‘चैक बाऊंस’ मामलों को गैर-जमानती अपराध घोषित किया जाए

Tuesday, Jun 30, 2015 - 12:06 AM (IST)

(विमल वधावन): भारत की अदालतों में चैक अवमानना के लाखों मुकद्दमे केवल इसलिए लम्बित हैं कि हमारी सरकार ने चैक अवमानना को एक अपराध का दर्जा तो दे दिया परन्तु उसके बदले में कोई प्रभावशाली सजा का प्रावधान नहीं बना। नैगोशिएबल इंस्ट्रूमैंट अधिनियम की धारा-138 में चैक अवमानना के अपराध के लिए एक वर्ष की जेल या चैक राशि से दोगुने जुर्माने अथवा दोनों की सजा हो सकती है। 

यह अपराध जमानत योग्य है अर्थात चैक जारी करने वाला व्यक्ति मुकद्दमे के चलते जमानत पर रहता है। मुकद्दमे की अवधि कई वर्ष होती है। उसके बाद उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में अपील पर अपील करके समय बिताया जाता है। 
 
बड़ी राशि के मामलों में तो अपराधी लोग भारी राशि मुकद्दमों पर खर्च करके तकनीकी कमियों का सहारा लेकर अपने आपको मुक्त कर लेते हैं और बेचारा पीड़ित अपनी चैक राशि भी गंवा बैठता है और मुकद्दमों पर भी उसे अपार धनराशि खर्च करनी पड़ती है। यदि मुकद्दमों से राहत मिलती नजर न आए तो ऐसे अपराधी अंतत: जान फंसती देख समझौता करके छुटकारा प्राप्त कर लेते हैं और समझौते में अधिक से अधिक चैक की राशि या थोड़ा बहुत ब्याज अदा कर देते हैं।
 
इसका एक सरल उपाय यह है कि चैक अवमानना के मामलों को गैर जमानती अपराध घोषित कर दिया जाए। इस प्रकार जैसे ही चैक की अवमानना हो तो जारीकत्र्ता अपनी गिरफ्तारी से बचने के लिए अपने लेनदार को तुरन्त चैक की राशि का भुगतान कर देगा। यदि वह ऐसा नहीं करता तो गिरफ्तारी के बाद जैसे ही उसे पुलिस अदालत में पेश करे तो न्यायाधीशों के पास भी एक ही मार्ग होगा कि वे या तो उसकी जमानत प्रार्थना पत्र को अस्वीकार करें अन्यथा उसके सामने जमानत करवाने की एक शर्त रखें कि वह चैक राशि का भुगतान करे। 
 
इस प्रकार हर कदम पर लेनदार को भुगतान प्राप्त करने में कानून की सहायता प्राप्त होती रहेगी। पाकिस्तान में चैक अवमानना को गैर जमानती अपराध घोषित किया गया है जिसके परिणामस्वरूप वहां इस प्रकार के मुकद्दमे बहुत कम संख्या में लम्बित दिखाई देते हैं। 
 
सर्वोच्च न्यायालय  ने गत वर्ष दशरथ रूप सिंह राठौर नामक मुकद्दमे के निर्णय  से चैक अवमानना के मुकद्दमों की बढ़ती संख्या का इलाज ढूंढने का प्रयास किया। सर्वोच्च न्यायालय ने इस निर्णय में यह व्यवस्था घोषित की कि चैक अवमानना का मुकद्दमा उस शहर की अदालत में होगा जहां चैक जारी करने वाले व्यक्ति का बैंक खाता हो। 
 
इससे पूर्व कानून की व्याख्या के अनुसार यही सर्वोच्च न्यायालय कई बार यह व्यवस्था दे चुका था कि चैक अवमानना के मुकद्दमे किसी भी स्थान पर हो सकते हैं, अर्थात् जहां लेनदार व्यक्ति का बैंक खाता हो या जारीकत्र्ता का बैंक खाता हो। सर्वोच्च न्यायालय के दशरथ रूप सिंह राठौर निर्णय के बाद सारे देश में लाखों मुकद्दमों पर ऐसा बुरा प्रभाव पड़ा कि लेनदार अर्थात् व्यक्ति स्वयं को कानून के हाथों ही ठगा हुआ महसूस करने लगे। 
 
