संसद में रहकर भी सदन में नहीं आए मोदी

Monday, Aug 17, 2015 - 01:14 AM (IST)

(त्रिदीब रमण ): संसद के मानसून सत्र में कांग्रेस का बेतरतीब हंगामा किंचित प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को रास नहीं आया, यही वजह है कि संसद भवन में मौजूद रहने के बावजूद उन्होंने कम ही सदन में आने की जहमत उठाई। मोदी नियम से संसद आते थे और नियम से सदन के फ्लोर व पॉलिटिकल मैनेजमैंट से जुड़ी कोर टीम से ठीक सुबह के 10.30 बजे उनकी मीटिंग होती थी। 

इस 8 सदस्यीय कोर टीम में मोदी के अलावा राजनाथ सिंह, अरुण जेतली, सुषमा स्वराज, नितिन गडकरी, वैंकेया नायडू, राजीव प्रताप रूढ़ी, मनोहर पार्रिकर और मुख्तार अब्बास नकवी मौजूद रहते थे। इस कोर ग्रुप के साथ गंभीर मंत्रणा के बाद सरकार संसद में अपनी रणनीति को अंतिम रूप देती थी। फिर संसद भवन स्थित अपने कमरे से ही पी.एम. अपना नियमित कामकाज देखते थे, आगंतुकों से मिलते थे और सबसे ज्यादा दफे अपने खास वफादार अमित शाह से राजनीतिक मंत्रणा करते थे और अपनी सरकार के कामकाज के बारे में ‘पब्लिक ओपिनियन’ यानी शाह का फीडबैक लिया करते थे। 
 
मानसून सत्र पार्ट-2 की तैयारियां
आने वाले दिनों में सरकार संसद का विशेष सत्र बुलाने की बजाय मानसून सैशन पार्ट-2 बुला सकती है, इस बाबत सरकार के कर्णधार प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के निरंतर सम्पर्क में हैं कि 2-3 सप्ताह चलने वाले इस सत्र को कैसे सुचारू रूप से चलाया जाए और इसमें जी.एस.टी. बिल पर चर्चा होनी है, और सदन में इसे पास करवाना है। सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस आलाकमान पर उनके ही कई मुख्यमंत्रियों का दबाव है कि जी.एस.टी. बिल का पास नहीं होना राज्यों के हक में नहीं होगा। वैसे इस दफे भी मानसून सत्र शुरू होने से पहले मोदी सरकार के कर्णधारों, यानी अरुण जेतली, वैंकेया नायडू और मुख्तार अब्बास नकवी की विपक्षी दलों के प्रमुखों से इस बात पर रजामंदी हो चुकी थी कि चाहे संसद का मानसून सत्र कितना भी हंगामाखेज क्यों न हो जी.एस.टी. बिल पारित करने में कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल सरकार की मदद करेंगे। इस बारे में सोनिया गांधी की भी सहमति बताई जाती है, पर सदन आरम्भ होने की पूर्व संध्या पर लोकसभा में कांग्रेस के एक प्रमुख नेता का मैसेज सरकार के पास आया कि वे अब कुछ नहीं कर सकते क्योंकि उनके हाथ बंधे हुए हैं, चूंकि राहुल गांधी ने तय कर दिया है कि जब तक सुषमा स्वराज का इस्तीफा नहीं हो जाता, पूरा मानसून सत्र ‘वॉश आऊट’ रहेगा और कालांतर में हुआ भी यही। 
 
