क्या चीन ‘मंदी के दौर’ से उबर पाएगा

Tuesday, Feb 03, 2015 - 04:20 AM (IST)

(याओ यांग) दावोस में 2015 विश्व आर्थिक मंच की बैठक में चीनी प्रधानमंत्री ली केकियांग ने स्वीकार किया कि चीनी अर्थव्यवस्था को कड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। 2014 में इसके सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) की विकास दर 7.4 प्रतिशत थी जो 1990 के बाद सबसे नीची दर है, मगर आर्थिक विकास को स्थिरता देने के लिए उन्होंने दावा किया कि चीन एक अत्यंत सक्रिय वित्तीय नीति तथाएक विवेकशील मौद्रिक नीति पर चलता रहेगा।

चीन में वर्तमान आर्थिक मंदी नीतियों के कारण है। गत 2 वर्षों के दौरान सरकार ने वित्तीय तथा मौद्रिक नीतियों पर इस आशा से शिकंजा कसा कि 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के विपरीत प्रभावों को समाप्त किया जा सकेगा। चीन का उत्साह पैकेज विश्व का अब तक का सबसे बड़ा तथा अत्यंत प्रभावशाली रूप से लागू किया गया था। इसने चीन में विकास को स्थिरता दी और वैश्विक स्तर पर आर्थिक संकुचन को नर्म किया मगर इसके चलते चीनी अर्थव्यवस्था में कुछ गम्भीर समस्याएं रह गईं।

सबसे महत्वपूर्ण, देश की अर्थव्यवस्था अत्यंत उत्तोलित बन गई है। आवासीय कीमतें आसमान तक जा पहुंचीं, रीयल एस्टेट डिवैल्पर्स ने अंधाधुंध ऋण लिए तथा स्थानीय सरकारें अत्यंत कर्जों में दब गईं। परिणामस्वरूप ब्रॉड मनी (एम.टी.) में तेजी से वृद्धि हुई तथा यह अब चीन की जी.डी.पी. से दोगुना अधिक है, जो विश्व में सर्वाधिक स्तरों में से एक है।

धन की इस बाढ़ ने ली तथा राष्ट्रपति शी जिनपिंग के लिए खतरे की घंटी बजा दी जब उन्होंने 2013 के शुरू में कार्यभार सम्भाला। सरकार ने तब से धन की आपूर्ति में वृद्धि पर अंकुश लगा दिया और स्थानीय सरकारों की उधारी पर सीमा लागू करनी शुरू कर दी। इससे मौद्रिक फैलाव में कमी आई है। बजट में स्थानीय सरकारों को सरकारी बांड जारी करने की आज्ञा दी गई है और वाणिज्यिक बैंकों से उनकी उधारी पर करीब से नजर रखी जा रही है।

इन नीतियों ने पूंजीगत लागत बढ़ा दी है और विशेषकर मुद्रा को कस दिया है जिसकी बड़ी कीमत स्थानीय सरकारों तथा रीयल एस्टेट डिवैल्पर्स को चुकानी पड़ी है। इसका कारण यह है कि अपने पूरे हो रहे ऋणों को चुकाने के लिए नया धन उधार लेने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है, ब्याज दरें ऊंची हो गई हैं तथा वास्तविक अर्थव्यवस्थामें से व्यवसाय एक तरह से बाहर हो गएहैंजिस कारण विकास पर और अंकुश लग गयाहै।

निश्चित तौर पर वैश्विक स्तर पर अपस्फीति (मंदी) का दबाव और भी अधिक जल्दी आ जाता यदि चीन ने 2008 में द्विवार्षिक उत्साह योजना लागू नहीं की होती जिसने निवेश मांग को बढ़ावा दिया और वैश्विक स्तर पर वस्तुओं की कीमतों में गिरावट को टालदिया। अब जबकि गिरावट आ गई है, घरेलू स्तर पर मुद्रा की कमी एक वास्तविक खतरा बन गई है विशेषकर घरेलू वित्तीय विस्तार की धीमी गति को देखते हुए।

एशियाई वित्तीय संकट का मुख्य सबक यह है कि सुधार के रास्ते में अंतिम खतरा अपस्फीति है क्योंकि 1997 का संकट पूर्वी एशिया तक सीमित था, चीन विश्व व्यापार संगठन में शामिल होने के बाद अपस्फीति से बचने में सफल रहा है। मगर आज की स्थिति अलग है। सारा विश्व अपस्फीतिक ताकतों की जकड़ में है। यदि चीन इस भंवर में दाखिल होता है तो इसके व्यापारिक सांझेदार इस बार इसे बाहर निकालने में सक्षम नहीं होंगे इसलिए चीन सरकार के सामने मुख्य प्रश्र यह है कि क्या देश अपने बूते पर यह कर पाएगा?

चीन विश्व का सबसे बड़ा व्यापारिक देश है जिस कारण चीनी नेताओं को वैश्विक अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य की बड़ी जिम्मेदारी निभानी है। उनके अपस्फीति विरोधी प्रयास न केवल चीन बल्कि बाकी के विश्व को भी मदद करेंगे। (मिं.)

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