क्या काले धन पर ‘रोक’ लगा सकेगा नया विधेयक

Wednesday, Mar 25, 2015 - 05:15 AM (IST)

(ब.स.) अघोषित विदेशी आय व सम्पत्ति (नया टैक्स) विधेयक को केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दे दी है। इस विधेयक को आम भाषा में ‘काला धन विधेयक’ के रूप में जाना जाता है। अब इसे संसद में प्रस्तुत किया जाना है। कर प्रवंचित धन के विरुद्ध सरकार की दोधारी नीति का एक अंग है यह विधेयक। दूसरा अंग-जैसा कि वित्त मंत्री अरुण जेतली ने केन्द्रीय बजट प्रस्तुत करते हुए घोषणा की थी-बेनामी सौदे (प्रतिबंधन) विधेयक का एक सुधरा हुआ संस्करण होगा। जहां प्रथम कानून विदेशों में छिपाए हुए काले धन से निपटेगा, वहीं दूसरा कानून देश के अंदर छिपाए हुए काले धन पर अंकुश लगाने का प्रयास करेगा। 

सरकार का इरादा प्रशंसनीय है। काले धन का खुरा-खोज तलाशने का मुद्दा लंबे समय से एक प्रचंड राजनीतिक गतिविधि बना हुआ है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनावी अभियान के दौरान भी इस मुद्दे पर फोकस बना लिया था। उनके मंत्रिमंडल के शुरूआती फैसलों में से एक था इस मामले की तह तक जाने के लिए एक समिति गठित करना। फिर भी काले धन की समस्या से निपटने के लिए जो तंत्र प्रस्तावित किया जा रहा है, उससे जुड़ी हुई कई महत्वपूर्ण समस्याएं हैं। 

सबसे प्रथम तो यह है कि मंत्रिमंडल ने विधेयक का जो संस्करण मंजूर किया है, इसमें विदेशों में काला धन छुपाने वाले व्यक्तियों को घोषणा करने के लिए एक माह की अवधि की गुंजाइश देने का सुझाव है, और इस प्रकार के खुलासे उन्हें टैक्स और जुर्माना अदा करने के बाद अभियोजन से बच निकलने का रास्ता दे देंगे। 

सरकार ने कहा है कि गुनाहगारों के लिए बच निकलने का यह मौका न तो किसी प्रकार की आम माफी है और न ही इस योजना के विरुद्ध कोई कवच। फिर भी इस योजना को चाहे कोई भी नाम दे दिया जाए, इसका कर प्रवंचकों को प्रेरित करने के मुद्दे पर नकारात्मक प्रभाव पडऩे की संभावना है। इस प्रकार की योजना एक नैतिक खतरे का रास्ता खोल सकती है, इसलिए इससे बचना ही चाहिए। फिर भी सबसे चिन्ता का विषय दंड के वे आततायी प्रावधान हैं, जो विधेयक अन्तर्गत प्रस्तावित हैं। आय या सम्पति छिपाने वालों को 10 वर्ष तक के सश्रम कारावास की सजा हो सकती है। न ही कानून के अन्तर्गत उन्हें टैक्स अधिकारियों के साथ अपने लफड़े को हल करने के लिए निपटान आयोग की शरण में जाने की अनुमति होगी। प्रवर्तन एजैंसियों को जांच प्रक्रिया के दौरान ही सम्पत्तियां कुर्क करने का अधिकार होगा। यहां तक कि ‘पर्याप्त’ सूचना देते हुए रिटर्न फाइल करने की प्रक्रिया भी पूरी तरह मनमानी भरी और टैक्स अधिकारी के रहमो-करम पर निर्भर हो सकती है तथा इसका नतीजा 10 वर्ष तक की सश्रम कैद के रूप में भुगतना पड़ सकता है। 

ये सचमुच बहुत कड़े प्रावधान हैं और यह दावे से नहीं कहा जा सकता कि इन पर अच्छी तरह चिन्तन-मनन हुआ है। इन प्रावधानों के अन्तर्गत एक-एक कर अधिकारी की क्षमता और ईमानदारी पर बहुत अधिक उम्मीदें लगाई गई हैं। सबसे बदतर बात यह  है कि काले धन का मुद्दा राजनीतिक रूप में इतना संवेदनशील है कि कोई दिलेर राजनीतिज्ञ ही प्रस्तावित कानून के अन्दर छिपी इन खामियों की ओर ध्यान दिला सकता है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि बेशक काला धन विधेयक सांसदों द्वारा अध्ययन किए जाने हेतु एक समिति के पास जा रहा है, फिर भी ऐसी उम्मीद बहुत कम है कि यह समिति इन प्रावधानों में से कुछ एक को तर्कसंगत रूप प्रदान करने के योग्य होगी। 

दुर्भाग्यवश न तो यह कानून और न ही देश पर लक्षित कानून काले धन के मुद्दे के संबंध में वास्तविक समस्याओं से दो-चार होते हैं। काले धन पर अंकुश लगाने की सरकार की रणनीति इसके सृजन की समस्या को संबोधित नहीं करती और न ही अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं के आसपास काले धन की गतिविधियों पर अंकुश लगाने की कोई रणनीतियां इसके पास हैं। क्या केवल दंड और धमकियां ही सचमुच में प्रभावी होंगी? 

आपको यह याद होगा कि टैक्स योग्य आय (जिसमें विदेशी टैक्स योग्य आय भी शामिल है) पहले से ही दंडनीय अपराध है और यदि टैक्स की राशि 25000 रुपए से अधिक है तो इसकी प्रवंचना के लिए 7 वर्षतक की सजा हो सकती है। फिर भी वर्तमान कानून के प्रावधानों के अन्तर्गत 7 वर्ष कारावास की सजा दिए जाने के उदाहरण बहुत ही कम हैं। 

कालेधन के विरुद्ध सरकार की रणनीति के मुख्य प्रहार को एक बार फिर से फोकस करने की जरूरत है क्योंकि प्रस्तावित कानून केवल टैक्स अधिकारियों को ही शक्तिशाली बनने की एक नई चाबी उपलब्ध करवाता है। इसकी बजाय बढिय़ा बात तो यह होगी कि उन क्षेत्रों में नियमन और पारदर्शिता लाने पर फोकस किया जाए, जहां काले धन का सृजन होता है-जैसा कि रियल एस्टेट। इसके अलावा इसे ‘मारीशस रूट’ जैसे तंत्र बंद करने होंगे क्योंकि ये अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार काले धन की यात्रा पर पर्दापोशी करने की भूमिका अदा करते हैं। 

 

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