मोदी के जहाज में मीडिया भी सवार
इस 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 90 मिनट के भाषण में दहाड़ और हुंकार में बेतहाशा कमी नजर आई, वे पुरानी बातों को ही दोहराते नजर आए और मीडिया को लेकर भी उनका रुख किंचित नरम नजर आया। यही नहीं मीडिया को लेकर मोदी और पी.एम.ओ. का दृष्टिकोण भी इन दिनों कुछ बदला-बदला नजर आ रहा है, क्योंकि यह केन्द्र में मोदी सरकार के गठन के बाद पहली बार है जब मीडिया हाऊस से पूछा गया कि वे प्रधानमंत्री के आबूधाबी और दुबई के 2 दिवसीय विदेशी दौरे में अपना कोई प्रतिनिधि पी.एम. के साथ भेजना चाहेंगे? मई 2014 में केन्द्र में भाजपा-नीत एन.डी.ए. सरकार के गठन के बाद से इस परम्परा पर पूरी तरह से लगाम लगा दी गई थी कि प्रधानमंत्री के विदेशी दौरे में उनके साथ पत्रकारों का कोई दल जाए। नहीं तो अब तक की परम्पराओं में प्रधानमंत्री के साथ जाने वाले पत्रकारों के दल का सिर्फ होटल में रुकने का खर्च उनका मीडिया हाऊस वहन करता था, विदेश मंत्रालय के इस ताजा अनुरोध से देश के मीडिया घराने सचमुच हैरान हैं कि मोदी सरकार अब आबूधाबी और दुबई जाने के लिए पत्रकारों के नखरे उठाने को तैयार है।
 
‘आनंद’ से नहीं हैं प्रमोद
राज्यसभा में स्थगन प्रस्ताव पर कांग्रेस की ओर से 2 वक्ताओं को बोलना था, लिस्ट में पहला नाम प्रमोद तिवारी का, तो दूसरा नाम आनंद शर्मा का था। उपसभापति के आदेश पर जैसे ही प्रमोद तिवारी बोलने को खड़े हुए, अभी उन्होंने बोलना भी शुरू नहीं किया था कि आनंद शर्मा ने अपनी सीट पर खड़े होकर बेधड़क बोलना शुरू कर दिया। तिवारी जी भौचक्क रह गए और फिर अपनी सीट पर बैठ गए, पर इसी बीच चंद सीनियर कांग्रेसी नेताओं मसलन सत्यव्रत चतुर्वेदी, अंबिका सोनी और गुलाम नबी आजाद ने तिवारी का हौसला बढ़ाया कि अगर सूची में उनका नाम पहले है तो पहले उन्हें ही बोलना चाहिए। अपनी पार्टी के सीनियर नेताओं का हौसला पाकर तिवारी जी फिर से अपनी जगह खड़े हुए और उन्होंने भी बोलना शुरू कर दिया। सदन में वाकई एक असमंजस की स्थिति पैदा हो गई, उपसभापति ने शर्मा और तिवारी की ओर देखते हुए कहा कि ‘‘पहले आप दोनों फैसला कर लीजिए कि आपकी पार्टी की ओर से पहले कौन बोलेगा?’’
 
अदानी, ईरान और हिन्दुस्तान
ईरान के विदेश मंत्री जावेद जारिफ पिछले दिनों भारत के दौरे पर आए और नितिन गडकरी व सुषमा स्वराज से मिलने के बाद प्रधानमंत्री मोदी से मिले। प्रधानमंत्री के साथ इस मुद्दे पर चर्चा आगे बढ़ाई गई कि भारत-ईरान के बीच आपसी संबंध मजबूत करने के साथ-साथ परस्पर व्यापार को और आगे कैसे बढ़ाया जाए? इन मुद्दों के अतिरिक्त शाभर पोर्ट के मुद्दे पर अलग से बातचीत हुई। दरअसल शाभर पोर्ट का मसला बीच में ही अटका हुआ है क्योंकि मोदी करीबी और भारत के एक प्रमुख उद्योगपति गौतम अदानी इस पोर्ट का अधिग्रहण करना चाहते हैं, पर वे जिन शर्तों पर अधिग्रहण करना चाहते हैं इसके लिए ईरान सरकार तैयार नहीं बताई जाती है, सो मोदी अपनी निजी पहल पर इस मामले को निपटाने में अपनी दिलचस्पी दिखा रहे थे।
 
