‘विकास’ के नाम पर पर्यावरण का विनाश

Thursday, Sep 24, 2015 - 03:21 AM (IST)

(राकेश अग्रवाल): उत्तराखंड में वर्तमान में कार्यशील, निर्माणाधीन और प्रस्तावित 700 से अधिक बांधों और जल विद्युत परियोजनाओं (एच.ई.पीज) ने इस अत्यंत संवेदनशील हिमालयी पर्यावर्णीय क्षेत्र की हजारों एकड़ कृषि भूमि और वन्य क्षेत्र डुबोकर न केवल इसकी नाजुक परतों का विनाश करके पहाडिय़ां खिसकने का खतरा बढ़ाया है, बल्कि विशालकाय जलाशयों का निर्माण करके भूकम्पों का खतरा भी बढ़ा दिया है। 

इसके साथ ही भारी संख्या में बांधों और जलाशयों द्वारा सीधे व अप्रत्यक्ष रूप में प्रभावित लोगों को या तो अपने घर-बार छोड़ कर अन्यस्थानों पर बसना पड़ा या फिर वे सीधे ही बेघर हो गए हैं। 
 
एक-दूसरे के आगे-पीछे शृंखलाबद्ध ढंग से बने इन बांधों ने हिन्दुओं की पवित्रतम नदी गंगा को लगभग एक सुरंग बनाकर रख दिया है और कहीं-कहीं ही इसके दर्शन होते हैं। भागीरथी और अलकनंदा के एक-दूसरे से मिलने के बाद ही गंगा का विशुद्ध स्वरूप दिखाई देने लगता है। गंगा को बचाने के लिए प्रख्यात पर्यावरणविद् और आई.आई.टी. के पूर्व प्रोफैसर 82 वर्षीय डा. जी.डी. अग्रवाल (जो अब संन्यास ग्रहण करके स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद बन गए हैं) ने उत्तरकाशी में आमरण अनशन रखा था और उसके बाद ही यू.पी.ए. सरकार को मजबूर होकर गौमुख से उत्तरकाशी के बीच के 4179 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को पर्यावर्णीय रूप में संवेदनशील क्षेत्र (ई.एस.जैड.) घोषित करना पड़ा था, जहां किसी डैम या जल विद्युत परियोजना का निर्माण करने की अनुमति नहीं होगी और केवल जनता की जरूरतों के मद्देनजर सूक्ष्मस्तरीय विकास कार्य ही किए जा सकेंगे। 
 
यह अधिसूचना जारी होने के केवल 6 माह के अंदर ही उत्तराखंड को भीषणतम प्राकृतिक आपदा का सामना करना पड़ा जिसमें हजारों लोग मारे गए और इससे कई गुणा अधिक संख्या में बेघर हो गए। बेशक यह एक प्राकृतिक आपदा थी लेकिन इन बांधों और जल विद्युत परियोजनाओं के कारण इसका दुष्प्रभाव कई गुणा बढ़ गया था। अनेक अध्ययनों से इस तथ्य की पुष्टि हुई है।
 
यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने इन बातों का संज्ञान लिया और सभी निर्माणाधीन बांधों व जल विद्युत परियोजनाओं को रोक दिया और इस विषय में एक समिति गठित की जिसकी अंतिम रिपोर्ट आने तक कोई नई परियोजना भी मंजूर करने पर प्रतिबंध लगा दिया। इस विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट में यह निष्कर्ष निकाला गया कि बाढ़ का विनाशक प्रभाव मौजूदा जल विद्युत परियोजनाओं के कारण कई गुणा बढ़ गया था। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड में किसी भी जल विद्युत परियोजना को पर्यावर्णीय क्लीयरैंस प्रदान नहीं की। 
 
डा. रवि चोपड़ा की अध्यक्षता  वाली एक विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट में यह सिफारिश की गई थी कि कम से कम 23 जल विद्युत परियोजनाएं रद्द की जानी चाहिएं क्योंकि उत्तराखंड की त्रासदी में जल विद्युत परियोजनाओं ने ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। साथ ही यह भी कहा था कि प्रदेश में पर्यावर्णीय गवर्नैंस में तात्कालिक सुधार की जरूरत है। यह रिपोर्ट केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को 16 अप्रैल 2014 को प्रस्तुत की गई थी और 28 अप्रैल 2014 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई सुनवाई के फलस्वरूप इसे सार्वजनिक किया गया था। 
 
अक्तूबर 2013 में केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने बहुत बुझे मन से एक समिति नियुक्त की थी और वह भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा 13 अगस्त 2013 को स्वत: संज्ञान लिए जाने के बाद।  इससे पूर्व डा. अग्रवाल के आमरण अनशन द्वारा विचलित सरकार ने उत्तरकाशी से गौमुख तक के इलाके को 12 दिसम्बर 2012 को ई.एस.जैड. घोषित कर दिया था और यह फैसला 18 दिसम्बर से प्रभावी हो गया था। फिर भी इसके बाद 2 वर्ष बीत जाने पर भी उत्तराखंड सरकार (जिसकी कमान विजय बहुगुणा के स्थान पर फरवरी 2014 में हरीश रावत ने संभाल ली थी) कोई प्रभावी कदम उठाने में असफल रही है। 
 
