आज ‘कांग्रेस की सबसे बड़ी दुश्मन’ स्वयं कांग्रेस

Tuesday, Feb 03, 2015 - 05:33 AM (IST)

(पूनम आई. कौशिश) दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए 4 दिन बाकी रह गए हैं और दिल्ली की राजनीति एक युद्ध का अखाड़ा लग रही है जहां पर पार्टियां एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रही हैं तथा एक दूसरे पर उंगलियां उठा रही हैं। भाजपा और आप के बीच हर दिन वाक् युद्ध चल रहा है। किन्तु कांग्रेस को पूर्व केन्द्रीय मंत्री जयंती नटराजन ने पार्टी से त्यागपत्र देकर एक बड़ा झटका दिया है। उन्होंने गांधी खानदान के युवराज राहुल पर आरोप लगाया है कि वह उन्हें बदनाम करने के लिए मीडिया में तरह-तरह की कहानियां गढ़ रहे हैं। आज कांग्रेस की स्थिति बहुत बुरी है। 

स्पष्टत: लगता है कि मां-बेटे सोनिया-राहुल की जोड़ी का पार्टी पर नियंत्रण नहीं रह गया है जिस कारण लोग पार्टी छोड़ रहे हैं, कुशासनहीनता फैल रही है, वरिष्ठ नेताओं में रस्साकशी चल रही है और सभी नेता अलग-अलग दिशाओं में बढ़ रहे हैं। कुछ वरिष्ठ नेताओं को यह भी चिंता है कि अगले 2-3 माह में स्थिति हाथ से निकल सकती है। निजी तौर पर वे यह भी मान रहे हैं कि ऐसे कितने कारनामे ऐसे समय में सामने आएंगे जब पार्टी राजनीतिक और चुनावी संकट का सामना कर रही हो और उसका मुकाबला एक मजबूत भाजपा से है।

धीरे-धीरे कांग्रेस स्वयं को अस्तित्व की लड़ाई के बीच फंसी पा रही है और उसके समक्ष अनेक चुनौतियां हैं। उन चुनौतियों में राहुल गांधी की कार्यशैली और पार्टी में प्रयोग तथा अनिच्छुक नेता के रूप में उनकी छवि प्रमुख है। वस्तुत: आज कांग्रेसी नेता गुपचुप रूप से सोनिया के इरादों और हर कीमत पर अपने बेटे के बचाव की नीति पर प्रश्न उठाने लग गए हैं।

फलत: ऐसी स्थिति बन गई है कि आज यह स्पष्ट नहीं हो रहा है कि कौन नायक है और कौन खलनायक। इस कारण वरिष्ठ नेताओं और राहुल के बिन पेंदे के चाटुकारों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का खेल चल रहा है कि नमो के हिन्दुत्व प्रतीकात्मक और राष्ट्रवादी उत्साह का मुकाबला करने के लिए पार्टी में जमीनी स्तर पर लोगों से जुडऩे की क्षमता नहीं है। ये नेता एक-दूसरे पर अकर्मण्यता और घूसखोरी का आरोप भी लगा रहे हैं।

वस्तुत: आज कांग्रेस व्यक्तिवादी तथा सामंतवादी कार्यशैली और दृष्टिकोण की बंदी बन गई है। ऐसी कांग्रेसी प्रणाली में निचले क्रम के सारे नेता अपने अन्नदाता पर आश्रित हो जाते हैं और उसकी कृपा दृष्टि से जीते हैं। जो अन्नदाता के प्रति निष्ठा दिखाते हैं वही इस नाम निर्देशन की संस्कृति में सफल होते हैं। एक खिन्न नेता के शब्दों में पार्टी में निर्णय लेने की प्रक्रिया बहुत धीमी है। यदि सोनिया जी अपनी यथास्थिति की नीति को जारी रखती हैं तो पार्टी धराशायी हो जाएगी। एक वरिष्ठ नेता व्यंग्यात्मक लहजे में कहते हैं हमारे युवराज बिल्कुल निचले स्तर से पार्टी को बनाना चाहते हैं, किन्तु वह कांग्रेस को कैसे खड़ा करेंगे जब उनके कार्यों की बैलेंस शीट में ही कुछ नहीं है।

कांग्रेस में आज सबसे अप्रिय चीज यह है कि पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र समाप्त होता जा रहा है जिसके कारण पार्टी पूर्णत: कांग्रेस अध्यक्ष की पहल पर निर्भर हो गई है और यदि यह पहल न हो तो पार्टी जड़ बन जाती है। यही नहीं कांग्रेसी नेता एक-दूसरे के विरुद्ध बढ़त बनाना चाहते हैं और हर मुद्दे को विरोध बनाम निष्ठा का प्रश्न बना देते हैं। आज कांग्रेस की सबसे बड़ी दुश्मन स्वयं कांग्रेस ही है। आज पार्टी में आंतरिक मतभेद हैं और यदि यह सिलसिला जारी रहता है तो इसके गंभीर परिणाम होंगे। पार्टी में 2 प्रमुख समस्याएं हैं एक तो नेतृत्वका संकट और दूसरा पार्टी के भीतर लोकतंत्र नहीं है।

