कांग्रेसी कार्यकत्र्ताओं के ‘भीष्म पितामह चाचा सोहनपाल’

Monday, Apr 27, 2015 - 12:26 AM (IST)

(नरेश जाना): खडग़पुर (पश्चिम बंगाल) में कांग्रेस पार्टी के 90 वर्षीय ‘भीष्म पितामह’ आखिर अपना राजनीतिक वारिस नियुक्त कर रहे हैं। कांग्रेस पार्टी के अत्यंत अनुभवी और बुजुर्ग नेता ज्ञान सिंह सोहनपाल ने 25 अप्रैल को हुए नगरपालिका चुनाव में अपने भतीजे की पत्नी को चुनाव में उतारा था। यह पहला मौका है जब उनका कोई पारिवारिक सदस्य राजनीति के साथ जुड़ा है।

वयोवृद्ध ज्ञान सिंह को उनके सहयोगियों, समकक्षों और यहां तक कि राजनीतिक विरोधियों द्वारा भी बहुत सम्मानपूर्वक ‘चाचा’ कहकर संबोधित किया जाता है। मुख्य तौर पर ‘चाचा’ के कारण ही 1995 से खडग़पुर नगरपालिका में कांग्रेस का वर्चस्व लगातार चला आ रहा है।
 
ऐसे में यह कोई हैरानी की बात नहीं कि नगरपालिका चुनाव लड़ रहे 34 उम्मीदवारों सहित कांग्रेस समर्थित एक निर्दलीय उम्मीदवार ने भी ‘चाचा’ से आशीर्वाद लेकर ही अपना चुनाव अभियान शुरू किया। आपातकाल के बाद हुए चुनावों में 1977 में ‘जनता लहर’ के दौर के 5 वर्षों को छोड़कर ‘चाचा’ सोहनपाल 1969 से लगातार विधायक चले आ रहे हैं। ऐसे में यह बिल्कुल स्वाभाविक ही है कि खडग़पुर एक प्रकार से उनकी राजनीतिक जागीर बन गया है और शायद कभी किसी ने उनके साथ असहमति व्यक्त की ही नहीं।
 
‘चाचा’ को इतना अधिक आदर-सम्मान मिलने का कारण मुझे तब समझ आया जब चुनाव से कुछ समय पूर्व मैं गोल बाजार स्थित उनके कार्यालय में गया। आम तौर पर वह यहीं बैठते हैं। आधे घंटे तक विभिन्न अखबारों को पढऩे के बाद वह पार्टी के मुख्य कार्यालय में जा बैठे ताकि दूसरे नेताओं और कार्यकत्र्ताओं के साथ बातचीत कर सकें।
 
ऐन उसी समय वार्ड 27 के कांग्रेस पार्षद तपन घोष भागे-भागे आए। वह बहुत आक्रोश में थे और ऊंची आवाज में बोले, ‘‘चाचा, हमारे उम्मीदवार आशिष हेमब्रम (जोकि इस बार वार्ड 27 से चुनाव लड़ रहे थे) को आर.पी.एफ. द्वारा परेशान किया जा रहा है। उनके माता-पिता रेलवे के एक आऊट हाऊस में रहते हैं और उन्हें इसे खाली करने का आदेश दिया गया है।’’
 
ज्ञान सिंह सोहनपाल ने केवल अपना हाथ उठाया और उसे चुप होने  का संकेत देते हुए कहा : ‘‘कोई जाएगा तपन के लिए चाय या कॉफी लेने?’’ इतना कहते हुए वह तपन की ओर मुड़े और कहा : ‘‘तपन बैठो प्लीज। पहले चाय-कॉफी वगैरा पीयो फिर हम आपकी बात सुनेंगे।’’
 
इसी दौरान ‘चाचा’ सोहनपाल कांग्रेसी कार्यकत्र्ताओं से बातें करते रहे। पूरे 10 मिनट बाद वह फिर तपन की ओर मुड़े और कहा : ‘‘हां, तपन, अब बताओ क्या कह रहे थे तुम?’’
 
पास ही बैठे वार्ड नम्बर 21 के उम्मीदवार दामोदर राव बोल पड़े : ‘‘चाचा जी लाजवाब हैं। वह कभी उत्तेजित नहीं होते और दूसरों को भी ऐसा नहीं करने देते।’’
 
जब मैंने सरदार सोहनपाल से पूछा कि आप बिना उत्तेजित हुए काम कैसे चलाते हैं तो उन्होंने उत्तर दिया : ‘‘तपन बहुत उत्तेजित था और ऐसे में उसे यह भी नहीं सूझ रहा था कि कौन-सी बात करनी है और कौन-सी नहीं, इसीलिए मैंने उसे रोक दिया था।’’
 
