‘अच्छी लड़की बनाम बुरी लड़की’ की पहचान व परिभाषा क्या है
punjabkesari.in Friday, Mar 20, 2015 - 12:29 AM (IST)

(क्षमा शर्मा): धर्मों, लोक विश्वास और परिवार की मर्यादा के नाम पर अच्छी लड़की की परिभाषा क्या है। लड़कियों को घरों में कौन-से पाठ पढ़ाए जाते हैं। स्त्रियों के लिए लिखी जाने वाली कत्र्तव्य शिक्षा की पुस्तकों में उसे किस तरह आदर्श लड़की या स्त्री बनने की सलाह दी जाती है। ये किताबें रिकार्डतोड़ बिकती भी हैं। इनमें बताया जाता है कि सुशील स्त्री को चाहिए कि वह धीरे बोले, धीरे चले, ठहाका लगाना तो दूर, हंसे नहीं, मुस्कुराए भर, नौकरी भी करे तो ऐसी कि शाम ढले घर लौट आए, जिससे कि परिवार के लोगों की सेवा कर सके और बच्चों को होम वर्क करवा सके। परिवार के हर सदस्य की जरूरत का ध्यान रखे। सादगी से रहे। फैशन वाले कपड़े कतई न पहने। लड़कों से मिलना-जुलना तो दूर, उनकी तरफ देखे तक नहीं।
आते-जाते सिर झुकाकर चले। खाना अच्छा बनाए। जब सब खा चुकें तो बचे-खुचे से काम चलाए। माता-पिता जिस खूंटे से बांध दें, वहां सिर झुकाकर चली जाए। कोई सवाल-जवाब न करे क्योंकि अच्छी लड़कियां सवाल-जवाब नहीं करती हैं।
घर की पाठशाला में लड़कियों को यही पाठ पढ़ाए जाते रहे हैं। अच्छी लड़की बनने की फेहरिस्त घर वालों से लेकर पड़ोसी, पंडित और साधु-संत सबके पास होती है। हर कोई लड़की को अपनी बनाई परिपाटी पर चलने की सलाह देता है। लड़कों को यह सलाह नहीं दी जाती क्योंकि माना तो यह जाता है कि लड़की को जरा-सी आजादी दी और वह बिगड़ी। अच्छी लड़की बनने पर और उस तुला पर खरा उतरने संबंधी बंधनों पर जोर इतना ज्यादा है कि वह सदियों से लड़कियों की पीठ पर किसी बैताल की तरह टंगा है। वे उसे चाहे जितना उतरना चाहें उसकी पकड़ कभी कमजोर नहीं हुई है।
लेकिन आज का दौर ऐसा है जहां लड़कियां उनके बारे में बनाई हर तरह की धारणा और मान्यता से सवाल पूछ रही हैं। वे हर पारम्परिक छवि से मुक्त होना चाहती हैं। वे अपने लिए नए रास्तों की तलाश करना चाहती हैं। उन्हें किसी और के बनाए रास्ते पर चलने से परहेज है।
बेंगलूर के आर्ट कालेज के 5 छात्रों फुरकान जावेद, रोशन शकील, स्पर्श सक्सेना, जयवंत प्रधान और स्तुति सक्सेना ने पुराने अच्छी लड़की के पैरोकारों को जवाब देने के लिए बुरी लड़की बनाई है। ऊपर जिन छात्रों के नाम लिखे हैं, वे बेंगलूर के सृष्टि स्कूल आफ आर्ट, डिजाइन एंड टैक्नोलॉजी में विजुअल कल्चर एंड द वर्नाकुलर पढ़ रहे हैं। यहां इन्हें एक एसाइनमैंट दिया गया था जिसके 3 विषय थे-इललीगल थिंग, कॉमन रबिश और बैड गर्ल। काफी सोच-विचार के बाद इन्होंने बैड गर्ल विषय चुना। यह विषय इन्हें आकर्षक भी बहुत लगा था क्योंकि अब तक तो सब अच्छी लड़की की छवि का निर्माण करते आए हैं तो क्यों न एक बार बुरी लड़की को भी बनाकर और चर्चा में लाकर देखा जाए।
बुरी लड़की की इनकी बनाई पेंटिंग्स कालेज में तो पसंद की ही गईं, जिस तरह से ये तस्वीरें सोशल साइट्स पर पसंद की गईं, उनकी लगातार चर्चा हो रही है, उससे ये बच्चे भी हैरान रह गए हैं। इनका कहना है कि आखिर है तो यह कालेज का प्रोजैक्ट ही। यह इतना पसंद किया जाएगा, इसका अंदाजा इन्हें भी नहीं था। अब हालत यह है कि इनके फोन लगातार बज रहे हैं। इंटरव्यू लिए जा रहे हैं। इससे इनके अनुसार पढ़ाई में भी मुश्किलें पैदा हो रही हैं।
इन छात्रों का कहना है कि हमारे समाज में अगर लड़का कोई ऐसी बातें करता है तो उससे कोई कुछ नहीं कहता। लड़की जैसे ही चित्रों में दिखाई बातों में से कोई एक भी करती है तो उसे बुरा कहा जाने लगता है। इसीलिए बुरी लड़की बनाने का ख्याल आया। बुरी लड़की की छवि, जिसकी परिभाषाएं पितृसत्ता ने तय की हैं, इसी में गैर बराबरी और शोषण भी छिपा है। अभी इन छात्रों को अपने इस प्रोजैक्ट पर नम्बर नहीं मिले हैं। मगर लोगों की परीक्षा में तो पहले ही इन्हें सौ में से सौ नम्बर मिल चुके हैं।
आखिर बुरी लड़की कौन सी है, कैसी है। पोस्टरों में जीवित साड़ी पहने यह लड़की खूब खाती है या बहुत कम खाती है। सजती-संवरती है। सिगरेट और शराब भी पीती है। जिसके स्तन हैं मगर वह उन्हें छिपाना नहीं चाहती। गोवा में पार्टी करती है। चोटी की जगह खुले बाल रखती है। बाहर भी खुले बालों से जाती है, उन्हें बांधती नहीं। लड़कों से मिलती है। प्यार करती है। बाइक चलाती है। और तो और पोर्न देखने से भी उसे परहेज नहीं है। फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम आदि पर इन छवियों ने धूम मचा रखी है। अच्छी लड़की की छवि का यह एक तरह से मजाक है। अस्वीकार है। आज की लड़की से पूछिए तो वह इस छवि पर कतई खरा उतरना नहीं चाहेगी। बल्किपुरानी लड़की की छवि को आश्चर्य और नफरत से देखेगी।
लेकिन विवाह के बाजार में अभी तक पुराने जमाने की अच्छी लड़की की छवि वाली बहू चाहिए। इसीलिए नगरों में रहने वाली लड़कियां बड़ी संख्या में इन दिनों विवाह से भी परहेज कर रही हैं। वे अपनी आजादी को किसी भी कीमत पर नहीं खोना चाहतीं। बुरी लड़की की छवि इसी आजाद लड़की को आवाज देने की कोशिश भी है। आखिर सदियों से पुरुष समाज आजाद लड़की से डरता आया है।
कहने का अर्थ यह है कि अगर पुराने जमाने में आदर्श स्त्री की छवि ने लड़कियों को जीने नहीं दिया तो आज जिन छवियों में उसे कैद करने की कोशिश की जा रही है, वह भी ठीक नहीं है। एक लड़की अपने मन से जैसे जीना चाहती है, उसे जीने का अधिकार होना चाहिए।