उत्तर प्रदेश में चपरासी और लेखपाल के 13,684 पदों के लिए 50 लाख आवेदन

Saturday, Sep 19, 2015 - 01:35 AM (IST)

देश में रोजगार के नए मौके पैदा नहीं होने से लगातार बेरोजगारी बढ़ रही है। वर्ष 2011 में बेरोजगारी की वृद्धि दर 3.5 प्रतिशत थी जो 2012 में 3.6 प्रतिशत, 2013 में 3.7 प्रतिशत व 2014 में बढ़कर 3.8 प्रतिशत के लगभग हो गई है। 

स्थिति की गंभीरता इसी से स्पष्ट है कि 10 वर्ष के बाद हाल ही में उत्तर प्रदेश में जिसे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ‘उम्मीदों का प्रदेश’ कहते हैं, सचिवालय लेखपालों (राजस्व अधिकारियों) तथा चपरासियों के 13,684 पदों के लिए दिए गए विज्ञापन के उत्तर में लगभग 50 लाख आवेदन प्राप्त हुए हैं। इनमें 368 पद चपरासियों के व शेष 13,316 पद लेखपालों के हैं। 
 
चपरासियों की नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी करने के मात्र 33 दिनों में 23 लाख से अधिक लोगों के आवेदन आए। यदि उत्तर प्रदेश की 21.5 करोड़ जनसंख्या के हिसाब से आकलन करें तो पता चलता है कि प्रदेश के हर 93वें व्यक्ति ने इस आसामी पर नियुक्ति के लिए आवेदन किया है और औसतन एक-एक पद के लिए 365 से अधिक लोगों ने आवेदन किया है।
 
चपरासी के पद के लिए आवेदन करने वालों में 255 पी.एच.डी. डिग्रीधारी तथा 2 लाख से अधिक स्नातक और उनसे अधिक हैं जिनमें बी.टैक, बी.एस.सी., बी.कॉम, एम.एस.सी., एम.कॉम और एम.ए. पास उम्मीदवार शामिल हैं जबकि सरकार ने चपरासी के लिए दो ही योग्यताएं मांगी थीं उम्मीदवार पांचवीं कक्षा पास हो तथा उसे साइकिल चलाना आता हो। 
 
लड़कियों और विकलांगों के लिए साइकिल की अनिवार्यता नहीं थी। आवेदन पत्रों की जांच से पता चला कि पांचवीं पास तो सिर्फ 53,000 उम्मीदवार ही हैं जबकि लगभग 20 लाख आवेदक छठी से 12वीं कक्षा उत्तीर्ण हैं।
 
इसी प्रकार लेखपाल के पद के लिए आवेदन करने वालों में प्रदेश सरकार द्वारा अल्पसंख्यकों के लिए संचालित आई.ए.एस. प्रशिक्षण केंद्रों में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे 50 से अधिक आई.ए.एस. के उम्मीदवार शामिल हैं। 
 
इतनी बड़ी संख्या में इन पदों के लिए आवेदन पत्र प्राप्त होने से अधिकारी दुविधा में हैं क्योंकि उनका कहना है कि यदि वे आवेदकों का व्यक्तिगत रूप से इंटरव्यू लेने बैठें तो इसमें कई वर्ष लग जाएंगे।
 
इस स्थिति से निपटने के लिए सरकार अब विशेषज्ञों से राय ले रही है। इस संबंध में एक विचार यह भी है कि भर्ती का कोई अन्य तरीका अपनाया जाए परंतु ऐसा करने के लिए नियम बदलने पड़ेंगे और उस स्थिति में आवेदन पत्र नए सिरे से मांगने होंगे। प्रशासन जूनियर स्तर की आसामियों की नियुक्ति के लिए इंटरव्यू लेने की प्रणाली को तिलांजलि देने संबंधी नरेंद्र मोदी के सुझाव पर भी विचार कर रहा है।
 
जहां तक उच्च शिक्षा प्राप्त उम्मीदवारों द्वारा चपरासी और लेखपाल के पदों के लिए आवेदन करने का संबंध है इस संबंध में एक पी.एच.डी. डिग्रीधारी का कहना है कि डिग्रियां हाथ में लेकर नौकरी के लिए दर-दर भटकने की बजाय चपरासी की नौकरी ही कर लेना बुरा नहीं है। 
 
इसी प्रकार एक अन्य महिला उम्मीदवार का कहना है कि अपने माता-पिता पर निर्भर होने की बजाय दफ्तर में अफसरों को पानी पिलाना बेहतर है। आखिर कोई कब तक अपने बुजुर्गों पर निर्भर रह सकता है। 
 
वैसे तो कोई भी काम छोटा नहीं होता परंतु प्रत्येक काम के लिए एक योग्यता निर्धारित होती है और यदि अत्यंत उच्च योग्यता वाले लोगों को  कम योग्यता वाले पदों पर काम करने के लिए विवश होना पड़े तो समझा जा सकता है कि स्थिति कितनी गंभीर है। 
 
अकेले उत्तर प्रदेश ही नहीं समूचे देश का यही हाल है जिससे बचने के लिए युवाओं को स्वरोजगार के लिए प्रेरणा देने के साथ-साथ लगातार बढ़ रही जनसंख्या पर भी अंकुश लगाने के उपाय करना आवश्यक है। यदि देश में बेरोजगारों की संख्या इसी प्रकार बढ़ती रही तो डर है कि युवाओं में बढ़ रहा असंतोष लावा बन कर कहीं फूट ही न पड़े।
 
Advertising