इस व्यवस्था को एक सरल उदाहरण से समझा जा सकता है। दिल्ली के किसी व्यापारी के पास मुम्बई, कोलकाता और चेन्नई अथवा देश के किसी भी सुदूर शहर के व्यापारी आते हैं। वे दिल्ली वाले व्यापारी से भारी मात्रा में सामान खरीदते हैं और चैक द्वारा भुगतान का आश्वासन देते हैं। यदि कभी अचानक मुम्बई, कोलकाता और चेन्नई के 3 व्यापारियों के बड़ी राशि के चैक तिरस्कृत हो जाएं तो दिल्ली वाले व्यापारी के पास पहले यह कानूनी सुविधा थी कि वह दिल्ली की अदालत में तीनों व्यापारियों के विरुद्ध आपराधिक मुकद्दमा दर्ज करवा दे। तीनों व्यापारियों को दिल्ली आकर मुकद्दमे की प्रक्रिया निभानी पड़ेगी। तीनों को इस प्रक्रिया से कानूनी खर्च, आने-जाने की कठिनाई और अंतत: जेल सजा या जुर्माने की सोच जब भी कभी परेशान करेगी तो वे चैक राशि का भुगतान करने के लिए राजी हो जाएंगे। 
 
सर्वोच्च न्यायालय के दशरथ रूप सिंह राठौर के निर्णय के बाद यह व्यवस्था घोषित हो गई कि चैक अवमानना का मुकद्दमा जारीकत्र्ता के बैंक शाखा वाले स्थान पर होगा। इस निर्णय के बाद दिल्ली की अदालत ने दिल्ली व्यापारी के तीनों मुकद्दमे उसे वापस लौटाते हुए यह निर्देश दिया कि वह इन मुकद्दमों को मुम्बई, कोलकाता और चेन्नई जाकर वहां की अदालतों में प्रस्तुत करे। 
 
दिल्ली का पीड़ित व्यक्ति स्वाभाविक रूप से कोसता होगा न्याय व्यवस्था के उन सभी बुद्घिजीवियों को जिन्होंने ऐसा निर्णय देकर उसकी पीड़ा को कई गुना बढ़ा दिया। इसका परिणाम यह निकला कि अपराधी तो अपने-अपने शहर में बैठकर सरलता से कानूनी प्रक्रिया में शामिल होंगे जबकि पीड़ित लेनदार व्यक्ति सारे महीने अलग-अलग शहरों के चक्कर काटता फिरेगा। इसके बावजूद उसे इस बात की कोई गारंटी नहीं कि मुकद्दमों में किसी तकनीकी कमी के चलते उसके मुकद्दमे उसे चैक राशि भी दिलवा पाएंगे या नहीं। 
 
केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने इस कानूनी विषय पर त्वरित और संवेदनात्मक प्रतिक्रिया दिखाते हुए 15 जून, 2015 को राष्ट्रपति के हस्ताक्षरयुक्त विशेष अध्यादेश जारी किया है जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के प्रभाव को पूरी तरह से समाप्त करते हुए नैगोशिएबल इंस्ट्रूमैंट अधिनियम की धारा-142 के अन्तर्गत एक विशेष प्रावधान को जोड़ते हुए कहा गया है कि धारा-138 के अंतर्गत चैक अवमानना के मुकद्दमों को ऐसी अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकता है जहां पर लेनदार व्यक्ति ने चैक को भुगतान के लिए प्रस्तुत किया हो या जहां पर चैक जारीकत्र्ता के बैंक की शाखा स्थित हो। 
 
इस विशेष अध्यादेश में यह प्रावधान भी किया गया है कि जिन मुकद्दमों को अदालत के किसी आदेश के अन्तर्गत क्षेत्राधिकार के आधार पर स्थानान्तरित कर दिया गया था उन मुकद्दमों को उक्त दोनों में से किसी स्थान पर भी मुकद्दमों को पुन: स्थानांतरित कराने का अधिकार होगा। 
 
राष्ट्रपति के इस अध्यादेश ने यह सिद्ध कर दिया है कि नरेन्द्र मोदी सरकार कानून के मामलों में न्यायव्यवस्था की गलतियां सुधारने के लिए भी संवेदनशील है। इस अध्यादेश से ऐसे लाखों लेनदारों को राहत मिलेगी जो जारीकत्र्ता व्यक्ति की बैंक शाखा वाले शहर की अदालत में चैक अवमानना के मुकद्दमों को प्रस्तुत करने में कठिनाई महसूस कर रहे थे। इस अध्यादेश ने चैक अवमानना के पीड़ितों के लिए एक न्यायिक व्यवस्था उपलब्ध कराने का भी कार्य कर दिखाया है।
 
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