नतीजा यह हुआ कि ई.एस.जैड. के क्षेत्र में आने वाले 88 गांवों के लोगों ने केन्द्रीय सरकार के विरुद्ध ई.एस.जैड. अधिसूचना को रद्द करने की मांग को लेकर रोष प्रदर्शन करने शुरू कर दिए क्योंकि उन्हें डर था कि उनका इलाका विकास की दृष्टि से पिछड़ जाएगा, जबकि सच्चाई इसके एकदम विपरीत है। पाला मनेरी और लोहारी नागला पाला जैसी बड़ी जल विद्युत परियोजनाएं और बांध मौजूद होने के बावजूद इस इलाके की प्रति व्यक्ति जी.डी.पी. 2010-11 में 42521 रुपए थी, जबकि समूचे प्रदेश की प्रति व्यक्ति जी.डी.पी. 73819.6 रुपए थी। 
 
इस अधिसूचना के कारण प्रदेश और केन्द्र सरकारों ने 480 मैगावाट के पाला मनेरी बांध और 381 मैगावाट की भैरों घाटी परियोजना पर निर्माण कार्य रोक दिए। इसके बाद केन्द्र ने एन.पी.टी.सी. की लोहारी नागला पाला स्थित 600 मैगावाट जल विद्युत परियोजना सहित गंगा नदी पर बन रही कई अन्य एच.ई.पीज पर प्रतिबंध लगा दिया। इसी बीच विशेषज्ञ अपनी रिपोर्टें प्रस्तुत करते रहे और उत्तराखंड में बांधों पर अपनी चिन्ता व्यक्त करते रहे। 
 
यहां तक कि केन्द्र की नई सरकार भी यह मानती है कि उत्तराखंड के बांधों ने पर्यावरण को जो क्षति पहुंचाई है, उसकी भरपाई नहीं हो सकती। केन्द्रीय पर्यावरण, वन्य एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि गंगा, भागीरथी एवं अलकनंदा की तलहट्टियों में निर्मित जल विद्युत परियोजनाओं ने उत्तराखंड के जंगलों को सुकोड़ दिया है, जिससे पहाडिय़ां खिसकने और अन्य भौगोलिक आपदाओं की संभावना में बहुत वृद्धि हो गई है। 
 
यदि हम इस अधिसूचना को ध्यानपूर्वक पढ़ें तो इसमें जनहित में पाएदार विकास के लिए सभी प्रावधान मौजूद हैं और इस परियोजना को लागू करने के लिए राज्य सरकार से उम्मीद की गई थी कि वह प्रभावित क्षेत्र के पर्यावरण और स्थानीय लोगों की रोजी-रोटी की रक्षा करने के लिए इस क्षेत्र की 88 ग्राम पंचायतों के साथ परामर्श करके इलाकाई मास्टर प्लान तैयार करेगी। ई.एस.जैड. अधिसूचना में भौगोलिक रूप में संवेदनशील पहाड़ी ढलानों पर बसे हुए गांवों का संरक्षण करने के तौर-तरीकों पर विस्तारपूर्वक चर्चा की है। 
 
इसके अतिरिक्त प्लास्टिक पुन:चक्रण एवं परिशोधन संयंत्र, ‘रेन वाटर हार्वैसिंटग’ विकास, आर्गैनिक खेती, हरित उद्योग, ट्रेकिंग, लघु जल विद्युत परियोजनाएं एवं सौर ऊर्जा उत्पादन का रास्ता आसान करने हेतु भी योजनाएं तैयार करने की जरूरत है। इन कार्यों के निष्पादन में महिलाएं और ग्राम सभाएं/पंचायतें महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगी। 
 
अधिसूचना में नदियों और सरिताओं की जलधाराओं को सुनिश्चित करने, परम्परागत वास्तुकला को प्रोत्साहन देने एवं नदी संगम, खूबसूरत दृश्यावलियों, झरनों, हरे-भरे क्षेत्रों, मंदिरों व ऐतिहासिक शिल्प उद्योगों से जुड़े स्थलों जैसी मानवीय एवं प्राकृतिक धरोहरों का संरक्षण करने की भी बात कही गई है। अधिसूचना ने गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग के विकास अथवा ग्रामीण सड़कों के निर्माण को प्रतिबंधित नहीं किया है जबकि विशालकाय बांधों, व्यावसायिक वन कटाव एवं बड़े स्तर के उत्खनन कार्यों की मनाही की गई है। पर्यावरणीय विनाश के विरुद्ध जनसंघर्ष का इस क्षेत्र में लम्बा इतिहास है, फिर भी राज्य सरकार और बांध के समर्थक ई.एस.जैड. अधिसूचना का विरोध कर रहे हैं। 
 
नीति निर्धारकों और राजनीतिक दलों ने उपरोक्त रिपोर्टों में हुए खुलासों की अनदेखी की और 18 दिसम्बर 2014 को ई.एस.जैड. अधिसूचना की दूसरी वर्षगांठ पर उत्तरकाशी नगर में एक रोष प्रदर्शन का आयोजन किया। इलाके में बंद का भी आह्वान किया गया तथा केंद्र सरकार से मांग की गई कि गौमुख से उत्तरकाशी तक के क्षेत्र को ई.एस.जैड. की श्रेणी में से बाहर निकाला जाए। कांग्रेस, भाजपा और बसपा के स्थानीय नेता इस बंद में शामिल हुए। भटवारी प्रखंड के प्रमुख चंदन सिंह पंवार ने ई.एस.जैड. अधिसूचना को सिरे से रद्द करने की मांग की और कहा, ‘‘इस अधिसूचित क्षेत्र में 88 गांव आते हैं। किसी भी तरह के संकट से निपटने के लिए इन गांवों को विकास की जरूरत है।’’ प्रदर्शनकारियों ने उत्तरकाशी के जिला मैजिस्ट्रेट सी. रविशंकर को ज्ञापन देकर अनुरोध किया कि ई.एस.जैड. अधिसूचना रद्द की जाए।       
 
Advertising