दिल्ली के ‘दंगल’ में हरियाणा की ‘साख’ दाव पर

Saturday, Feb 07, 2015 - 02:50 AM (IST)

(राकेश संघी) हरियाणा की साख भी दिल्ली के विधानसभा चुनाव में दाव पर लगी हुई है। देश की राजधानी दिल्ली 3 ओर से हरियाणा से घिरी है। हरियाणा के 4 संसदीय क्षेत्र गुडग़ांव, फरीदाबाद, रोहतक व सोनीपत जहां पूरी तरह दिल्ली से सटे हुए हैं, वहीं करीब आधा हरियाणा भी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के अंतर्गत आता है। हरियाणा के लाखों लोग दिल्ली में बसे हुए हैं व इसके साथ लगते क्षेत्रों के लोगों का रोजाना इधर से उधर आना-जाना लगा रहता है। इन लोगों के साथ ही प्रदेश के कई नेताओं का भी दिल्ली में होने वाले चुनावों पर प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से प्रभाव रहता है।

दिल्ली के चुनावी दंगल में जहां हरियाणा से संबंधित कई नेता अपनी किस्मत आजमाने में लगे हैं, वहीं कई नेताओं ने अपनी पार्टी से संबंधित प्रत्याशियों के लिए काफी चुनाव प्रचार भी किया। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर व उनके कई साथी मंत्रियों, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा व कांग्रेस विधायक दल की नेता किरण चौधरी तथा सांसद दुष्यंत चौटाला ने अपनी-अपनी पार्टी के प्रत्याशियों के लिए दिल्ली में डेरा डाल कर कई जनसभाएं भी कीं। हालांकि हरियाणा में प्रमुख विपक्षी दल इनैलो दिल्ली के 70 में से प्रदेश की सीमा के बिल्कुल साथ लगे 2 विधानसभा क्षेत्रों में ही अपनी किस्मत आजमा रहा है, लेकिन उसने अपनी दिल्ली इकाई के प्रदेशाध्यक्ष भरत सिंह को नजफगढ़ से मैदान में उतार कर अपनी साख दाव पर लगा दी।

आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल भी मूल रूप से हिसार के निकट सिवानी मंडी के रहने वाले हैं व इस पार्टी के कई अन्य प्रत्याशी भी हरियाणा से संबंधित हैं। हरियाणा कांग्रेस विधायक दल की नेता किरण चौधरी ने अपना राजनीतिक जीवन दिल्ली से ही शुरू किया था व वह दिल्ली विधानसभा की उपाध्यक्ष भी रह चुकी हैं। हरियाणा के भाजपा प्रभारी रहे  विजय गोयल से लेकर डा. हर्षवर्धन व जगदीश मुखी तक सभी दिल्ली भाजपा की राजनीति के प्रमुख चेहरे हैं। इसलिए दिल्ली के चुनावी दंगल में हरियाणा के लोगों की व्यापक दिलचस्पी होना स्वाभाविक भी है। इन दिनों हरियाणा सचिवालय में भी अधिकारियों से लेकर कर्मचारियों तक सभी इस चुनाव को लेकर चर्चा में व्यस्त देखे जाते रहे हैं।

दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर जो सर्वेक्षण सामने आए हैं, उनको देखते हुए कांग्रेस की स्थिति में पिछले चुनाव के मुकाबले कोई सुधार होने की संभावना व्यक्त नहीं की जा रही। इस चुनाव में देखने योग्य बात केवल यह होगी कि भाजपा व आम आदमी पार्टी में से सरकार बनाने के लिए बहुमत किसे मिलेगा। हरियाणा में भाजपा पहली बार अपने दम पर सरकार बनाने में सफल रही है, इसलिए भाजपा की साख सबसे अधिक दाव पर है। दिल्ली चुनावी दंगल के परिणाम से यह स्पष्ट होने का अनुमान लगाया जा रहा है कि केंद्र व हरियाणा में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकारों की अब तक की कारगुजारी का लोगों पर कितना प्रभाव पड़ा है?

दल-बदल के माहिर भड़ाना बंधु
हरियाणा में दो गुर्जर नेता दल-बदल में काफी माहिर माने जाते हैं। ये दोनों नेता अवतार सिंह भड़ाना व करतार सिंह भड़ाना सगे भाई हैं और ये दोनों ही नेता विभिन्न पाॢटयों में रह कर अपनी राजनीति कर चुके हैं। इन दोनों में से अवतार सिंह भड़ाना ने दिल्ली विधानसभा चुनाव से 4 दिन पूर्व भाजपा का दामन लिया।

अवतार सिंह भड़ाना ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत बड़े ही रोचक ढंग से की थी। उन्हें पूर्व उपप्रधानमंत्री स्वर्गीय देवी लाल ने हरियाणा के मुख्यमंत्री रहते विधायक न होने के बावजूद अपने मंत्रिमंडल का सदस्य बना दिया था। वह बिना विभाग के ही 6 माह तक मंत्री रहे थे लेकिन कोई भी चुनाव लडऩे से पहले ही वह देवी लाल का साथ छोड़ कर कांग्रेस में शामिल हो गए व फरीदाबाद सीट से सांसद बनने में सफल हो गए। लेकिन अगले चुनाव में हार का सामना करने के पश्चात वह पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चंद्रशेखर की पार्टी में शामिल हो जाने के बावजूद चुनाव जीतने में असफल रहे।

वर्ष 1999 के संसदीय चुनाव में उन्होंने कांग्रेस में वापसी कर उत्तर प्रदेश की मेरठ सीट से चुनाव लड़ कर संसद में पहुंचने में सफलता प्राप्त की। वर्ष 2004 के संसदीय चुनाव में वह दोबारा फरीदाबाद सीट से चुनाव लड़े व लगातार 2 बार विजयी रहे। लेकिन गत संसदीय चुनाव में मिली हार के बाद वह इनैलो में शामिल होकर पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी बन गए। इनैलो को इस बार भी राज्य विधानसभा चुनाव में विशेष सफलता न मिलने पर लगभग 5 माह बाद ही उन्होंने ‘ऐनक’ का दामन छोड़ कर ‘कमल’ को थाम लिया।

अवतार सिंह भड़ाना के भाई करतार सिंह भड़ाना ने बंसी लाल की पार्टी हविपा से राजनीति शुरू की थी। वह उनकी सरकार में मंत्री भी बने। लेकिन उनकी सरकार गिरने के पश्चात वह इनैलो में शामिल हो गए व चौटाला सरकार में भी मंत्री बने। वर्ष 2004 के संसदीय चुनाव से पूर्व वह भाजपा में शामिल होकर किस्मत आजमाने राजस्थान चले गए लेकिन सफलता न मिलने पर वह अजित सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल में चले गए व वर्तमान में उत्तर प्रदेश में विधायक बन गए। इन बंधुओं को माइनिंग किंग के नाम से जाना जाता है।

अवतार सिंह भड़ाना अब बेशक भाजपा में शामिल हो गए लेकिन देखने वाली बात यह होगी कि वह अब किस प्रदेश की राजनीति में सक्रिय रहेंगे। गत संसदीय चुनाव में उन्हें भाजपा के कृष्ण पाल गुर्जर ने भारी मतों के अंतर से पराजित कर केंद्र में राज्य मंत्री बनने में सफलता प्राप्त की थी। इसलिए अभी से यह अनुमान लगाया जा रहा है कि पार्टी अवतार सिंह भड़ाना को उत्तर प्रदेश में सक्रिय करेगी।

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