पी.डी.पी.-भाजपा का ‘हनीमून’ शुरू होने से पहले ही ‘खत्म’

Friday, May 29, 2015 - 12:59 AM (IST)

(बलराम सैनी): जम्मू-कश्मीर की पी.डी.पी.-भाजपा सरकार 1 जून को अपना 3 माह का कार्यकाल पूरा कर रही है लेकिन सरकार गठन के पहले ही दिन मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद द्वारा की गई विवादास्पद बयानबाजी के साथ शुरू हुआ तनाव का दौर सरकार का पीछा नहीं छोड़ रहा है। आम तौर पर नई सरकार के गठन के साल-छ: महीने तक तो नेताओं और कार्यकत्र्ताओं में भारी जोश होता है लेकिन राज्य की गठबंधन सरकार के इस अल्प कार्यकाल के दौरान उठे ढेर सारे विवादों ने पी.डी.पी.-भाजपा के सत्ता सुख भोगने के हनीमून को शुरू होने से पहले ही समाप्त कर दिया है। 

राज्य के विकास और जनता की आकांक्षाओं को पूरा करने के जिस दावे के साथ सरकार का गठन हुआ, उसके लिए सत्तारूढ़ दलों के बीच तालमेल बेहद जरूरी है लेकिन कभी राज्य में सुचारू चुनाव का श्रेय पाकिस्तान, आतंकवादियों एवं अलगाववादियों को देने, कभी भारतीय संसद पर हमले के मास्टरमाइंड मोहम्मद अफजल गुरु की अस्थियों को वापस लाने की वकालत, कभी 2010 में कश्मीर की कुख्यात पत्थरबाजी के मास्टरमाइंड की रिहाई पर बवाल, रोज-रोज घाटी में पाकिस्तानी झंडे लहराए जाने सेदेशभर में फैले रोष, नई भर्ती नीति से रोष-प्रदर्शन के बादइसकी समीक्षा पर विवश होने के बाद अब ऑल पार्टी हुरयत कांफ्रैंस (जी.) के चेयरमैन सैयद अली शाह गिलानी को पासपोर्ट देने के मुद्दे पर सत्तारूढ़ पी.डी.पी. एवं भाजपा का आमने-सामने आ जाना, दोनों पार्टियों के बीच तालमेल के अभाव की ही पोल खोलता है। 
 
इसके अलावा न्यूनतम सांझा कार्यक्रम में ऑल इंडिया इंस्टीच्यूट ऑफ मैडीकल साइंसिज (एम्स) कश्मीर को सौंपे जाने के बाद अब जम्मू के पर्यटन विकास में उम्मीद की किरण बनी कृत्रिम झील परियोजना पर सवाल उठाकर मुख्यमंत्री ने जम्मू में भाजपा को पूरी तरह बैकफुट पर ला दिया है। इसके चलते न केवल विपक्षी कांग्रेस, पैंथर्स पार्टी एवं नैशनल कांफ्रैंस पूरी तरह सक्रिय होकर सरकार विशेषकर भाजपा पर हावी हो गई हैं, बल्कि भाजपा नेताओं के पास कोई उपयुक्त जवाब न होने के चलते पार्टी की लोकप्रियता का ग्राफ भी बड़ी तेजी से गिरा है। 
 
गठबंधन सरकार की कार्यशैली पर निगाह डालें तो यही प्रतीत होता है कि राजनीतिक परिपक्वता के लिए मशहूर रहे मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद इस बार कुछ बदले-बदले से नजर आते हैं। इस बार वह समग्र जम्मू-कश्मीर को साथ लेकर विकास के पथ पर अग्रसर होने के बजाय संवेदनशील मुद्दों को हवा देकर अलगाववादी विचारधारा के लोगों के बीच अपनी पार्टी पी.डी.पी. का भविष्य देख रहे हैं। इसी रणनीति के चलते मुफ्ती कश्मीर में पी.डी.पी. का जनाधार मजबूत करने के मकसद से जाने-अनजाने जम्मू में अपनी सहयोगी भाजपा की कमर तोडऩे के एजैंडे पर काम करते प्रतीत हो रहे हैं। 
 
दिसम्बर 2014 में सम्पन्न हुए राज्य विधानसभा चुनाव में 25 सीटें हासिल करके दूसरी बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी भाजपा के नेताओं का सत्ता हासिल करने को लेकर मानसिक दबाव कहें या राजनीतिक अपरिपक्वता, कि पी.डी.पी. के साथ न्यूनतम सांझा कार्यक्रम बनाते समय ही जम्मू क्षेत्र से भेदभाव की समाप्ति, धारा-370, परिसीमन, पी.ओ.के. विस्थापितों को न्याय एवं वैस्ट पाकिस्तानी रिफ्यूजियों को नागरिकता दिलाने जैसे भाजपा के चुनावी मुद्दों को एक झटके में दफन कर दिया गया। 
 
