‘छद्म युद्ध’ से सचेत रहे भारत

Saturday, Mar 28, 2015 - 01:38 AM (IST)

(कुलदीप सिंह काहलों): जम्मू-कश्मीर में गत 20 मार्च को एक बार फिर सशस्त्र आतंकियों ने सैन्य वर्दी पहन कर तकरीबन प्रात: 6 बजे कठुआ जिले के राजबाग थाना पर फिदायीन हमला किया, जिसमें 3 सुरक्षा कर्मियों सहित 4 लोग मारे गए। 2 आतंकियों को भी सुरक्षा बलों ने मार गिराया। 
 
अगले दिन फिर बड़े तड़के आतंकियों ने सांबा के मशोबरा सैन्य शिविर पर गोलीबारी करते हुए यूनिट में घुसपैठ करने का प्रयास किया। इस असफल प्रयास में भी 2 आतंकी सुरक्षा बलों के हाथों मारे गए। 
 
अन्तर्राष्ट्रीय सीमा सांबा से लगभग 15 किलोमीटर दूर है। सीमांत क्षेत्र बहुत ऊबड़-खाबड़ है और बरसाती नालों से भरा होने के कारण वहां पर आसानी से छिपा जा सकता है। 
 
यह कोई पहला मौका नहीं, जब आतंकियों ने सांबा क्षेत्र में थाने और सैन्य यूनिटों पर हल्ला बोला हो। उल्लेखनीय है कि 26 दिसम्बर 2013 को आतंकियों ने हीरानगर पुलिस थाने को घेर कर पुलिस कर्मियों सहित 6 व्यक्तियों की हत्या कर दी थी। एस.एच.ओ. हमले के समय मौके पर हाजिर था लेकिन वह भाग निकला। और इसके बाद आतंकी एक ट्रक में सवार होकर सांबा की ओर प्रस्थान कर गए और वहां कैवेलरी यूनिट में घुस गए। यहां मुकाबले के दौरान कर्नल बिक्रमजीत सिंह सहित 4 जवान शहीद हो गए। 
 
उस समय मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा था, ‘‘यदि सुरक्षा एजैंसियों के बीच अधिक तालमेल होता और उन्होंने तत्काल कार्रवाई की होती तो सांबा यूनिट पर फिदायीन हमले को रोका जा सकता था।’’ अब डेढ़ वर्ष बाद इस इलाके में 24 घंटों में दो बार हमला करके आतंकियों ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया है कि हमारे नेता सैनिकों की शहादत पर केवल राजनीतिक रोटियां ही सेंकना जानते हैं, देश की सुरक्षा और जन कल्याण की इन्हें कोई चिन्ता नहीं। 
 
खेद की बात है कि वर्तमान मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने पद्भार ग्रहण करते ही विधानसभा के चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से सम्पन्न होने का श्रेय प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप में पाकिस्तान और उसके द्वारा समर्थित संगठनों को दिया। सुरक्षा बलों के जिन जवानों की कुर्बानियों की बदौलत पी.डी.पी. और भाजपा की गठबंधन सरकार अस्तित्व में आई है, उनका उल्लेख करना तो दूर, उनके विशेषाधिकार छीन कर उन्हें पंगु बनाने की बातें हो रही हैं। 
 
अलगाववादी नेता मुसरत आलम को 7 मार्च को जेल से रिहा कर दिया गया और उस जैसे कुछ अन्य लोगों को रिहाई देने की चर्चा चल रही है। 
 
जम्मू-कश्मीर सरकार की जून 2014 की रिपोर्ट के अनुसार सुरक्षा बलों ने 30752 ए.के. सीरीज की राइफलें, 11431 पिस्तौल/रिवाल्वर, 1027 यूनिवर्सल मशीनगनें, 2262 ग्रेनेड लांचर, 391 स्नाइपर राइफलें, हजारों की संख्या में गोलियां, 63000 ग्रेनेड, 45000 किलोग्राम विस्फोटक सामग्री और विभिन्न शस्त्रों के मैगजीन इत्यादि बरामद किए। प्रश्न पैदा होता है कि इतने भारी शस्त्रागार आतंकियों द्वारा क्यों जमा किए जा रहे हैं?
 
