कुछ लोगों की बेबसी झलकी उतरी सूरतो में

Thursday, Aug 27, 2015 - 02:16 PM (IST)

कुछ लोगों की बेबसी झलकी उतरी सूरतों में,
कुछ की टूटे फूटे लब्जो में बयां होती रही |
कुछ अपनी लाचारी को नर्म कंधों पे ढोते रहे,
कुछ ने इतेमीनान मे रात सड़कों पर गुजारी |
कुछ अनसुनी चीखो को नज़रअंदाज़ करे रहे,
कुछ ने तन्हाई में उठी कसक भी समझी |
कुछ दिलों को तोड़कर ठहाके लगाते गए,
कुछ गम में डूबी दास्तानों की आहे समेटते रहे |
कुछ ने ईमानदारी की रोटी को सुकून समझा,
कुछ मोहतरम उसे लालत बताते रहे |
कुछ जमीर को कुर्बान कर लाखों कमाते गए,
कुछ खुद को झोपड़ी में महफूज़ बतलाते रहे |
कुछ ने हैसियत तोली जेब के नाप की,
कुछ अठनी चवनी को सोने की खान बताते रहे |
कुछ अपनी- अपनी में दूसरों को भुलाते गए,
कुछ खुद को भूलकर अपनो से मिलते रहे |
न जाने कौन -कौन कसुरवार रहा यहां,
जो बेगैरतमंद हो ताज़ियाने की मार से 
हर किसी को लहूलुहान करते गए |

अनुभूति गुप्ता

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