एक ‘पाकिस्तानी हिन्दू’ की व्यथा-कथा

Tuesday, Mar 03, 2015 - 04:00 AM (IST)

(आनंद ‘लहर’) रामदयाल उस समय नवयुवक था अपितु यह कहा जाए कि किशोरावस्था को छोड़कर यौवन की ओर जा रहा था जब देश का विभाजन हो गया तथा लोग हिन्दू-मुसलमान बन गए और अपने इंसान होने से दूर चले गए। रामदयाल के घरवालों ने हिन्दुस्तान जाने का मन बना लिया परन्तु उन्हें अपने सिंधु से अथाह प्यार था। रामदयाल चूंकि सिंधी था इसलिए वहीं पर रह गया। देश के विभाजन ने उसे सिंधी और उसके घरवालों को अकस्मात् हिन्दुस्तानी बना दिया और उसके मुसलमान पड़ोसियों को पाकिस्तानी।

फिर एक दिन रामदयाल अपने मित्र गुल मोहम्मद के घर गया हुआ था। उसे ज्ञात हुआ कि उसके मां-बाप की हत्या हो गई है। बस इन कुछ ही शब्दों ने कि, ‘‘उनकी भी हत्या हो गई है’’ एक संस्कृति समाप्त कर दी। संबंधों की शताब्दियों को पलों ने निगल लिया। गुल मोहम्मद के मां-बाप ने ग्लानि अनुभव की तथा उन्होंने रामदयाल को सहारा दिया। फिर रामदयाल ने सोचा कि यदि वह जीवित रहे अथवा मर जाए, उसको कोई फर्क अब नहीं पड़ सकता। उसका दूसरा भाई प्रभुदयाल भी वहीं रहा।

एक दिन समाचार आया कि नेहरू-लियाकत समझौता हो गया है। अल्पसंख्यक सुरक्षित हैं। रामदयाल ने सोचा यह कैसा समय आ गया है कि उसे हिन्दू होकर यहां रहना पड़ेगा और फिर दुनिया में उसे पाकिस्तानी हिन्दू कहा जाएगा। उसकी सभ्यता और संस्कृति की उसके सामने हत्या हुई। उसके सामने भावनाएं नीलाम  हुईं।

आज वह व्यक्ति न रहकर एक हिन्दू हो गया है और वह भी पाकिस्तानी हिन्दू। अल्पसंख्यकों का एक भाग है। वह इस धरती के वासियों में से एक है, नहीं है तो सिंधु की सभ्यता का एक भाग नहीं है। सिंध दरिया पर इसका कोई अधिकार नहीं है। पाकिस्तान एक मुस्लिम देश बन गया है। कुरआन के अनुसार नहीं अपितु वहां के शासकों के अनुसार, परन्तु फिर भी लोग रामदयाल के बड़े भाई प्रभुदयाल से ज्योतिष और  ग्रहों की चाल के विषय में पूछते रहते। दीवाली, लोहड़ी और  बैसाखी की चर्चा उससे सुनते रहते। रामदयाल का प्यार गोपी नाम की लड़की से था जो अब हिन्दुस्तान चली गई थी। रामदयाल को ज्ञात हुआ कि वह मथुरा में कहीं रहती है और उसने अभी तक शादी नहीं की है।

लोग रामदयाल और दूसरे हिन्दुओं को दीवाली मनाने का पूरा अवसर देते। उनको घरों में दीप जलाने देते परन्तु सब कुछ एक भय से ग्रस्त होता जैसे दीवाली कोई खुशी न होकर विवशता हो। रामदयाल को यह ङ्क्षचता भी रहती कि यदि वह मर गया तो उसकी अस्थियां गंगा के तट हरि की पौड़ी कैसे जाएंगी?

रामदयाल का भाई प्रभुदयाल नौजवान था। गौरां नाम की लड़की से उसे प्यार हो गया था। परन्तु गौरां मुसलमान थी तथा वह हिन्दू। यह प्यार एक अपराध था, पाप था और उसका दंड भी वे लोग जानते थे। सारा गांव जला दिया जाता। उसने सोचा, ‘‘कैसा दुर्भाग्य है कि पाकिस्तानी हिन्दू प्यार भी नहीं कर सकता।’’

अब उनका गांव, गांव न रहकर शहर का एक मोहल्ला बन गया था। मुसलमान जब रोजा रखते तो हिन्दू उनकी सरघी का प्रबंध करते जबकि करवाचौथ के दिन जब हिन्दू महिलाएं छुप कर व्रत रखतीं तो उस गांव की मुसलमान महिलाएं चोरी-छुपे सरघी बनातीं और फिर यदि पलायनकर्त्ताओं तथा स्थानीय निवासियों में, शियों अथवा सुन्नियों में कोई झगड़ा होता तो किसी हिन्दू को ही मध्यस्थ बनाया जाता। परन्तु इतना होने के पश्चात भी रामदयाल के भीतर एक भय समाया हुआ था, एक भ्रम मन में  बैठ गया था। वह किसी बात को खुलकर नहीं कह सकता था। शहर जाता तो उसे अधिकतर हिन्दुस्तान के विरुद्ध बातें करनी पड़तीं, अधिक पाकिस्तान के पक्ष में बोलना पड़ता। जिसके  बुजुर्ग सहस्रों वर्षों से वहां रह रहे थे तथा जिसने 1947 की पीड़ा भी सही थी वह अब अल्पसंख्यकों में आ गया था। कभी-कभी लीडर वहां आते और कहते, ‘‘यहां अल्पसंख्यक सुरक्षित हैं।’’ परन्तु वह सोचता कि क्या अल्पसंख्यक असुरक्षित हो सकते हैं। इंसान को अल्पसंख्यक का नाम कौन देता है?

