‘योग’ : मानवता को भारत का अनमोल वरदान

Tuesday, Jun 16, 2015 - 12:21 AM (IST)

(शांता कुमार): राष्ट्रसंघ द्वारा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने का निर्णय भारत की एक ऐतिहासिक अभूतपूर्व और चिर-स्मर्णीय उपलब्धि है। अब प्रतिवर्ष 21 जून को पूरी दुनिया के लगभग सभी देशों में भारत को और योग को याद किया जाएगा। भारत के ऋषि-मुनियों द्वारा गहन अध्ययन और शोध के बाद मानव जाति को दिए गए इस वरदान की यह अंतर्राष्ट्रीय मान्यता विश्व के इतिहास की भी एक बहुत बड़ी उपलब्धि है।

इस उपलब्धि में एक और उपलब्धि यह है कि इस पर प्रारम्भ में कुछ विरोध के स्वर उभरे परन्तु सरकार के उदार  भाव से अब पूर्ण राष्ट्रीय सहमति बन गई है। भारत एक बहुत बड़ा देश है। भाषा, पूजा पद्धति, पहनावा सब प्रकार की विभिन्नताएं हैं।  उस सबके बावजूद भी पूरे देश में योग पर जो राष्ट्रीय सहमति बनी वह  पूरे भारत के लिए एक स्वाभिमान की बात है।
 
इस ऐतिहासिक निर्णय का श्रेय केवल केन्द्र सरकार को नहीं दिया जा सकता। इस विषय पर खुले दिल से विचार किया जाना चाहिए। मनुष्य की एक कमजोरी है कि श्रेय लेने में बहुत उदार हो जाता है और श्रेय देने में बहुत कंजूस हो जाता है। आज से एक सदी से भी अधिक पहले स्वामी विवेकानंद जी ने विश्व में भारतीय संस्कृति का प्रतिपादन किया।  लगभग 4 वर्ष विभिन्न देशों में घूमकर योग का प्रचार किया, बहुत से योग केन्द्र खोले। उसके बाद इन 100 वर्षों में कई संस्थाएं व स्वामी विभिन्न देशों में जाकर योग का प्रचार करते रहे।
 
श्री श्री रविशंकर  ‘‘आर्ट ऑफ लिविंग’’ नाम से कई देशों में योग सिखा रहे हैं। स्वामी रामदेव ने भारत के घर-घर में आस्था चैनल के माध्यम से योग को पहुंचाया।  योग को जन-जन तक पहुंचाकर उसे एक जन आंदोलन  बनाया। स्वामी रामदेव ने  कई देशों में जाकर योग शिविर लगाए। पूरे विश्व में इन 100 वर्षों में योग के प्रचार-प्रसार से एक अनुकूल पृष्ठभूमि बनी थी।  एक सदी के उन सभी प्रयासों को अन्तिम मोहर लगाने का काम भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया।  
 
राष्ट्रसंघ को संबोधित करते हुए उन्होंने विश्व समुदाय से यह आह्वान किया कि पूरा विश्व योग दिवस मनाने का निर्णय करे। राष्ट्रसंघ के 190 देशों में से 177 देशों ने इसका समर्थन ही नहीं किया अपितु सह-प्रस्ताविक भी बन गए। राष्ट्रसंघ  में सर्वसम्मति  से 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने का ऐतिहासिक निर्णय हुआ।
 
इस ऐतिहासिक उपलब्धि का श्रेय स्वामी विवेकानंद जी से लेकर स्वामी रामदेव जी तक के सभी महापुरुषों को जाता है। परन्तु इन सारे प्रयत्नों को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता दिलवाने का काम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया।
 
मनुष्य केवल शरीर नहीं, मन भी है और आत्मा भी है। मनुष्य सबसे बड़ी गलती तब करता है जब वह स्वयं को केवल शरीर समझ लेता है, उसी से वह भौतिकवाद पनपता है जिसके कारण  स्वार्थ, भ्रष्टाचार, छल -कपट, ईष्र्या-द्वेष, धन का पागलपन पैदा होता है।  योग शरीर मन और आत्मा की सही पहचान कराने की एक आध्यात्मिक कला है।  
 
योग, प्राणायाम और ध्यान से यह अनुभूति प्राप्त होती है कि मैं केवल हाड़-मांस का यह शरीर नहीं, यह तो नश्वर है परन्तु मैं वह आत्मा हूं, उस परम पिता परमेश्वर का अंश हूं जो न कभी जन्म लेती है न कभी मरती है।  यह अनुभूति मनुष्य को उस परम सत्ता से जोड़ती है और हम मनुष्य मात्र को अपना समझने लगते हैं। फिर शरीर के लिए, अपने स्वार्थ के लिए एक-दूसरे का गला काटने की स्पर्धा कम होने लगती है। सद्भाव बढ़ता है। स्वार्थ का पागलपन समाप्त होता है। इस दृष्टि से मानव जाति को सुख और शांति का संदेश देना योगका परम लक्ष्य है।
 