सपा सुप्रीमो का ‘मुलायम’ होना
संसद के मानसून सत्र के दौरान सपा मुखिया, मुलायम सिंह यादव का मोदी सरकार के प्रति इस कदर यूं अचानक मुलायम हो जाना राजनीतिक पंडितों को हैरानी में डाल गया। सूत्र बताते हैं कि पिछले कुछ समय से यादव और उनके पुत्र, पुत्री व पत्नी से सी.बी.आई. की कड़ी पूछताछ जारी है। मुलायम सिंह यादव के घोटालों से जुड़ी 2002 से लेकर 2015 तक की फाइल खंगाली जा रही है और सी.बी.आई. इस बात की तहकीकात में जुटी है कि मुलायम सिंह यादव को अब तक किन-किन नेताओं व नेत्रियों से राजनीतिक संरक्षण मिलता आया है। सनद रहे कि सपा शासन काल के दौरान 954 करोड़ के घोटालों की फाइल भी खुल चुकी है, यही बात है जो कहीं न कहीं मुलायम को बेतरह परेशान कर रही है और उन्हें अपना पुराना स्टैंड बदलने पर मजबूर भी कर रही है।
 
प्रजातंत्र के प्रजापति
अगर सी.बी.आई. जांच की बात करें तो इसके लपेटे में अगला नम्बर अखिलेश सरकार के कैबिनेट मंत्री गायत्री प्रजापति का आ सकता है, सनद रहे कि ये वही गायत्री प्रजापति हैं जो अपने आप को मुलायम सिंह का तीसरा पुत्र कहते आए हैं। जल्द ही इस बाबत हाईकोर्ट का फैसला आने वाला है, यूं भी लोकायुक्त के मामले में राज्यपाल और हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एक राय बताए जाते हैं। सनद रहे कि यू.पी. में चाहे लोकायुक्त की नियुक्ति का मामला हो या एम.एल.सी. चुनाव, अखिलेश सरकार से वहां के राज्यपाल और सी.जे. की नाराजगी जगजाहिर है। सूत्र बताते हैं कि सी.बी.आई. के पास प्रजापति से जुड़े जो कागजात हैं उसके मुताबिक घोटाले की यह फेहरिस्त 1000 करोड़ से भी ज्यादा की है।
 
सदन नहीं चला, विदेशी निवेश भी घटा
सदन नहीं चलने का असर विदेशी निवेश पर दिखने लगा है, जिस तरह पिछले कुछ समय से सरकार कोई भी महत्वपूर्ण विधेयक सदन में पारित कराने में नाकाम साबित हो रही है, उससे मोदी सरकार से निवेशकों का विश्वास डगमगाया है, उन्हें लगता है कि भले ही मोदी सरकार एक बहुमत की सरकार है पर 44 सदस्यीय कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष सरकार पर बीस साबित हो रहा है। एक वर्ष से ज्यादा वक्त गुजर जाने के बावजूद भी सरकार बमुश्किल दो-तीन महत्वपूर्ण विधेयक ही सदन में पारित करवा पाई है और बीमा सैक्टर से लेकर ‘लेबर रिफॉर्म’ की दिशा में कुछ भी होता नहीं दिख रहा है, यही वजह है कि निवेशक अब तेजी से अपना मुंह मोड़ रहे हैं और हमारी अर्थव्यवस्था को जो गति व ग्रोथ मिलनी चाहिए वह नहीं मिल पा रही है।
 
...और अंत में
इस पूरे मानसून सत्र के दौरान ऐसा प्रतीत हुआ कि राहुल गांधी को लेकर सोनिया का भरोसा मजबूती से कायम हुआ है, सोनिया की नजर में अब राहुल एक ऐसे लीडर के तौर पर सामने आए हैं जो न केवल कांग्रेस बल्कि देश की भी नुमाइंदगी कर सकते हैं। चुनांचे सदन से बाहर जब राहुल मीडिया को बाइट देते दिखे तो सोनिया हमेशा राहुल से एक दूरी बना कर खड़ी रहीं और राहुल की बातों से भंगिमाओं के माध्यम से अपनी रजामंदी दिखाती रहीं। यही वजह है कि मानसून सत्र में सोनिया ने अपने कोर ग्रुप के न चाहने के बावजूद भी राहुल के कई बड़े फैसलों को सिर-माथे लगाया, इसमें राहुल का सबसे बड़ा फैसला मानसून सत्र के ‘वॉश आऊट’ का था, हालांकि स्वयं सोनिया चाहती थीं कि मानसून सत्र में जी.एस.टी. समेत कुछ महत्वपूर्ण विधेयकों पर चर्चा हो, पर राहुल गांधी की जिद के आगे उन्होंने हथियार डाल दिए।    
 
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