भारतीय वायुसेना के विमानों की दुर्घटनाओं का सिलसिला लगातार जारी

Tuesday, Aug 25, 2015 - 04:04 AM (IST)

1970 से अब तक वायुसेना के 1000 से अधिक विमान दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं जबकि 1 अप्रैल, 2007 से लेकर 31 मई, 2015 के बीच वायुसेना के कुल 83 विमान दुर्घटनाग्रस्त हुए हैं। इनमें मिग, जगुआर, एम.आई., ए.एन.-32, चेतक हैलीकाप्टर, हॉक एम.के.आई., ए.एल.एच.सी. 130-जे शामिल हैं। 

सबसे महंगा विमान सुखोई है जिसकी कीमत 1500 करोड़ रुपए के लगभग है।  इस वर्ष 2 एम.के.आई.-30 सुखोई विमान दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं जबकि पिछले 5 वर्षों में 5 सुखोई विमान दुर्घटनाग्रस्त हुए हैं। 
 
1970 के बाद से मिग-21 की दुर्घटनाओं में भारतीय वायुसेना के 170 पायलट मारे गए, जबकि 2010 से 2013 के बीच कम से कम 14 मिग-21 दुर्घटनाग्रस्त हुए। इस वर्ष हुईं मिग-21 लड़ाकू विमानों की कुछ दुर्घटनाएं निम्र हैं : 
 
* 27 जनवरी, 2015 को राजस्थान के बाड़मेर जिले में एक मिग-27 जैट विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया।
* 31 जनवरी को भारतीय वायुसेना का मिग-21 लड़ाकू जैट विमान गुजरात के जामनगर जिले में दुर्घटनाग्रस्त हो गया। 
* 8 मई रात को बंगाल के तांतिपाड़ा इलाके में एक मिग-21 विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ। 
* और अब 24 अगस्त को कश्मीर के बडग़ाम जिले में भारतीय वायुसेना का एक मिग-21 बाइसन विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। 
 
भारतीय वायुसेना के बेड़े में कम से कम 1588 लड़ाकू विमान हैं जिनमें से 361 प्रशिक्षण विमान हैं। हालांकि मिग दुर्घटनाओं के बाद 2014 में वायुसेना ने इसके विकल्प के रूप में उससे ज्यादा आधुनिक सुखोई विमान खरीदे थे परंतु लगता है कि ये दोनों ही दुर्घटनाओं से मुक्त नहीं। 
 
रक्षा मंत्रालय से सम्बद्ध संसद की स्थायी समिति ने 4 अगस्त 2011 को पेश रिपोर्ट में स्वीकार किया था कि मिग विमानों की अधिकांश दुर्घटनाएं पुरानी टैक्नोलॉजी के कारण हुई हैं। इसलिए मिग-21 और मिग-27 के इंजनों में खराबी आने की घटनाएं आम हैं तथा इन विमानों की सप्लाई करने वाले देश रूस ने भी इन्हें अपनी वायुसेना की सेवा से बाहर कर दिया है।
 
इसके साथ ही समिति ने नए विमानों की खरीद की प्रक्रिया को योजनाबद्ध तरीके से पूरा करने की वकालत करते हुए रक्षा मंत्रालय से कहा था कि  वर्तमान विमानों के जीवनकाल को बढ़ाने तथा पायलटों की ट्रेनिंग पर नए सिरे से विचार किया जाए और मिग विमानों को जितनी जल्दी संभव हो, रिटायर कर दिया जाए।
 
एक लड़ाकू पायलट के प्रशिक्षण पर 10.35 करोड़ रुपए खर्च आते हैं परंतु पायलटों की ट्रेङ्क्षनग के लिए समुचित ट्रेनर विमानों की उपलब्धता की कमी ङ्क्षचता का विषय है। तत्कालीन रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी ने 2012 में यह कह कर संसद को आश्चर्य में डाल दिया था कि रूस से खरीदे गए मिग विमानों में से आधे से अधिक दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं।
 
भारतीय वायुसेना आज कम से कम 600 पायलटों की कमी का सामना कर रही है जिसका मुख्य कारण निजी विमान सेवाओं में आकर्षक वेतन, भत्ते और सुविधाओं की बहुतायत है जिसके कारण यह समस्या बढ़ी है। 
 
इसी कारण पूर्व वायु सेनाध्यक्ष एयर मार्शल अर्जन सिंह ने कहा था, ‘‘भारतीय वायुसेना को न केवल अति आधुनिक विमान चाहिएं बल्कि समुचित संख्या में अतिकुशल प्रशिक्षित पायलट भी होने चाहिएं।’’  
 
यह एक विडम्बना ही है कि भारत में बने लड़ाकू विमान अब भी एक्शन में भाग लेने के लिए तैयार नहीं हैं और फ्रांस से लड़ाकू विमान खरीदने का जो सौदा 2 वर्ष पूर्व हुआ था वह भी अभी तक खटाई में पड़ा हुआ है। 
 
आज जबकि भारत को सीमा पर भारी तनावपूर्ण स्थिति का सामना करना पड़ रहा है और अंतर्राष्ट्रीय सामरिक विशेषज्ञों के अनुसार पाकिस्तान के साथ युद्ध का खतरा सिर पर मंडरा रहा है, ऐसे में किसी भी प्रकार की चूक देश के लिए महंगी पड़ सकती है। अत: भारतीय वायुसेना के बेड़े में जल्दी से जल्दी बेहतरीन जंगी विमान शामिल किए जाने चाहिएं।  
 
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