रामदयाल का चाचा कैलाश नाथ देहली आ गया था। वह अकेला रहता था। उसका कोई आगे-पीछे नहीं था। कौन कहां मारा गया, उसे यह भी ज्ञात नहीं था। कौन कहां ठहरा वह इस बात को भी भूल चुका था। कैलाश नाथ ने देहली में एक सिंधु घाट  बनाया था। यह श्मशानघाट के साथ था। जो भी कोई वहां मरता कैलाश नाथ उसकी सेवा करने चला जाता। परन्तु इन रिश्तेदारों का आपस में कोई रिश्ता न था, कोई संबंध न था। यहां तक कि उन्हें ज्ञात भी न था कि कौन जीवित है और कौन कहां मृत्यु को प्राप्त हो गया है।

समय और आगे  बढ़ा, रामदयाल को एक दिन हिन्दुस्तान आने का वीजा मिला। मथुरा और वृंदावन। वह मथुरा पहुंचा, उसने भगवान कृष्ण की जन्म भूमि को नमस्कार किया और फिर आगे बढ़ा। कई दिन तक घूमता रहा।  एक दिन एक महिला पर दृष्टि पड़ी। सुन्दर थी परन्तु कुरूप लगना चाहती थी। वह दुखी थी  परन्तु प्रसन्न दिखना चाहती थी। हथेलियां फट चुकी थीं बर्तन साफ करते-करते। हाथ खुरदरे हो गए थे। पुराने और मैले कपड़े पहने हुए थी। गोपी अपने भाई के घर रहती थी। एक  बोझ थी भाई के घर। नौकरानी की तरह काम करती थी। उसे शादी के कई अवसर मिले परन्तु उसने शादी नहीं की। 

अंतत: एक दिन गोपी ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही हूं।’’ ‘‘मैं आ गया हूं...मैं आ गया हूं।’’ वे एक-दूसरे के गले मिले। सबने देखा परन्तु चुप रहे। सब इस प्यार का परिणाम जानते थे। परन्तु यह कड़ी आगे न चल सकी। एक दिन गोपी के पिता ने पूछा, ‘‘कब तक रहोगे?’’ रामदयाल चुप रहा। न तो गोपी उसके साथ जा सकती है और न रामदयाल यहां रह सकता है। एक दिन गोपी के भाई ने पूछा पाकिस्तान में हिन्दू हैं? रामदयाल को झटका लगा। एक ङ्क्षचताजनक परिस्थिति पैदा हो गई। पाकिस्तानी हिन्दू...पाकिस्तानी हिन्दू। शोर मच गया सब उसे देखने के लिए आए।

किसी ने बताया कि कैलाश नाथ मर गया है और उसे जलाने वाला कोई नहीं है। ‘‘मैं अग्रि दूंगा चाचा को, मैं उनके वंश से हूं, मेरा दिया हुआ  पानी उन्हें मिलेगा। मैं उनके दर्शन करूंगा।’’ यह कहते हुए रामदयाल आगे की ओर जाने लगा। वह भागा, ज्यों ही एक बस पकडऩे लगा और जोर-जोर से कहने लगा, ‘‘मुझे देहली जाना है, देहली जाना है।’’ एक पुलिस वाले ने उसे पकड़ लिया और कहा कि तुम्हारे पास देहली का वीजा नहीं है।

रामदयाल को झटका लगा। वह रात भर सड़क पर सोया रहा। उसके कपड़े गंदे हो गए थे। दूसरे दिन प्रात: सिपाही ने कहा कि उसका मथुरा का वीजा भी समाप्त हो गया है। वह फिर अपना प्यार अधूरा छोड़कर चला गया। उस दिन गोपी खूब नाचती रही, फिर बेहोश हो गई
और फिर कहते हैं मर गई। और वह अब दीवारों पर कोयले से लिखता है पाकिस्तानी हिन्दू पाकिस्तान में मुसलमान लड़की से प्यार नहीं कर सकता क्योंकि वह पाकिस्तानी तो अवश्य है परन्तु हिन्दू है, हिन्दुस्तान में किसी हिन्दू लड़की से प्यार नहीं कर सकता  क्योंकि वह हिन्दू अवश्य है परन्तु पाकिस्तानी है।

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