अमरीका की तरक्की का ‘रहस्य’

Saturday, Jun 06, 2015 - 05:59 AM (IST)

(डा. चरणजीत सिंह गुमटाला): अमरीका ने सशस्त्र स्वतंत्रता आंदोलन द्वारा ब्रिटेन से आजादी हासिल की थी। यही कारण है कि उन्होंने ब्रितानिया से बिल्कुल अलग तरह का प्रबंधकीय ढांचा स्थापित किया जिसे ‘फैडरल सिस्टम’ कहा जाता है। यदि अमरीकी ध्वज पर नजर डालें तो उसमें 13 पट्टियां और 50 सितारे हैं। जब अमरीका स्वतंत्र हुआ तो उस समय वह ब्रिटेन के 13 उपनिवेशों (प्रांतों) का संघ था। धीरे-धीरे अन्य प्रांत इसमें शामिल होते चले गए और प्रांतों की कुल संख्या 50 हो गई। 50 सितारे इन 50 प्रांतों के प्रतीक हैं। 

अमरीका में केन्द्र सरकार के पास बहुत कम शक्तियां होती हैं। उसके पास केवल करंसी छापने, सेना रखने, दूसरे देशों के साथ समझौते करने, युद्ध की घोषणा करने जैसे महत्वपूर्ण अधिकार ही हैं। केन्द्रीय कानून समस्त प्रांतों पर लागू होता है। जहां तक प्रदेशों का संबंध है, वे अपने आप में स्वायत्तशासी  हैं। यहां तक कि कोई भी प्र्रांत अमरीका से अलग होना चाहेगा तो वह ऐसा करने को स्वतंत्र है लेकिन अभी तक ऐसा हुआ नहीं। 
 
प्रत्येक प्रांत के अपने-अपने कानून हैं। यही कारण है कि कुछ प्रांतों में फांसी की सजा है और कुछ में नहीं। ट्रैफिक नियम भी अलग-अलग हैं। प्रांतों ने आगे नगर निगमों को शक्तियां प्रदान कर रखी हैं। हर नगर निगम की अपनी पुलिस है, जो अपने क्षेत्राधिकार में काम करती है। उसमें सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता। नक्शे भी नगर निगम ही पास करता है, उससे सरकार का कुछ लेना-देना नहीं। 
 
पंजाब में व्यावसायिक नक्शे इत्यादि स्थानीय निकायों के मंत्री या फिर मुख्यमंत्री के पास जाते हैं। लाल फीताशाही के चलते कथित तौर पर मोटी राशियों की वसूली की जाती है। अमरीका में जो नक्शे पास होते हैं, वे पहले इंटरनैट पर जारी किए जाते हैं ताकि लोगों को पता लग सके। जब नक्शे पास करने वाली समिति की बैठक होती है तो उसका सीधा प्रसारण स्थानीय टी.वी. चैनल पर दिखाया जाता है और कोई भी व्यक्ति उस मीटिंग में शामिल हो सकता है। 
 
अस्पताल प्राइवेट हैं। शिक्षा विभाग तो है लेकिन वह हमारी तरह स्कूलों का संचालन नहीं करता। न ही अध्यापकों की भर्ती करता है। 12वीं कक्षा तक शिक्षा नि:शुल्क है। जिस ग्रामीण या शहरी क्षेत्र का स्कूल हो, वहां के लोग मतदान द्वारा 4 वर्ष के लिए एक समिति का चयन करते हैं, जो अध्यापकों की भर्ती करती है व स्कूल चलाती है। स्कूलों के लिए कुछ राशि सरकार देती है और शेष राशि घरों पर टैक्स लगाकर इकठ्ठी की जाती है। बसें भी स्कूलों की अपनी हैं और इनके लिए अलग से कोई किराया नहीं लिया जाता। 
 
अमरीका की शेष दुनिया से यह विलक्षणता है कि यहां पर मतदान द्वारा सीधा चुनाव होता है, कोई चोर रास्ता या नामांकन नहीं, जैसा कि भारत में चलता है। शहरी स्तर पर मेयर का सीधा चुनाव होता है और राज्य स्तर पर गवर्नर व केन्द्रीय स्तर पर राष्ट्रपति का चुनाव भी सीधे मतदान द्वारा होता है। इसका लाभ यह है कि राष्ट्रपति को समस्त प्रांतों में वोट मांगने के लिए जाना पड़ता है। 
 
भारत में हमने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पद सृजित कर रखे हैं। हमें भी राष्ट्रपति का पद समाप्त करके प्रधानमंत्री का सीधा चुनाव करवाना चाहिए। प्रादेशिक स्तर पर मुख्यमंत्री का चयन सीधे मतदान से होना चाहिए, जबकि गवर्नर की पदवी समाप्त कर देनी चाहिए।
 
भारत की तरह अमरीका में भी राष्ट्रीय स्तर पर 2 सदन हैं। लोकसभा के स्थान पर उनके पास ‘हाऊस आफ रिप्रजैंटेटिव्स’ है, जिसकी सदस्य संख्या 435 है परन्तु इनका चयन प्रति 2 वर्ष बाद होता है, ताकि सदस्यों का  जनता के साथ सम्पर्क बना रहे। यदि हम भी लोकसभा के चुनाव प्रति 2 वर्ष बाद करवाएं तो लोकसभा सांसदों को अपने मतदाताओं के साथ जीवंत सम्पर्क बनाए रखने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। 
 
प्रदेशों में विधायकों का चयन भी 2 साल के लिए होता है। हमें भी इसी तर्ज पर विधायकों का चयन 2 वर्षों के लिए करना चाहिए। अमरीका में जन प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का प्रावधान है, लेकिन हमारे यहां नहीं।
 
जहां तक राज्यसभा का संबंध है, अमरीका में इसकी समकक्ष संस्था को सीनेट कहते हैं। अमरीका में प्रत्येक प्रांत से केवल 2 सीनेटर चुने जाते हैं, जिन्हें प्रांत के मतदाता खुद अपनी वोटों से चुनते हैं। 
 
अमरीका के विपरीत इंगलैंड, कनाडा, फ्रांस इत्यादि देशों में भारत जैसी मिश्रित अर्थव्यवस्था है। यानी कि प्राइवेट  और  पब्लिक सैक्टर  दोनों ही हैं और सभी को रोजगार, स्वास्थ्य  सेवाएं, शिक्षा वगैरह उपलब्ध करवाना सरकार की जिम्मेदारी है। 
 
अमरीका में पूंजीवादी व्यवस्था है, जबकि भारत ने अभी भी ब्रिटिशकाल के कानून लागू कर रखे हैं, जो  वर्तमान  समय में कोई प्रासंगिकता  नहीं रखते। इसलिए सम्पूर्ण संवैधानिक ढांचे को समीचीन बनाने के लिए एक विशेष टीम गठित करनी चाहिए और अमरीका की तरह भारत में भी राज्यों को अधिक अधिकार दिए जाने चाहिएं। 
 
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