कपास उत्पादकों को नाममात्र राशि के क्षतिपूर्ति चैक देकर पंजाब सरकार ने उनके घाव कुरेदे

Saturday, Sep 26, 2015 - 02:11 AM (IST)

पिछले 3 वर्ष प्राकृतिक आपदाओं के लिहाज से भारत के लिए बुरे रहे। 2013 में उत्तराखंड में भारी वर्षा, भूस्खलन व बादल फटने से अरबों रुपए की सम्पत्ति नष्ट होने के अलावा 3000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई। 

2014 में जम्मू-कश्मीर में आई बाढ़ और पंजाब के कुछ हिस्सों में भारी वर्षा से खेतों में पानी जमा होने से जान-माल व फसलों की भारी तबाही हुई। वर्ष 2015 में भी देश के 14 राज्यों में मार्च-अप्रैल में बेमौसमी वर्षा, आंधी व ओलावृष्टि से 113 लाख हैक्टेयर भूमि पर खड़ी फसलों को भारी क्षति पहुंची जिस कारण अनेक अवसादग्रस्त किसानों ने आत्महत्या कर ली।
 
अब एक बार फिर पंजाब के किसान भारी संकट में फंसे हुए हैं। पंजाब के कुछ भागों में सफेद मक्खी के प्रकोप से अभी तक लगभग 12000 एकड़ भूमि पर खड़ी कपास की फसल के पूर्णत: नष्ट हो जाने का अनुमान है। 
 
कपास को हुई क्षति का समुचित मुआवजा न मिलने के कारण किसान संघर्षरत हैं तथा ऋण तले दबे अनेक किसानों ने आत्महत्या भी कर ली है। मुख्यमंत्री श्री बादल ने इसे मौसम का प्रकोप बताते हुए प्रभावित किसानों को 8000 रुपए प्रति एकड़ की दर से क्षतिपूर्ति देने की घोषणा की है। 
 
पंजाब सरकार के राजस्व विभाग द्वारा की गई गिरदावरी के आधार पर सिर्फ उन्हीं किसानों को क्षतिपूर्ति दी जा रही है जिन्होंने सफेद मक्खी के हमले से बुरी तरह प्रभावित अपनी सारी फसल उखाड़ डाली है।
 
पंजाब सरकार ने क्षतिपूर्ति के रूप में किसानों को क्रमश: 80 रुपए,149 रुपए व 162 रुपए तक के चैक दे कर उनके घावों पर नमक छिड़का है। भटिंडा जिले में अनेक किसानों को सरकार ने उक्त राशियों के चैक वितरित किए। किसानों को राहत राशि के जो चैक दिए गए हैं वे मुख्यमंत्री का दावा झुठलाते हैं। 
 
तलवंडी साबो के शेरगढ़ गांव के हरपाल सिंह को 80 रुपए तथा मानक खेड़ा गांव के जलौर सिंह तथा साहब सिंह को 149-149 रुपए के चैक दिए गए हैं। हरपाल सिह के अनुसार उनकी 1.25 एकड़ जमीन है और यदि राजस्व विभाग यह जमीन 3 मालिक भाइयों में बांट कर भी क्षतिपूर्ति देता तब भी उसे 2000 रुपए तो मिलने ही चाहिएं थे परंतु केवल 80 रुपए मिले हैं। उसके भाइयों को भी 800 व 1000 रुपए तक क्षतिपूर्ति मिली है।
 
अमरजीत सिंह नामक किसान के अनुसार उसने अपने तीन अन्य भाइयों के साथ मिलकर 3 एकड़ भूमि पर कपास बोई थी। इस हिसाब से उसे 6000 रुपए मिलने चाहिएं थे लेकिन मिले हैं सिर्फ 862 रुपए। 
 
चंद अन्य किसानों को इससे कुछ अधिक परंतु अनाप-शनाप ढंग से ही क्षतिपूर्ति दी गई है। उदाहरणार्थ 2 एकड़ फसल के बदले में एक किसान को 2900 रुपए, 5 एकड़ के बदले में 2512 रुपए, 1 एकड़ फसल के बदले में 800 रुपए क्षतिपूर्ति दी गई। गांव कालझरानी में 12 कनाल भूमि पर कपास बोने वाले एक किसान ने 909 रुपए क्षतिपूर्ति लेने से इंकार कर दिया। 
 
कपास उत्पादकों को प्रति एकड़ 40,000  रुपए की दर से क्षतिपूर्ति की मांग पर बल देने के लिए सप्ताह से प्रोटैस्ट करते आ रहे 8 किसान संगठनों ने सरकार के इस रवैए की कड़ी आलोचना की है। किसान नेताओं  के अनुसार सरकार द्वारा निर्धारित क्षतिपूर्ति देने का पैमाना उनकी समझ से बाहर और किसानों के साथ भद्दा मजाक है।
 
तलवंडी साबो के तहसीलदार कुलदीप सिंह इस संबंध में कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे सके तथा भटिंडा के डिप्टी कमिश्नर बसंत गर्ग का कहना है कि ‘‘कपास उत्पादक किसानों को क्षतिपूर्ति उनके भू-स्वामित्व के आधार पर ही दी गई है। हम पता लगाएंगे कि किसानों को कम राशि के चैक कैसे दिए गए हैं।’’   
 
निस्संदेह खेतों में अपना पसीना बहाने वाले किसानों को जितनी राशि के चैक दिए गए हैं उसमें तो एक दिहाड़ीदार मजदूर भी नहीं मिलता जबकि इन किसानों की तो महीनों की मेहनत बर्बाद हुई है।
 
किसान संगठनों का यह कहना बिल्कुल सही है कि इतनी कम क्षतिपूर्ति राशि देकर सरकार ने उनके घावों पर नमक ही छिड़का है। पहले से ही दुखी किसानों के साथ इस प्रकार का व्यवहार करना जन समस्याओं के प्रति सरकारी तंत्र की संवेदनहीनता का ही प्रमाण है।
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