स्वस्थ और खुशहाल रहने का नुस्खा-योग

Saturday, Mar 21, 2015 - 01:06 AM (IST)

(पूरन चंद सरीन): इन दिनों देशभर में योग की चर्चा बहुत हो रही है। स्वामी रामदेव द्वारा शुरू कि ए गए योग अभियान के परिणाम भी सामने आ रहे हैं और लोग योग के गुण और महत्व को समझने में रुचि दिखाने लगे हैं।

पहले यह जानना जरूरी है कि आखिर यह योग है क्या? योग का सीदा-साधा अर्थ है जोड़ या जमा या 2 अथवा 2 से अधिक लोगों का मिलन। अब यह मिलन आत्मा का परमात्मा से भी हो सकता है और स्त्री-पुरुष का भी हो सकता है, मनुष्य का प्रकृति से और जीव-जन्तुओं से भी हो सकता है।
 
आत्मा और परमात्मा विशुद्ध अनुभूति, आस्था और विश्वास पर आधारित हैं जबकि सृष्टि का संचालन स्त्री-पुरुष द्वारा होता है और इसमें अन्य जीव-जन्तु, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे सब आते हैं।
 
हमारा शरीर पंचभूत से बना है और जीवन यात्रा के बाद पंचभूत में ही मिल जाता है। इसे ही जीवात्मा का परमात्मा से मिलन कह सकते हैं। अब जो पंचभूत है उनमें पृथ्वी जिससे हमें गंध का आभास होता है, जल जो हमें स्वाद की अनुभूति कराता है, अग्नि से हमें सौंदर्य प्राप्त होता है, वायु से स्पर्श का एहसास होता है और आकाश हमें ध्वनि से समृद्ध करता है।
 
अब यह जो योग है वह मानव सहित पूरी प्रकृति के साथ तालमेल बिठाने का काम करता है और मनुष्य व कुदरत को जोड़ता है। पंचतत्व की भांति योग भी 5 प्रकार का है; ज्ञान योग, कर्म योग, लय योग, हठ योग और अष्टांग योग।
 
जीवन का आधार
योग हमारे मन, शरीर, विचार, अनुभूति और क्रियाकलापों को नियंत्रित करता है और एक प्रकार से हमारे जीवन का आधार है। इसे सरल शब्दों में कहें तो वह यह कि प्रत्येक व्यक्ति जीवन में स्वस्थ और सुखी रहना चाहता है और योग की इसमें प्रमुख भूमिका है। इसलिए योग और कुछ नहीं, केवल सेहतमंद और खुशहाल रहने का रास्ता दिखाता है। स्वस्थ रहने के लिए शरीर का विकारों और बीमारियों से मुक्त रहना जरूरी है। योग में इस प्रकार की क्रियाएं हैं, आसन हैं, विधियां हैं जिनसे हम स्वस्थ रह सकते हैं।
 
शरीर में जो भी विकार हैं उनका निदान यौगिक क्रियाओं द्वारा किया जा सकता है। इसीलिए मनुष्य के लिए पंच क्रियाएं आवश्यक हो जाती हैं। ये पंच क्रियाएं बहुत ही साधारण हैं लेकिन इनका असर बहुत व्यापक है। यह है तेल की मालिश, नेत्रों की सफाई, शरीर के अंदर मौजूद हो गए विषाक्त तत्वों को बाहर निकालने के लिए जल और सूत्र नेति तथा नवाधि क्रिया जो हमें स्वस्थ और सुखी रखती है।
 
योग में महर्षि पतंजलि का महत्व सर्वाधिक है। उन्होंने यौगिक क्रियाओं को इतना सुगम कर दिया कि व्यक्ति के स्वस्थ रहने के लिए कुछेक सूक्ष्म क्रियाएं करना ही पर्याप्त है। पतंजलि ने यौगिक क्रियाओं को जन-जन तक पहुंचाने के लिए अष्टांग का सिद्धांत प्रतिपादित किया। यह भी बहुत सरल है। 
 
सबसे पहले पांच यम का स्थान  है,  इसमें  अहिंसा, सत्य, आस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह आते हैं और ये सब वृत्तियां मनुष्य को जीवन जीने योग्य बनाती हैं। इसके बाद उन्होंने 5 नियम बनाए। इसमें मन, वचन, कर्म की शुद्धता है, संतोष की भावना है, तापस यानी एकाग्रचित होना है, स्वाध्याय है जिसमें पढ़ाई-लिखाई आती है और फिर ईश्वर का चिन्तन है।
 
अब यह जो हमारा शरीर है उसे क्रियाशील बनाए रखने के लिए कुछ आसन बता दिए ताकि हम शारीरिक रूप से स्वस्थ, मानसिक रूप से प्रफुल्ल और बीमारियों से मुक्त रहने के लिए अपनी पाचन क्रिया को ठीक रख सकें।
 
श्वास नियंत्रण
यह तब और भी आसान हो जाता है जब केवल प्राणायाम के जरिए हम अपने श्वास पर नियंत्रण करना सीख लेते हैं, सांस के रूप में वायु शरीर में लेने और बाहर निकालने की क्रियाओं से ही यह हो जाता है। यह जो सांस है वही अगर प्राणायाम से नियंत्रित करना आ जाए तो उतना ही स्वस्थ रहने के लिए काफी है।
 