तपन घोष की बात सुनने के बाद सोहनपाल ने अपना सैलफोन उठाया और नगरपालिका के निवर्तमान हो रहे अध्यक्ष रविशंकर पांडे को कहा, ‘‘रवि, प्लीज अभी रेलवे के डी.आर.एम. के बंगले पर जाओ और तपन व आशिष के साथ उनकी बात करवाओ।’’ शाम तक सरदार जी ने समस्या हल कर दी थी।
 
खडग़पुर नगरपालिका के 35 में से 34 वार्डों में कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार खड़े किए थे जबकि एक वार्ड में इसने एक निर्दलीय उम्मीदवार का समर्थन किया था। उल्लेखनीय है कि सभी के सभी 34 उम्मीदवारों के फ्लैक्स बोर्डों पर कांग्रेस के चुनाव चिन्ह के साथ ‘चाचा जी’ की तस्वीर छपी थी। ‘चाचा जी’ अविवाहित हैं बिल्कुल भीष्म पितामह की तरह, तभी तो उन्हें यहां इस पार्टी का ‘भीष्म पितामह’ माना जाता है।
 
कांग्रेस पार्टी के खडग़पुर नगर के अध्यक्ष अमाल दास ने कहा : ‘‘हम नहीं जानते कि जिलाध्यक्ष कौन है या पार्टी का प्रदेशाध्यक्ष कौन है, हमारे लिए तो ‘चाचा’ ही सबकुछ हैं। वह हमारी प्रत्येक समस्या का समाधान हैं।’’ उनके सुर में सुर मिलाते हुए रवि शंकर पांडे ने कहा, ‘‘चाचा ही हमारे संरक्षक हैं। हम तो अपनी पारिवारिक समस्याएं भी उनके समक्ष रखते हैं। एक नेता को किस प्रकार का धैर्य और विनम्रता अपनानी चाहिए, ‘चाचा’ उसका साकार प्रमाण हैं। हम उनसे बहुत कुछ सीखते रहते हैं।’’
 
बाहर दोपहर का सूर्य तप रहा था, तभी ‘चाचा’ ने राव को कहा, ‘‘दफ्तर में बैठे रहने का क्या तुक है, चलो बाहर चलें और चुनाव अभियान में लगें।’’ तभी राव तत्काल बोल पड़े, ‘‘नहीं, नहीं ‘चाचा जी’ इस गर्मी में आपको बाहर जाने की जरूरत नहीं, हम संभाल लेंगे सब कुछ।’’
 
इस पर चुटकी लेते हुए सोहनपाल ने राव का कंधा थपथपाया और कहा, ‘‘अच्छा तो अब आप लोगों को इस बुड्ढे की जरूरत नहीं रही?’’ 
 
राव उनकी टिप्पणी सुनकर बगलें झांकने लगे और उनके चरण स्पर्श करते हुए कहा, ‘‘नहीं, नहीं ‘चाचा जी’ ऐसी बात नहीं।’’
 
जैसे ही बाहर यह बात चर्चित हुई कि ‘चाचा जी’ चुनाव अभियान पर निकलने वाले हैं, कार्यकत्र्ताओं में जोश भर गया। वे कंधों पर पार्टी के झंडे उठाए और छत्तरियां लिए ‘चाचा जी’ के पीछे-पीछे चल दिए। अभियान दौरान अनेक लोगों ने उनके चरण स्पर्श किए और कइयों ने उनसे आङ्क्षलगन किया। जैसे-जैसे वह चलते गए जलूस खड़ा होता गया। 
 
इसी दौरान उन्होंने मुझे कहा, ‘‘बस, अब मैं आगे से विधायक नहीं बनूंगा, मुझे नई पीढ़ी के लिए रास्ता छोडऩा होगा।’’ जब मैंने उनसे पूछा कि उनका राजनीतिक वारिस कौन होगा, तो उन्होंने कहा कि इस बारे में फैसला पार्टी करेगी। जब मैंने कहा, ‘‘यहां तो आप ही ‘पार्टी’ हैं’’ तो उन्होंने तत्काल जवाब दिया, ‘‘नहीं, मुझे भी पार्टी ने ही यहां तक पहुंचाया और जनता ने मुझे आशीर्वाद तथा स्नेह प्रदान किया है।’’ 
 
‘चाचा’ के भतीजे की बहू धर्मजीत कौर सोहनपाल वार्ड 26 से चुनाव लड़ रही थीं। यह सीट पहले तृणमूल कांग्रेस के पास थी। उन्होंने मुझे बताया, ‘‘हमारा परिवार शुरू से ही कांग्रेस समर्थक है। जब ‘चाचा जी’ ने मुझे चुनाव लडऩे को कहा तो मैंने ‘तथास्तु’ कहकर उनकी आज्ञा का पालन किया। आगे भी वह ही मेरा मार्गदर्शन करेंगे।’’
 
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