लोगों को खुले में शौच से मुक्त कराने के लिए अब आगे आईं महिलाएं

Sunday, Sep 13, 2015 - 01:12 AM (IST)

पूर्व ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने 22 अक्तूबर 2012 को कहा था कि ‘‘हम खुले में शौच की विश्व राजधानी हैं। विश्व में खुले में शौच का 60 प्रतिशत भारत में होता है और यह हमारे लिए शर्म की बात है।’’

आजादी के 68 सालों के बाद भी देश भर में आधी से अधिक जनसंख्या सुलभ शौचालय उपलब्ध न होने के कारण खुले में शौच करने के लिए विवश है। दीर्घशंका निवृत्ति के लिए कई क्षेत्रों में तो लोगों को मील-मील दूर जाना पड़ता है जो विशेष रूप से महिलाओं के लिए जोखिम भरा है। 
 
पिंस्टन विश्वविद्यालय के शिक्षाविद् डीन स्पीयर्स का कहना है कि ‘‘खुले में शौच से विभिन्न बीमारियों के कीटाणु  बच्चों के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। बच्चों के सामान्य कद में आ रही कमी की यह एक वजह है।’’ 
 
हालांकि गत वर्ष मोदी सरकार द्वारा देश में आरंभ किए गए स्वच्छता अभियान का उत्साह धीमा पड़ गया है और जो काम सरकार नहीं कर सकी, वह चंद जुझारू महिलाओं ने करके सरकार को आइना दिखाया है :
 
* नवम्बर 2014 में महाराष्ट के विदर्भ जिले के सिक्खड़ गांव की संगीता अवहले नामक महिला ने अपने पति तथा ससुर द्वारा घर में शौचालय बनाने की उसकी मांग की अनदेखी करने पर अपना मंगलसूत्र बेच कर घर में शौचालय का निर्माण करवाया क्योंकि संगीता का कहना था कि किसी भी परिवार की आधारभूत आवश्यकता शौचालय है जेवर नहीं। 
 
* इसी प्रकार इस वर्ष जुलाई में हरियाणा के भिवानी जिले के खड़क गांव की एक बुजुर्ग महिला ने अपनी भैंस बेच कर अपने घर में शौचालय का निर्माण करवाया जिसके लिए उसकी सर्वत्र प्रशंसा हो रही है। 
 
* 22000 रुपए में अपनी बकरियां बेच कर गांव में सबसे पहले शौचालय का निर्माण करवाने वाली छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के कोटाभर्री गांव में 104 वर्षीय वृद्धा कुंवर बाई यादव की इन दिनों खूब चर्चा हो रही है। 
 
बकरियां पाल कर गुजारा करने वाली कुंवर ने न सिर्फ उसने अपने घर में शौचालय बनवाया बल्कि घर-घर जाकर गांव वालों को शौचालय बनवाने के लिए प्रेरित किया जिस कारण इस गांव के प्रत्येक घर में शौचालय है। घरों में शौचालयों ने जहां अनेक परिवारों को टूटने से बचाया है वहीं शौचालय न होने के कारण अनेक परिवार टूट भी रहे हैं : 
 
* इस वर्ष मई में बिहार के वैशाली जिले के पहाड़पुर गांव की रहने वाली सुनीता देवी ने अपने पति द्वारा लगातार चार वर्षों से शौचालय बनाने की उसकी मांग न मानने के कारण उसे तलाक का नोटिस भिजवा दिया। 
 
इसी प्रकार अनेक महिलाओं के संकल्प ने पुरुषों को घरों में शौचालय बनवाने के लिए प्रेरित भी किया है :
* रतलाम की रहने वाली प्रेम कुमारी मेघवाल की शादी अप्रैल 2015 में चचौर के कैलाश से हुई थी। ससुराल जाने पर उसे पता चला कि उनके घर में शौचालय नहीं था। सप्ताह बाद जब वह मायके जाने लगी  तो पति से कह दिया कि वह घर में शौचालय बनवाने के बाद ही उसे लेने आए और कैलाश को अपनी गृहस्थी बचाने के लिए उसकी मांग माननी पड़ी। 
 
* गुजरात में दाहोद के सिकंदर की बेटी सुहाना की सगाई चचौर के सिराज से हुई थी लेकिन जब सुहाना को पता चला कि उसके ससुराल में शौचालय नहीं है तो उसने सिराज से साफ कह दिया कि घर में शौचालय बनवाकर उसका चित्र उसे व्हाट्सएप्प पर भेजे तभी वह शादी करेगी।
 
सिराज ने सुहाना की मांग पर आनन-फानन में अपने घर में शौचालय बनवाया और व्हाट्सएप्प पर सुहाना को उसका चित्र भेजा जिसे  देखने के बाद ही सुहाना ने शादी के लिए सहमति व्यक्त की।
 
देखने में ये बड़ी साधारण सी कहानियां हैं परंतु इनके पीछे गहरा सबक छिपा है। खुले में शौच जहां अनेक बीमारियों को निमंत्रण देता है वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के लिए शौच हेतु घर से बाहर खेतों और जंगलों में जाना खतरे से खाली नहीं। 
 
महिलाओं से बलात्कार और हत्या जैसे अपराधों में से कुछ प्रतिशत अपराध शौच के लिए खेतों या जंगलों में जाने के दौरान ही होते हैं। अत: घरों में शौचालय होने से जहां महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों में कमी आएगी वहीं खुले में शौच के परिणामस्वरूप होने वाले रोगों से भी सब लोगों का बचाव होगा।
 
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