभी विपक्षी पाॢटयों को एक साथ आने के आह्वान को देखते हुए यह गठबंधन राजनीतिक तौर पर काफी अहम होगा।  दोनों पाॢटयों के प्रदेश नेतृत्व ने फैसला लिया है कि कांग्रेस उत्तर दीनाजपुर जिले की कालियागंज सीट तथा पश्चिमी मिदनापुर जिले की खडग़पुर सीट से से चुनाव लड़ेगी जबकि सी.पी.आई. (एम) नीत लैफ्ट फ्रंट नादिया जिले की करीमपुर सीट से चुनाव लड़ेगा। 

विपक्षी दलों ने किया टी.वी. डिबेट का बहिष्कार
लोकसभा चुनावों के बाद लगभग सभी विपक्षी दलों ने टी.वी. चैनलों पर होने वाली राजनीतिक डिबेट में अपने प्रतिनिधियों को भेजना बंद कर दिया है। कांग्रेस के कुछ पदाधिकारियों का कहना है कि टी.वी. एंकर सरकार का पक्ष लेते हैं और राजनीतिक एजैंडा तय करते हैं तथा उनकी बात नहीं सुनी जाती है। इस स्थिति से पार पाने के लिए चैनलों ने विभिन्न दलों के समर्थकों को बुलाना शुरू कर दिया है। इसका विरोध करते हुए मीसा भारती और राष्ट्रीय जनता दल ने चैनलों को लिखा है कि वे लोग इस बात का फैसला नहीं कर सकते कि राजद का प्रतिनिधित्व कौन करेगा? कुछ दिन पहले एक टी.वी. टॉक शो में एक मेहमान को आर.एस.एस. विचारक कह कर संबोधित किया जा रहा था। आर.एस.एस. ने भी इस बात का विरोध करते हुए टी.वी. एंकरों को सलाह दी कि इन लोगों का परिचय आर.एस.एस. विचारक  की बजाय राजनीतिक विश्लेषक के तौर पर करवाया जाए।-राहिल नोरा चोपड़ा
 

Advertising