प्रत्येक धर्म में यही कहा गया है कि-स्वयं को पहचानो-महात्मा बुद्घ ने कहा था— ‘‘आपोदीपोभव’’ अपने दीपक स्वयं बनो। जीवन में कुछ क्षण एकांत में बैठ कर ध्यान द्वारा अपने अंदर झांकने की कोशिश ध्यान का मुख्य लक्ष्य है। स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था ‘‘कभी-कभी एकांत में अपने आप से भी मिला करो, नहीं तो तुम दुनिया के सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति से मिलने से वंचित रह जाओगे। हम दिनभर बाहर दुनिया को दूसरों को देखते रहते हैं। उससे मन भ्रमित होता है। दुनियाभर  की समस्याएं मन को बोझल बनाती हैं। तनाव होता है और तनाव से ही मन की और शरीर की बहुत-सी बीमारियां पैदा होती हैं।  यदि दिन में कुछ क्षण बाहर से हट कर अपने अंदर झांकने की कोशिश करें, उसे जानने की कोशिश करें जो हम हैं और उससे मिलें जो उस परम सत्ता का अंश है तो कुछ क्षण का यह ध्यान हमारे पूरेे दिन के तनाव को समाप्त कर सकता है।’’
 
हम जीवनभर शरीर के साथ रहते हैं पर उससे सच्चा परिचय नहीं होता।  एक कवि ने कहा है- रूह का जिस्म से रिश्ता अजब रिश्ता है, जिन्दगी भर साथ रहे पर तआरफ न हुआ।
 
स्वामी विवेकानंद जी बीमार हुए। शिष्य चितित हो उठे। एक शिष्या ने पत्र लिखा-‘‘यदि आपको कुछ हो गया तो हमारा क्या होगा।’’ स्वामी जी ने उत्तर दिया कि उन्हें न कभी कुछ हुआ, न होगा। जो होगा वह इस शरीर को होगा। भावुकता  में एक कविता लिख दी। कविवर निराला ने उस अंग्रेजी कविता का बड़ा सुन्दर हिन्दी अनुवाद किया है-बहुत पहले बहुत पहले जबकि रवि, शशि और उडगन भी नहीं थे इस धरा का भी न था अस्तित्व कोई और जब यह समय भी  उपजा नहीं था मैं सदा था, आज भी हूं और आगे भी रहूंगा।
 
स्वामी जी का भाव था कि जब प्रलय के बाद कुछ भी न था वह अर्थात आत्मा तब भी थी आज भी है और सदा रहेगी। मरता केवल शरीर है आत्मा अमर है। स्वामी रामदेव जी ने यह भी सिद्घ कर दिया है कि प्राणायाम से शरीर की बहुत सी बीमारियों का उपचार होता है। जिस मोटापे से आज बहुत से लोग परेशान हैं उसका सरल उपचार स्वामी रामदेव जी ने प्राणायाम बताया ही नहीं है, सिद्ध भी किया है। स्वामी रामदेव जी के एक शिविर में एक बहुत विद्वान डाक्टर ने कहा था प्राणायाम बहुत सीधा विज्ञान है। हमारे शरीर में करोड़ों जीवाणु हैं। सब सक्रिय नहीं रहते। फेफड़ों में तो लगभग आधे जीवाणु आयु के साथ निष्क्रिय हो जाते हैं। जब गहरी सांस लेकर हम ऑक्सीजन को बार-बार अंदर लेते हैं और अंदर की विषैली हवा बाहर छोड़ते हैं तो इस गहरी सांस लेने की प्रक्रिया से शरीर के भीतर के निष्क्रिय जीवाणु सक्रिय होते हैं और सब प्रकार का स्वास्थ्य लाभ मिलता है।
 
राष्ट्रसंघ के विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि विश्व में जितने लोग बीमारी से मरते हैं, उतने ही अंग्रेजी दवाइयों के अधिक व गलत उपयोग से मरते हैं। यदि योग व प्राकृतिक चिकित्सा को शिक्षा का हिस्सा बनाया जाए तो दवाई का उपयोग बहुत कम हो जाएगा। इस दृष्टि से योग मानव के लिए एक वरदान सिद्ध हो सकता है।
 
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