महात्मा गांधी व पंडित नेहरू का ऐसा ‘अपमान’ क्यों

Friday, Feb 27, 2015 - 03:02 AM (IST)

(मा. मोहन लाल) देश की दोनों महान विभूतियां। दोनों का अपना-अपना महत्व, अपना-अपना योगदान। पंडित नेहरू ग्रेट, महात्मा गांधी श्रेष्ठ। दोनों भारत की स्वतंत्रता के पुरोधा। देश और समाज को दोनों पर गर्व। पर यह प्रचलन क्यों कि दोनों को बुरा-भला कहो और अपने को बड़ा बना लो। किसी को छोटा कहने से मैं बड़ा कैसे हो जाऊंगा? दूसरे का अनादर कर मैं अभिनंदनीय कैसे बन जाऊंगा? गालियां निकाल कर कुछ क्षण तालियां तो जरूर बजेंगी, पर अन्ततोगत्वा सत्य की विजय होगी। महात्मा-महात्मा कहलाएगा। दुष्ट-दुष्ट ही रहेगा। अन्यथा समाज में विकृतियों को मान्यता मिलेगी।

इस फैशन पर रोक लगे कि पंडित जवाहर लाल अच्छे आदमी नहीं थे और कि महात्मा गांधी के हत्यारे के देश में मंदिर बनें। नई फिलास्फी गढऩे का क्या लाभ? इतिहास के प्रवाह को रोकने में किस का भला? घोड़े को रथ के पीछे बांधने से किस की सिद्धि? सोचो, विचार करो और फिर बात करो।

पंडित जवाहर लाल नेहरू कांग्रेस पार्टी के महान नेता थे। संभव है जनसंघ या भारतीय जनता पार्टी से उनकी विचार धारा न मिलती हो। राजनीतिक मतभेद रहते हैं, रहेंगे भी पर नेहरू की महानता पर आप प्रश्नचिन्ह नहीं लगा सकते। नेहरू अपने आप में एक युग पुरुष थे। स्वतंत्रता-आंदोलन में उनका योगदान सराहनीय था। उन्होंने अपने शाही ठाठ-बाट का त्याग कर ब्रिटिश साम्राज्य से लोहा लिया। यातनाएं सहीं, जेल गए, लाठियां खाईं। उनसे पे्ररणा ले लाखों लोगों ने देश को स्वतंत्र करवाने में अपना योगदान दिया। भारत को 1947 में रक्तरंजित आजादी मिली, देश बंट गया, लाखों-करोड़ों विस्थापित होकर भारत की धरती तक पहुंचे। यह पंडित जवाहर लाल नेहरू ही थे जो इस कठिन परिस्थिति में देश के पहले प्रधानमंत्री बने। 1947 से 1964 तक उन्होंने भारत का दुनिया में नाम पैदा किया। असहाय और दयनीय स्थिति से देश को निकाल कर उसे अपने पैरों पर खड़ा किया। नए भारत के निर्माण के स्वप्नद्रष्टा बने।भारत में औद्योगिक क्रांति के जन्मदाता कहलाए। कर्नलनासिर और मार्शल टीटो को मित्र बनाकर गुटनिरपेक्ष देशों के नेता बने। विश्व राजनीति में पंचशील  की नींवरखी।

पर आज इतने वर्ष बीतने पर यह चर्चा क्यों कि सरदार पटेल नेहरू से महान थे? पटेल पहले प्रधानमंत्री होते तो भारत का नक्शा और होता। पटेल अपनी जगह महान, पंडित नेहरू अपनी जगह महान। दोनों सम्माननीय नेता आज की पीढ़ी की धरोहर हैं। यह आलोचना अर्थहीन है कि नेहरू कश्मीर समस्या को स्थायी बना गए। कश्मीर में जनमत-संग्रह की चर्चा सदा के लिए अपने पीछे छोड़ गए। पता नहीं तब क्या परिस्थितियां रही होंगी? क्या आज के गाली निकालने वाले नेता दिल पर हाथ रख कर कह सकते हैं कि पंडित नेहरू ने जानबूझ कर ऐसा किया? जवाहर लाल नेहरू को ‘साला’ या यह कहना कि वह भले आदमी नहीं थे, राजनीति में ‘पे’ नहीं करता।

दूसरा, राजनीतिक दुखांत महात्मा गांधी पर कालिख पोतना है। महात्मा गांधी ने 1916 से 1948 तक न केवल भारत की राजनीति को प्रभावित किया, बल्कि दुनिया की राजनीति में सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह के नए आयामों को जोड़ा। देश की निर्धनता और असहाय स्थिति को अपनी धोती और लंगोटी का प्रतीक बना कर, इसी ढाल से अंग्रेजों से लड़े। विश्व के महान वैज्ञानिक आइंस्टाइन ने यूं ही नहीं कहा कि ‘‘आने वाली नस्लें मुश्किल से विश्वास करेंगी कि कोई हाड़-मांस से बना एक महात्मा गांधी इस  दुनिया में पैदा हुआ था।’’ संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक आकलन किया और पाया कि पिछले हजार सालों में यदि कोई महान व्यक्ति पैदा हुआ है तो वह है मोहन दास कर्मचंद गांधी। यही वह महात्मा गांधी थे जिन्होंने ‘दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल-साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल।’

एक दूरद्रष्टा, शिक्षाविद् और मानवता की सेवा करने वाले थे महात्मा गांधी। इसी महात्मा गांधी को 30 जनवरी, 1948 को एक प्रार्थना सभा में नाथू राम गोडसे ने अपनी गोली का निशाना बनाया। कारण कोई भी रहे हों। विचारधारा कोई भी रही हो- पर क्या किसी सभ्य समाज में गोली से विचारधाराएं बदली जाएंगी?

यह प्रश्न उन लोगों से उत्तर मांगता है जो इस स्वतंत्र भारत में नाथू राम गोडसे का मंदिर बनाना चाहते हैं। यह प्रश्न उन लोगों से उत्तर मांगने का अधिकारी है जो महात्मा गांधी के हत्यारे को महिमामंडित करना चाहते हैं। यदि मैं स्वयं गांधी-महात्मा के विचारों से सहमत नहीं तो क्या मैं महात्मा गांधी को गोली मार दूं? सभ्य समाज में मुझे अपनी बात कहने का हक है तो उसे अपनी बात कहने का अधिकार। मानो या न मानो, आपकी मर्जी। पर तुम मुझे नहीं मानते- तो लो यह गोली खाओ। यह तो फासीवाद है, हिटलरिज्म है, आतंकवाद है।

मुझे गोडसे के अदालत में दिए गए तर्क संगत बयानों ने प्रभावित किया। गांधी को 53 करोड़ रुपए की भारी राशि पाकिस्तान को देने के आमरण अनशन की धमकी नहीं देनी चाहिए थी। यह सब कहने को ठीक। पर तुम उस व्यक्ति को ही गोली मार दो, यह तो न्यायसंगत नहीं। और आज 70 सालों बाद तुम्हें नाथू राम गोडसे के विचारों को महिमामंडित करने का विचार क्यों आया? अराजकता न फैलाओ। नरेन्द्र मोदी के प्रयत्नों पर पानी मत फेरो। इतिहास को पीछे मत ले जाओ। घोड़े को टांगे के पीछे मत जोतो। सत्य और अहिंसा को महिमामंडित करो। गोली का शृंगार मत करो।

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