‘स्वच्छता अभियान’ का एक साल पूरा लेकिन उपलब्धि उम्मीद से बहुत कम

punjabkesari.in Saturday, Oct 03, 2015 - 02:42 AM (IST)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत वर्ष 2 अक्तूबर को राष्टपिता महात्मा गांधी की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि स्वरूप देश में स्वच्छता अभियान शुरू किया था। तब उन्होंने लोगों से ‘स्वच्छ भारत मिशन’ को चुनौती की तरह लेने का आह्वान करते हुए गांधी जी की 150वीं जयंती (2019) तक इसे जारी रखने और शहरों तथा गांवों को पूर्णत: स्वच्छ कर देने का संकल्प जताया था। 

उन्होंने सचिन तेंदुलकर, कमल हासन, प्रियंका चोपड़ा, सलमान खान, अनिल अम्बानी, शशि थरूर आदि को इस अभियान के साथ जोड़ा। धूमधाम से शुरू की गई 1.96 लाख करोड़ रुपए वाली इस योजना के सिलसिले में स्वयं नरेंद्र मोदी व उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगियों सहित बड़ी संख्या में नेताओं तथा अन्य लोगों ने हाथों में झाड़ू लेकर सफाई करने के चित्र भी खिंचवाए थे।
 
सब में फोटो खिंचवाने की होड़ सी लगी रही लेकिन आमतौर पर अधिकतर नेतागण उन्हीं स्थानों की सफाई कर रहे थे जो पहले से ही साफ थे और ज्यादातर नेता झाड़ू के साथ फोटो खिंचवा कर चलते बने।  
 
इस योजना के अंतर्गत गांवों में 11 करोड़ शौचालय, शहरों में 2.5 लाख सामुदायिक शौचालय, 2.6 लाख सार्वजनिक शौचालय व प्रत्येक कस्बे में ठोस कचरा प्रबंधन की सुविधा उपलब्ध करवाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। 
 
शौचालयों के निर्माण में ‘प्रगति’ का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि अभी तक ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 50 लाख शौचालय ही बनाए जा सके हैं जबकि इस मिशन की पहली वर्षगांठ पूरी होने तक देश के 14 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के शहरी क्षेत्रों में शौचालय बनाने का काम शुरू भी नहीं हुआ है। 
 
स्वच्छता के मामले में भी देश के 6 राज्यों में ही इस मिशन का कुछ प्रभाव दिखाई दिया है। अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में इसका प्रभाव नाममात्र ही है। एक सर्वेक्षण  के अनुसार गुजरात, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, पंजाब, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में तथा कुछ राज्यों के राजधानी नगरों में स्वच्छता की स्थिति बेहतर दिखाई दी है परन्तु कुछ राज्यों में तो ‘शून्य प्रगति’ ही हुई है। 
 
उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा और यहां तक कि दिल्ली में भी स्वच्छता की स्थिति के आकलन से यही निष्कर्ष सामने आया है कि वहां अभी बहुत कुछ करना बाकी है। सर्वे में उजागर होने वाला सर्वाधिक निराशाजनक तथ्य यह है कि अधिकांश राज्यों में शहरी स्थानीय निकायों द्वारा राजग के इस महत्वाकांक्षी कार्यक्रम की दिशा में कोई सकारात्मक पग ही नहीं उठाया गया।
 
सर्वे में शामिल अधिकांश लोगों का कहना था कि अधिकतर नगरपालिकाओं ने स्वच्छता संबंधी अभियान चलाने और इनके साथ आम लोगों को जोडऩे तथा जागरूकता अभियान चलाने की दिशा में कुछ भी नहीं किया। मात्र 13 प्रतिशत लोगों ने कहा कि शहरों में शौचालयों की स्थिति कुछ सुधरी है।  
 
कुछ लोगों ने, जिनमें नारी शक्ति की संख्या अधिक है, अपने निजी प्रयासों से, शौचालय विहीन गांवों में शौचालय बनवाने का प्रशंसनीय कार्य किया है। किन्नर समुदाय की कुछ सदस्य भी इस अभियान से जुड़ी हैं। इनमें भोपाल की संजना किन्नर और उनकी साथी शामिल हैं जो उन्हीं घरों में बधाई के लिए जाती हैं जिनमें शौचालय बना हुआ हो परंतु कुल मिलाकर इस अभियान की प्रगति अत्यंत निराशाजनक और धीमी ही रही है।
 
गांधी जी सिर पर मैला ढोने की कुप्रथा के घोर विरोधी थे परंतु आज भी देश में लगभग 12,226 सफाई कर्मचारी सिर पर मैला ढोने का संताप झेल रहे हैं। इनमें 80 प्रतिशत तो उत्तर प्रदेश में ही हैं। सर्वाधिक बुरी बात यह है कि यह अभिशाप महिलाएं ही झेल रही हैं जो अपना काम सुबह 7 बजे शुरू करती हैं और एक-एक महिला 25-25 घरों में जाकर लोगों का मैला एकत्रित करती है। 
 
बेशक प्रधानमंत्री ने महान उद्यमी बिल गेट्स और उनकी पत्नी मिलडा गेट्स द्वारा चलाई जा रही विश्व विख्यात जनसेवी एन.जी.ओ. बिलगेट्स फाऊंडेशन को भी इस अभियान के साथ जोड़ा है और इस संबंध में आयोजित समारोहों में स्वच्छ भारत अभियान में सराहनीय काम करने वालों को लोगों के सामने लाने की भी राजग सरकार की योजना है परंतु इतना ही काफी नहीं। 
 
अभी भी देश में स्वच्छता अभियान को अमलीजामा पहनाने और महात्मा गांधी के सपने को पूरा करने की दिशा में बहुत कुछ करना बाकी है। इसके लिए सबसे जरूरी है नेतागणों और इसे अमलीजामा पहनाने वाले अधिकारियों का जुड़ाव जो केवल भाषणबाजी और फोटो खिंचवाने तक ही सीमित न रहे।  
 

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