देश में दर-दर ‘भटक’ रहे हैं कैंसर पीड़ित

Monday, Mar 02, 2015 - 01:33 AM (IST)

(राज पुरी) सरकारें, नेता और वायदे बदलते रहे लेकिन हालात नहीं बदले। भारत में आज भी गरीबी, मजबूरी, भुखमरी और लाचारी में कैंसर रोग से जूझ रहे पीड़ितों की दर्द भरी पुकार शायद हमारे देश के राजनीतिज्ञों व प्रशासनिक अधिकारियों के कानों तक नहीं पहुंच पाती। निराशाजनक स्थिति में जी रहे कैंसर पीड़ित सरकार की तरफ आशा भरी नजरों से देख रहे हैं लेकिन उन्हें क्या मालूम जिस स्वस्थ भारत का सपना वह देख रहे हैं वह अभी उनसे कोसों दूर है।

पिछले दिनों हमारे देश के प्रधानमंत्री ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के 42वें दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि विश्व के चिकित्सा खोज जगत में भारत अभी भी कई अग्रणी विकसित देशों की तुलना में पिछड़ा हुआ है।

जैसे-जैसे हमारे देश के कृषि क्षेत्र में कीटनाशक दवाओं का छिड़काव व रासायनिक खादों का इस्तेमाल बढ़ता गया परिणामस्वरूप हमारे खाद्य पदार्थ दूषित होते गए और कैंसर रोग का क्षेत्र भी बढ़ता गया। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय की इकाई फूड टैस्टिंग लैबोरेट्री एवं क्वालिटी कंट्रोल विभाग व खाद्य रिसर्च सैंटर राजस्थान की एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार हमारे खाद्य पदार्थों, दूध, फल व सब्जियों में 6 से 10 प्रतिशत तक कीटनाशक दवाओं के तत्व पाए गए हैं। मां के दूध में भी 5 से 8 प्रतिशत तक इन दवाओं की मात्रा आंकी गई है जो शिशुओं व बच्चों की ग्रोथ के लिए अत्यंत हानिकारक है। एग्रोमैडिसन जर्नल द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार कीटनाशक दवाओं के छिड़काव वाले क्षेत्र में फेफड़ों के कैंसर व बच्चों के कैंसर की संभावना अन्य इलाकों की तुलना में अधिक होती है।

कृषि विशेषज्ञों द्वारा एक सर्वे के आधार पर मिली जानकारी के अनुसार देश के पंजाब राज्य में खेती के लिए प्रति  हैक्टेयर 236 किलो कीटनाशक दवाओं व रासायनिक खादों का इस्तेमाल हो रहा है जोकि अन्य राज्यों की औसत दर 116 किलो प्रति हैक्टेयर की तुलना में बहुत अधिक है।

राष्ट्र संघ की अधिकृत संस्था विश्व स्वास्थ्य संगठन की खोज इकाई व ब्रिटिश कैंसर जर्नल की अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार भारत के कई राज्यों में कृषि क्षेत्र के लिए उपयोग हो रहे पानी में एल्यूमीनियम, मैगनीज, बेरियम व आरसेनिक तत्वों का पाया जाना व पंजाब के पानी में यूरेनियम की बड़ी मात्रा में मौजूदगी औरतों के वर्ग में स्तन कैंसर व गर्भाशय के कैंसर का मुख्य कारण हो सकते हैं। इन इलाकों में जिगर व फेफड़ों के कैंसर से पीड़ितों की संख्या भी बढ़ रही है। टाटा मैमोरियल अस्पताल मुम्बई द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार  गर्भाशय के कैंसर का जेनाइटल हाइजीन (जननांगों की स्वच्छता) से सीधा संबंध है। हमारे देश में साफ-सुथरे शौचालय व स्वच्छ पानी का अभाव इस रोग का मूल कारण है। वैसे तो कैंसर शरीर के किसी भी भाग में हो सकता है परंतु भारत में ज्यादातर केस स्तन, गदूद, खुराक नली, सर्वाइकल, गर्भाशय व फेफड़ों के अलावा ब्लड कैंसर व ब्रेन कैंसर के रजिस्टर किए गए हैं। देश के कई राज्यों में तम्बाकू, गुटखा, सिगरेट व बीड़ी के अत्यधिक सेवन से मुंह के कैंसर रोग में दिन-ब-दिन वृद्धि हो रही है।

पंजाब सरकार द्वारा कैंसर पीड़ितों को 1,50,000 रुपए की सहायता राशि उपलब्ध करवाने का प्रावधान है। इस प्रोजैक्ट के चलते केन्द्र सरकार ने राज्य को 81.60 करोड़ की सहायता राशि भेजी थी। 2011-13 में राज्य के स्वास्थ्य विभाग द्वारा 36 निजी अस्पतालों से टाइअप किया गया जिनमें से अनुबंधित 19 अस्पतालों के पास कैंसर विशेषज्ञों व प्रशिक्षित स्टाफ के अलावा ट्रस्टों व इलाज के लिए भी पर्याप्त साधन, उपकरण व यंत्र तक नहीं थे। राज्य के स्वास्थ्य अधिकारियों की मिलीभगत से निजी अस्पतालों की अनियमितताएं सामने आईं व कैंसर रोगियों को मिलने वाली सहायता राशि में से करोड़ों रुपए का बंदरबांट हुआ।

2013 में पंजाब सरकार द्वारा राज्य के कैंसर रोग के सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र मालवा व सरकारी मैडीकल कालेज फरीदकोट में आधुनिक यूनिट बनाने के लिए 300 करोड़ की योजना रखी गई। अमृतसर व पटियाला मैडीकल कालेज में कैंसर के रोगियों के उपचार के लिए करोड़ों रुपए के फंड घोषित किए गए। केन्द्र सरकार द्वारा मुल्लांपुर में 450 करोड़ के अत्याधुनिक कैंसर अस्पताल का नींव पत्थर रखा गया जिसमें पंजाब, हरियाणा, हिमाचल व जम्मू-कश्मीर राज्यों के कैंसर पीड़ितों को अच्छी सेहत सेवाएं मुहैया करवाई जा सकेंगी। केन्द्र के स्वास्थ्य विभाग ने भी सभी सरकारी अस्पतालों में 50 जीवन रक्षक दवाएं उपलब्ध करवाने का दावा किया था जबकि इन अस्पतालों में पिछल 2 सालों से जैनरिक दवाइयां तक उपलब्ध नहीं हैं। हमारे देश में सरकारी प्रोजैक्टों का धीमी गति से विस्तार, लुभावनी घोषणाएं, खोखले वादे व झूठी तसल्लियां सब आम जनता के सवालों के घेरे में है।

हमारे देश के डाक्टरों का कत्र्तव्य है कि वे मरीजों को सस्ता व अच्छा इलाज उपलब्ध करवाएं व अपने दायित्व को गम्भीरता से निभाएं ताकि भविष्य में कैंसर रोगियों व उनके परिजनों को दर-दर न भटकना पड़े और उनको शारीरिक, मानसिक व आर्थिक परेशानियों का शिकार न होना पड़े।

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