पार्टी की सोच आज इतनी वंशवादी बन गई है कि पार्टी में कोई भी इससे परे नहीं सोच सकता है और यह इसलिए भी विडम्बनापूर्ण है कि पार्टी में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। हताश नेता और खिन्न तथा दिशाहीन कार्यकर्त्ता इसका दोष राहुल और उनकी चाटुकार मंडली को देते हैं। यह सच है कि किसी ने भी राहुल का खुलेआम त्यागपत्र नहीं मांगा है किन्तु यदि उनकी यही कार्यशैली जारी रहती है तो पार्टी में तूफान को शांत करना मुश्किल हो जाएगा।

दूसरी ओर राहुल के निष्ठावानों का कहना है, ‘‘एक हाथ से ताली नहीं बजती। जब तक वंशवाद पार्टी नेताओं के अनुकूल था उन्होंने इसका समर्थन किया किन्तु अब वे हमारे उपाध्यक्ष को एक खलनायक के रूप में पेश कर रहे हैं।’’ किन्तु कांग्रेस को इन प्रश्नों का उत्तर ढूंढना होगा कि पार्टी इतनी कमजोर क्यों हुई और पार्टी में नई जान फूंकने के लिए क्या किया जाना चाहिए। हालांकि मां-बेटा दोनों ही पार्टी को मजबूत करने के लिए लम्बा और प्रभावी संघर्ष करने की बात करते हैं। दोनों समस्याओं का निदान करते हैं किन्तु अपने कार्यकर्त्ताओं में नई जान फूंकने के लिए कोई ठोस योजना नहीं बना पाते है।

विशेषकर इसलिए भी कि पूरे देश में कांग्रेस के मतदाताओं की संख्या गिरती जा रही है। पार्टी को अपने संगठन का विस्तार करना होगा। अपने सहयोगियों या विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों में अपना सामाजिक आधार बढ़ाना होगा। उदाहरण के लिए दिल्ली विधानसभा चुनाव में मुकाबला भाजपा और ‘आप’ के बीच है तथा कांग्रेस का कहीं अस्तित्व ही नहीं है। इसके अलावा लगता है सोनिया स्वयं यह निश्चय नहीं कर पा रही हैं कि क्या राहुल पार्टी का नेतृत्व कर सकते हैं। ऐसी खबरें प्राप्त हो रही हैं कि किस प्रकार उन्होंने उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी में सदस्यों की संख्या कम करने के राहुल के प्रस्ताव को अस्वीकार कर 92 सदस्यीय एक कमेटी बनाई।

निजी तौर पर अनेक नेता कहते हैं कि राहुल तक पहुंचना मुश्किल है। वह अपने सहायकों और कम्प्यूटर प्रिंट आऊट्स पर निर्भर रहते हैं। एक अन्य नेता का कहना है हमें गांधी उपनाम से अधिक विश्वसनीय कुछ नहीं लगता है किन्तु हम चाहते हैं कि ठोस कदम उठाए जाएं।

कुल मिलाकर कांग्रेस को आत्मावलोकन करना होगा और पार्टी में आंतरिक विरोधाभासों को दूर करने तथा पार्टी के भीतर सौहार्द बनाने के लिए गंभीरता से आत्ममंथन करना होगा। पार्टी को सोनिया-राहुल से परे सोचकर समस्याओं का समाधान ढूंढना होगा क्योंकि कोई भी नेता चाहे कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो अपरिहार्य नहीं होता है। किन्तु एक मरणासन्न पार्टी जिसमें बड़े-बड़े पुराने दिग्गज नेता हैं, ऐसे में राहुल को कांग्रेस में अपना स्थान बनाने में कुछ समय लगेगा। उनके एक पक्के समर्थक का कहना है कि उन्हें अनिच्छुक नेता के नकारात्मक तमगे से पल्ला झाडऩा होगा।

आज कांग्रेस की इस स्थिति को देखकर कुछ लोग इस प्रतीक्षा में हैं कि पार्टी किस तरह अपनी पुन: खोज करती है और इसे मजबूत कर पुन: एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में उभरती है। लोग इस बारे में विचार कर रहे हैं कि क्या राहुल पार्टी के कारनामों, घोटालों, पार्टी छोड़ गए नेताओं को नजरअंदाज कर पार्टी को एक नई दिशा देंगे तथा पार्टी को मजबूत कर संगठन में सुधार करेंगे।

क्या सोनिया-राहुल पार्टी में बड़ा बदलाव कर पाएंगे? क्या वे आम आदमियों की बढ़ती आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए हकदारी की राजनीति से परे जा पाएंगे? एक युवक के शब्दों में आज की दुनिया में राजनीति वास्तव में एक रॉकेट साइंस है। जो इसे व्यवहार में लाता है वही इसकी बारीकियों और विज्ञान को समझ पाता है। इसके लिए राजनीतिक ए बी सी अर्थात् आक्रामकता, आत्मविश्वास और उत्साह की आवश्यकता है। क्या पार्टी एक नई शुरूआत करने में सक्षम है? इस संबंध में तालमढ़ के शब्द उल्लेखनीय हैं: ‘‘सत्ता उन लोगों को दफन कर देती है जिनके पास यह होती है। राजनीति एक निर्मम और क्षमा न करने वाली दासी है।’’

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