उसके बाद धारणा यानी एक ही वस्तु पर हम अपने को केन्द्रित करना सीख लें, उसके बाद कुछ ध्यान करना अर्थात एकाग्रचित होना आ जाए तो हम समाधि यानी मन, आत्मा को आध्यात्मिक बनाने की स्थिति में आ जाते हैं।
 
कुछ समय पूर्व लगभग 250 यौगिक क्रियाओं अर्थात योग तकनीक पर फिल्में बनाने के दौरान यह बात समझ में आई कि हमारे यहां ऐसे-ऐसे आसन हैं जिनसे शरीर के किसी भी विकार या बीमारी को दूर किया जा सकता है।
 
ये आसन एक प्रकार से औषधि का कार्य करते हैं जो और कुछ नहीं शरीर और मन को स्वस्थ रखने की प्रक्रियाएं हैं। हमारे खान-पान से, भोजन ठीक से न पचने से और विपरीत आहार का सेवन करने से शरीर में अनेक विकार आ जाते हैं। ये विकार दूर करने के लिए कुछेक आसन हैं जिन्हें किसी योग गुरु के मार्गदर्शन में किया जाए तो शरीर स्वस्थ रह सकता है और जब शरीर स्वस्थ है तो काम में भी मन लगता है जिसके परिणामस्वरूप हम सुखी और खुशहाल रहते हैं।
 
हमारे यहां अनेक ग्रंथ हैं जिनमें सभी यौगिक क्रियाओं का वर्णन श्लोकों के जरिए दिया गया है। इन श्लोकों  में उन आसनों को करने की पूरी विधि दी गई है और साथ ही यह भी बताया गया है कि कौन-सी क्रिया करने से शरीर का कौन-सा रोग दूर हो सकता है। इन रोगों में साधारण से लेकर गंभीर और जटिल रोग तक आते हैं।
 
योग से एक सबसे बड़ा लाभ यह है कि शरीर  इतना सुडौल और  लचीला  हो  जाता  है  कि विपरीत परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम हो जाता है।  आज तो योग सिखाने के लिए अनेक गुरुओं और विशेषज्ञों ने बाकायदा इसे व्यापारिक स्वरूप दे दिया है। यौगिक क्रियाएं सीखने के लिए गुरु या टीचर की जरूरत उसी प्रकार है जैसे कि पढ़ाई-लिखाई के लिए।
 
योग : भारत की देन
योग सम्पूर्णतया भारत की देन है। अनेक पश्चिमी देशों ने इसे अपनी बपौती बनाने और इसका कापीराइट लेने के प्रयत्न भी किए हैं लेकिन वे उसमें सफल नहीं हो पाए। हालांकि योग आज विश्वभर में प्रचलित है और इसे सीखकर शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रह सकने की बात सभी के मन में है लेकिन इसका अस्तित्व भारत में रचे गए ग्रंथों से ही प्रकट हुआ है। इन ग्रंथों में शिव संहिता, घेरंड संहिता, गोरक्ष संहिता, पतंजलि योग सूत्र, हठप्रदीपिका, हठ रत्नावलि, सत्कर्मसंग्रह, बहिरंगयोग, योगासन, तंत्रक्रिया और योग विद्या, योग दीपिका जैसी रचनाएं प्रमुख हैं।
 
योग भारतीय दर्शन की एक प्रणाली है तथा मानसिक, शारीरिक और आत्मिक शुद्धिकरण की प्रक्रिया है। आपने नृत्य करने वाले कलाकारों, अभिनेताओं से लेकर क्रिकेटरों और अन्य खिलाडिय़ों को अलग-अलग मुद्राओं में देखा होगा। ये सब क्रियाएं योग मेंं बताई गई हैं। फिल्मों में तो इनका व्यापक प्रभाव है। उदाहरण के लिए हिन्दी फिल्म ‘रब ने बना दी जोड़ी’ में शाहरुख खान को जब अनुष्का शर्मा एक गाने के जरिए नाच की मुद्रा बताती है तो वे भी यौगिक क्रियाएं ही हैं।
 
एक बात और, योग हमारे दाम्पत्य जीवन में सैक्स क्रियाओं को आनंदमयी बनाने का भी बेजोड़ नुस्खा है। आचार्य रजनीश का इसी पर आधारित ‘सम्भोग से समाधि’ तक का सिद्धांत विदेशों में बहुत ही ज्यादा आश्चर्य से देखा और समझा गया जबकि सम्भोग के दौरान जो यौगिक क्रियाओं द्वारा आनन्द की प्राप्ति होती है वही समाधि अर्थात परमानंद है अर्थात सैक्स के दौरान पराकाष्ठा पर पहुंचने की स्थिति आने पर वीर्य स्खलन से होने वाली संतुष्टि। तो जब योग हमें इतना सब कुछ दे सकता है तो हम कुछ सामान्य क्रियाओं को सीखकर अपनी जिंदगी को सुखी रखने में क्यों संकोच करें?
 
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