मैं इक इकसार हूं मेरा न हो सका कोई यहां

punjabkesari.in Thursday, Aug 27, 2015 - 02:10 PM (IST)

मैं इक इकसार हूं  मेरा न हो सका कोई यहां,
हर निगाह में पड़ी पर कोई न जां सका यहां |
सेहरा की धूप में अक्स मेरा फ़ीका पड़ गया, 
आबगीने में देखने लायक न बचा रहा यहां |
किसी ने चाँद को देखा कोई दागदार रहा है, 
अमावस में इक शख्स होले से गुजरा यहां | 
पनाहों में है जो क़त्ल करने की आरज़ू लिए, 
वो दो वक़्त की रोटी को मोहताज़ रहा यहां |
सहरा-सहरा गुलशन-गुलशन रूह फिरी मेरी,
मुझे ढूढने वाला खुद भी गुमशुदा रहा यहां |
चंद वा-वाही के लम्हों के लिए नीलाम हए,
यूँ कोई राख ज़मीर के साथ छुप रहा यहां |

अनुभूति गुप्ता


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