एक अन्य सर्वे रिपोर्ट के अनुसार 1989 से 2012 के दौरान जम्मू-कश्मीर में 14645 सिविलियन तथा सुरक्षा बलों के 6026 जवान और अफसर मारे गए। इतना खून-खराबा होने के बावजूद हमारे शासकों का हृदय द्रवित नहीं हुआ। 
 
जम्मू-कश्मीर में शायद ही कोई दिन ऐसा गुजरता हो जब सेना को किसी न किसी स्थिति में आतंकियों से भिडऩा न पड़े। विधानसभा चुनावों दौरान नवम्बर के आखिरी सप्ताह में दो बड़ी घटनाओं पर दृष्टिपात करें तो पता चलता है कि 24 नवम्बर को कश्मीर घाटी में सेना की एक टुकड़ी ने हथियारों और विस्फोटक सामग्री का भारी भंडार बरामद करके चुनावों में आतंकी हमले के प्रयासों को विफल कर दिया था। 
 
एक अन्य घटनाक्रम में जम्मू जिले की अन्तर्राष्ट्रीय सीमा पर अर्निया सैक्टर में आधुनिक हथियारों से लैस घुसपैठियों के साथ सेना के मुकाबले में 4 आतंकी और 5 भारतीय नागरिक मारे गए, जबकि 3 जवान शहीद हो गए। इसके अलावा उड़ी (बारामूला) में एक सैन्य यूनिट पर भी चुनावों के दौरान आतंकियों ने हमला किया। चिनारकोर के कमांडर लै. जनरल सुब्रत साहा ने कहा कि नियंत्रण रेखा पर घुसपैठ रोकने के प्रयास लगातार जारी हैं और चालू वर्ष में अब तक 129 आतंकियों को गिरफ्तार किया गया है, जबकि गत वर्ष इसी अवधि में यह संख्या 89 थी। व्यथा की बात क्या हो सकती है कि शहादत तो भारतीय सैनिक देते हैं लेकिन गुणगान पाकिस्तान का होता है? 
 
उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट करके कहा है कि ‘‘कठुआ-सांबा कांड को अंजाम देने वाले सीमा पार से आए थे।’’ यह बात ठीक हो सकती है लेकिन लश्कर या किसी जेहादी ग्रुप से संबद्ध आतंकी इतनी भारी मात्रा में गोला-बारूद और रसद साथ लेकर कैसे आ सकते हैं? यह जरूरी नहीं कि आतंकवादी हमले के दिन ही भारतीय सीमा में प्रवेश करें। इनके तार देश भर में फैले कट्टरपंथियों से जुड़े हो सकते हैं, इस बात का एहसास क्यों नहीं हो रहा? ऐसे में देशवासियों को अवश्य ही सचेत रहना होगा। 
 
एक बेहद चिन्ताजनक विषय यह है कि 23 मार्च को पाकिस्तान दिवस के मौके पर हुॢरयत नेता ये कहते देखे गए कि वे हिन्दुस्तानी नहीं हैं। देश से सभी सुविधाएं हासिल करने वाले और यहीं का अन्न-जल ग्रहण करने वाले तो बहुत कुछ कहते हैं, लेकिन खेद की बात है कि केन्द्र सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले मंत्री जनरल वी.के. सिंह यह सब कुछ सुनते रहे। उन्होंने कोई उत्तर क्यों नहीं दिया? 
 
आतंकवाद का खात्मा करने के लिए कट्टरपंथियों की मानसिकता को बदलना होगा। ‘अफस्पा’ को रद्द करने  की वकालत करने वालों को अपनी राय की पुन: समीक्षा करनी चाहिए। पाकिस्तान की  स्थिति  बद  से  बदतर  होती  जा  रही  है।  सेना और आई. एस.आई. पर वहां सिविलियन कंट्रोल बिल्कुल नहीं रहा। हम मुफ्ती सईद की इस बात से सहमत हैं कि भारत-पाक के बीच वार्तालाप जारी रहनी चाहिए। वाजपेयी, मनमोहन सिंह और अब मोदी भी पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने के पक्षधर  रहे हैं लेकिन जेहादी ऐसा नहीं चाहते। 
 
आतंकवाद के खिलाफ युद्ध लडऩे की केन्द्र और प्रदेश सरकारों की संयुक्त जिम्मेदारी  होती है।  जरूरत  इस  बात  की  है  कि  आतंकवाद विरोधी कानून बना कर लागू किया जाए और देशवासियों को सुरक्षा प्रदान करना सरकार का अनिवार्य कत्र्तव्य हो। 
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