यह जानते हुए भी कि जम्मू क्षेत्र के लोग चिकित्सा सुविधाओं के अभाव से जूझ रहे हैं, भाजपा नेताओं ने केंद्र सरकार से मिले एम्स (ऑल इंडिया इंस्टीच्यूट ऑफ मैडीकल साइंसिज) को भी थाली में परोसकर कश्मीरियों को थमा दिया, जबकि कश्मीर घाटी में पहले से ही बेहतरीन चिकित्सा संस्थान मौजूद हैं। 
 
इसके अलावा कभी नई भर्ती नीति को लेकर पूर्ववर्ती नैशनल कांफ्रैंस-कांग्रेस सरकार के खिलाफ जम्मू बंद का नेतृत्व करने वाली भाजपा इस बार पी.डी.पी. के साथ मिलकर वैसी ही नई भर्ती नीति लेकर आ गई। हालांकि, जनविरोध के चलते समीक्षा के नाम पर फिलहाल इसे ठंडे बस्ते में डालना पड़ा है। 
 
इन मुद्दों को लेकर जम्मू में भाजपा के खिलाफ धधक रही आग अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने जम्मू की अति महत्वाकांक्षी परियोजना कृत्रिम झील के औचित्य पर ही सवाल खड़े कर दिए। सिंधु जल संधि के उल्लंघन का हवाला देकर पाकिस्तान द्वारा पहले ही इस झील पर आपत्ति जताई जा चुकी है लेकिन पिछली सरकार ने किसी की परवाह न करते हुए इसका निर्माण कार्य जारी रखा। इस परियोजना पर करीब साढ़े 57 करोड़रुपए की राशि खर्च हो चुकी है। ऐसे में, मुफ्ती का यह कहना है कि तवी नदी में पानी का बहाव निरंतर एवं स्थायी न होने के कारण यहां कृत्रिम झील का निर्माण व्यावहारिक नहीं है, किसी के गले नहीं उतर रहा है। 
 
पत्रकारवार्ता में मुख्यमंत्री के साथ बैठे उप-मुख्यमंत्री डा. निर्मल सिंह को उसी समय इसमें बड़ी राजनीतिक साजिश की बू आ गई थी, इसलिए उन्होंने तुरंत नई दिल्ली का रुख किया और केंद्रीय जल संसाधन विकास मंत्री उमा भारती से मुलाकात करके जम्मू की कृत्रिम झील को पूरा करने पर सहमति की मोहर लगवा ली। बेशक, उप-मुख्यमंत्री ने जम्मू के हितों में लगी आग पर पानी डालने का प्रयास किया लेकिन विपक्ष भाजपा के खिलाफ मिले इस अवसर को व्यर्थ नहीं जाने देना चाहता। इसलिए इसे जन आंदोलन का रूप देने के लिए प्रयासरत है। 
 
जहां तक प्रदेश में भाजपा नेतृत्व का सवाल है तो विभिन्न मुद्दों को लेकर विपक्ष के निशाने पर आए उप-मुख्यमंत्री डा. निर्मल सिंह अपनी सरकार और पार्टी भाजपा में भी एक बड़े तबके के निशाने पर हैं। भाजपा में जो लोग अभी सत्ता सुख से वंचित हैं, वे डा. निर्मल सिंह को दोषी मानकर विपक्ष के सुर में सुर मिला रहे हैं और जिन लोगों को सत्ता में भागीदार बनाया गया है, वे अपनी डफली अपना राग बजा रहे हैं। इसके अलावा भाजपा के कुछ प्रभावशाली नेता ऐसे भी हैं जो शुरू से ही डा. निर्मल सिंह को उप-मुख्यमंत्री बनाए जाने के खिलाफ रहे हैं। नि:संदेह, पार्टी में डा. निर्मल सिंह विरोधियों को एक बड़े नेता का संरक्षण प्राप्त रहा है। आज जबकि राष्ट्रीय एवं राज्य विशेषकर जम्मू के हितों से जुड़े अनेक मुद्दों को लेकर भाजपा की किरकिरी हो रही है तो विपक्ष ही नहीं, बल्कि पार्टी का निर्मल विरोधी गुट एक बार फिर सक्रिय हो गया है। 
 
आलम यह है कि यदि सरकार कोई अच्छा कदम उठाती है तो संबंधित मंत्री इसे अपनी उपलब्धि के तौर पर पेश करता है और यदि कोई विवाद पैदा होता है तो जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ डा. निर्मल सिंह हैं। कृत्रिम झील और एम्स की बात करें तो इनका संबंध क्रमश: पी.एच.ई., सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण मंत्री और स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा मंत्री से है लेकिन इस सब का ठीकरा डा. निर्मल सिंह के सिर फोड़ा जा रहा है। ऐसे में, डा. निर्मल सिंह समेत भाजपा के हितैषी नेताओं को अब विपक्ष, सरकार एवं पार्टी के भीतर बैठे विरोधियों से निपटकर राष्ट्रीय मुद्दों एवं जम्मू-कश्मीर के हितों के लिए आक्रामक रुख अपनाने की जरूरत है। 
 
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