‘मजहबी असहिष्णुता’ बारे ओबामा का शगूफा मोदी को चेतावनी

Saturday, Feb 28, 2015 - 03:44 AM (IST)

(हरि जयसिंह) हमारे 68वें गणतंत्र दिवस के मुख्यातिथि अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपनी भारत यात्रा के अंतिम दिन सिरीफोर्ट में एक विशिष्ट जनसभा को संबोधित करते हुए जो शगूफा छोड़ा, उसे भारतीय विपक्षी पार्टियां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए एक चेतावनी समझ रही हैं। जबकि अमरीकी प्रशासन के एक शीर्ष अधिकारी ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा है कि ओबामा के भाषण में इस तरह का कोई मोदी विरोधी आक्षेप नहीं था, बल्कि हमारे दोनों देशों के सांझे हितों व जीवन मूल्यों को रेखांकित किया गया था जो हमारा मार्ग प्रशस्त करते हैं।

यदि बात यहीं पर खत्म हो गई होती तो शायद बहुत बेहतर होता। 5 फरवरी को ओबामा ने एक बार फिर अपना वास्तविक रूप दिखाया और ‘नैशनल प्रेयर ब्रेकफास्ट’ को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘हाल ही के वर्षों दौरान भारत में मजहबी असहिष्णुता की जो घटनाएं हुई हैं, देश को आजाद कराने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को भी उनसे सदमा लगता।’’ इससे विपक्षी नेताओं को एक बार फिर नरेन्द्र मोदी पर हल्ला बोलने का मौका मिल गया और उन्होंने आरोप लगाने शुरू कर दिए कि उनके शासन में मजहबी टकराव बढ़ता जा रहा है।

ओबामा ने हालांकि ‘हाल ही के वर्षों’ का उल्लेख किया था, ‘हाल ही के महीनों’ का नहीं। यानी कि उनका निशाना विशेष रूप से मोदी शासन तक सीमित नहीं था। उनके भाषण में व्यापक विषयों को छुआ गया था, जिसमें ‘‘पाकिस्तान के स्कूल से लेकर पैरिस की गलियों तक उन लोगों द्वारा हिंसा और आतंक फैलाया जा रहा है, जो इस्लाम के नाम पर जेहाद चला रहे हैं, लेकिन वास्तव में इसके साथ द्रोह कर रहे हैं।’’

ओबामा की टिप्पणियों को चाहे किसी भी दृष्टिकोण से देखें, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि हाल ही के दिनों में दिल्ली के 5 गिरजाघरों में शरारती तत्वों द्वारा किए गए कुकृत्यों का अवश्य ही उन्होंने संज्ञान लिया होगा। ये कुकृत्य हम सभी भारतीयों के लिए शर्मनाक हैं। मुझे इस बात से परेशानी है कि पुलिस शरारती तत्वों को काबू करने में असफल क्यों रही। इससे वर्तमान सरकार की गवर्नैंस की गुणवत्ता पर संदेह पैदा होता है।

12वीं शताब्दी के प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान अल-बरूनी ने भारत यात्रा के दौरान आश्चर्य व्यक्त करते हुए लिखा था कि यहां न तो किसी प्रकार की मजहबी असहिष्णुता है और न ही धर्म से संबंधित कोई वाद-विवाद। भारत का सैकुलरवाद सभी मजहबों के प्रति सहिष्णुता का पक्षधर है और यह भारत की हिन्दू मान्यताओं का ही नतीजा है। दुनिया के किसी भी देश ने विभिन्न मजहबों में से उग्मित संस्कृतियों का भारत की तरह आत्मसात नहीं किया। हिन्दू धर्म के उदारवाद की जड़ें अन्य मजहबों के प्रति गहरी समझदारी और सहिष्णुता पर आधारित हैं और यही इसकी शक्ति है। इसका दृष्टिकोण और व्यवहार लचकदार है। यहां तक कि  यह व्यक्ति के विभिन्न विचार रखने के अधिकार को भी स्वीकार करता है, बशर्ते कि इन्हें ताॢकक ढंग से प्रस्तुत किया जाए।

फिर भी यह एक ऐतिहासिक तथ्य है, जिससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि काफी लंबे समय तक हिन्दुओं का दूसरे मजहबों में व्यापक धर्मांतरण किया गया था। प्रसिद्ध इतिहासकार और विद्वान विल ड्यूरां के अनुसार भारतीय उपमहाद्वीप में इस्लामी शासन के दौरान हिन्दुओं के उत्पीडऩ का लंबा इतिहास रहा है। प्रो. के.एस. लाल के आकलन के अनुसार इसी उत्पीडऩ के फलस्वरूप 1000 से 1500 ई. के बीच हिन्दुओं की संख्या में 8 करोड़ की कमी आई। खिलजी, गुलाम, तुगलक एवं लोधी वंश के सुल्तानों के दौर में हिन्दुओं के विरुद्ध हिंसा काफी जोरों पर थी। मुगल शासन के दौरान भी यह ब-दस्तूर जारी रही। ब्रिटिश शासन के दौरान भी इसमें कोई कमी नहीं आई।

जिन कारणों ने इस धार्मिक असहिष्णुता के लंबे इतिहास को जन्म दिया था, आज वे वोट बैंक की राजनीति करने वाली विभिन्न पार्टियों द्वारा खेले जा रहे सैकुलरवाद और साम्प्रदायिकवाद के खेल का आधार बने हुए हैं। जाति, उपजाति और अन्य विभाजनकारी प्रवृत्तियों का हिन्दू धर्म ने बहुत भारी मोल चुकाया है। इन्हीं के कारण दूसरे मजहबों के प्रचारक और पुजारी हमारे लोगों की भावनाओं को भड़का कर उनका दोहन करते रहे हैं। लेकिन दूसरे मजहबों के लोगों को दोष देने से बेहतर क्या यह नहीं कि हम खुद के अंदर झांकें कि हम निचली जातियों के लोगों के साथ किस तरह का व्यवहार करते आ रहे हैं?

यूनेस्को द्वारा हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘इसराईल के अस्तित्व में आने से पूर्व यहूदी मतावलम्बी विश्व के 128 देशों में रहते थे। इनमें से भारत इकलौता देश था, जहां उन पर कोई अत्याचार नहीं हुआ और उन्हें शांति से जीने दिया गया और वे खूब खुशहाल हुए।’’ हिन्दू मान्यताओं के अनुसार मजहबी सहिष्णुता का अर्थ है कि सभी मजहब सहअस्तित्व भरी एकात्मता में रहें। विभिन्न समय पर हिन्दू धर्म में कहीं-कहीं विचलन भी देखने में आई है, लेकिन यह अपवाद मात्र ही है। नियम के रूप में हिन्दू धर्म सैकुलर और सहिष्णु ही है।

ओबामा की टिप्पणियों के उत्तर में मैं उनके विरुद्ध यह आपत्ति उठा सकता हूं कि वे अपने देश में काले लोगों के साथ हो रहे भेदभाव और उत्पीडऩ को क्यों भूल जाते हैं? लेकिन मैं ऐसा नहीं करूंगा क्योंकि मुझे विश्वास है कि अमरीकी लोग अपनी आंतरिक समस्याओं को सुलझाने का सामथ्र्य स्वयं रखते हैं। फिर भी ओबामा को यदि भारत में बढ़ती मजहबी असहिष्णुता के संबंध में कोई चिन्ता थी, तो वह प्रधानमंत्री मोदी के साथ अपनी मीटिंगों में इसका उल्लेख कर सकते थे।

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