‘श्रेष्ठ नागरिक’ बनने के लिए दुर्घटनाग्रस्त लोगों की सहायता करें

Saturday, Jan 31, 2015 - 05:22 AM (IST)

(पूरन चंद सरीन) अक्सर जब कोई दुर्घटना होने पर, चाहे अपने साथ हो या किसी दूसरे के साथ, स्वाभाविक रूप से व्यक्ति घबरा जाता है, चेतना शून्य होने लगता है और यह सोचने-समझने की काबिलियत खोने लगता है कि क्या करे, क्या न करे।

हमारी शारीरिक और मानसिक संरचना इस प्रकार की है कि किसी भी आघात को सहा जा सकता है बशर्ते कि हम तन और मन का संतुलन बनाए रखें पर यह कहना जितना आसान है, उतना ही मुश्किल भी है।

जब चारों ओर अंधेरा छाता हुआ लगे, जिन्दगी बस खत्म होने ही वाली लगे और सामने साक्षात यमराज दिखाई देने लगे, मानो प्राण लेने ही वाले हैं, लगता है कि वक्त यहीं ठहर गया है, सब कुछ समाप्त होने ही वाला है।

यह स्थिति कोई आश्चर्य या अजूबा नहीं है बल्कि रोजमर्रा की हकीकत है। अगर उपदेश की बात करें तो गीता में कहा ही गया है कि मृत्यु और कुछ नहीं, बस आत्मा शरीर रूपी अपना चोला बदलती है और मनुष्य को उसके कर्मों के अनुसार नया चोला मिल जाता है। कहने को यह भी बहुत आसान है लेकिन आत्मा के दर्शन और चोला बदलने की साक्षात घटना अब तक तो शायद किसी ने देखी न हो।

खैर, हम आज बात कर रहे हैं कि अगर अपने साथ कोई हादसा हो जाए तो क्या करें और यदि हमारे सामने कोई दुर्घटना हो जाए तो क्या करें।

क्या कर सकते हैं
इस विषय पर चर्चा करना इसलिए जरूरी लगा क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे निर्देश जारी किए हैं जो न केवल मानवीयता से ओत-प्रोत हैं बल्कि हमें अपनी और दूसरों की जिन्दगी की तरफ देखने की एक नई दृष्टि भी प्रदान करते हैं।

अक्सर होता यह है कि जब हमारे सामने कोई एक्सीडैंट होता है, जैसे कि गाडिय़ों का टकराना, किसी गाड़ी का टक्कर मारकर तेजी से निकल जाना या ट्रेन से टकराकर मौत के मुंह में चले जाना, छत से गिरना या किसी झगड़े, मारपीट या कलह में एक-दूसरे को घायल कर देना; तो वहां आमतौर पर आसपास के लोग, पड़ोसी, राह चलते व्यक्ति या उस घटना के प्रत्यक्षदर्शी दो तरह की प्रतिक्रियाएं करते हैं: या तो घायल और दम तोड़ते व्यक्ति की मदद की जाए या फिर वहां से ‘मुझे क्या, मेरा कोई थोड़े ही लगता है या बेकार में पुलिस, अदालत, अस्पताल के फेर में न पड़ जाऊं।’

माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अब इस बारे में दिशा-निर्देश जारी कर दिए हैं जो प्रत्येक नागरिक के लिए जानने जरूरी हैं। इन निर्देशों के अनुसार यदि आप किसी दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की मदद करते हैं, उसे अस्पताल पहुंचाते हैं, उसके इलाज का इंतजाम करते हैं तो आप बिल्कुल निश्चिंत होकर ऐसा कर सकते हैं क्योंकि अब न तो पुलिस आपसे किसी तरह की व्यक्तिगत पूछताछ कर सकती है, न ही डाक्टर या अस्पताल आपकी मदद पाए व्यक्ति का इलाज करने से इंकार कर सकता है।

आप पर किसी तरह का कोई दबाव नहीं डाला जा सकता जैसे कि अस्पताल में दाखिले या इलाज की रकम कौन देगा, जब तक दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के घरवाले न आ जाएं आपको वहां रुकना ही होगा या मैडीको लीगल केस बनाने के लिए आपको गवाही देनी होगी या फिर आपका इम्प्लायर किसी की मदद करने की वजह से काम पर पहुंचने में देरी होने से तनख्वाह काट ले।

मददगार बनिए
अब इन सब से मुक्त रह कर कोई भी व्यक्ति जिसके सामने कोई हादसा हुआ हो वह घायल की हर संभव सहायता कर सकता है, इसके लिए उसकी किसी भी स्तर पर कोई जवाबदेही नहीं होगी बल्कि यदि डाक्टर या अस्पताल पैसे मांगे तो सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का हवाला दिया जा सकता है क्योंकि अब अस्पताल द्वारा ऐसा करने पर उसका लाइसैंस तक कैंसिल हो सकता है। यदि पुलिस अपना कर्तव्य नहीं निभाती, जैसे कि घायल की मदद न करे या मददगार की ही पूछताछ करने लगे तो वह भी दिशा-निर्देशों का उल्लंघन होगा।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों से सबसे बड़ा फायदा यह हुआ है कि अब कोई भी किसी की मदद करने में संकोच नहीं करेगा, बिना किसी आशंका के मददगार बनकर दूसरों की जान बचाने में अपना योगदान कर सकेगा। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे व्यक्ति को ‘गुड समारिटन’ कहा है जिसे हम श्रेष्ठ नागरिक कह सकते हैं।

यह निर्देश नागरिक का श्रेष्ठ बनने के लिए एक तरह का प्रोत्साहन है, इस सोच को पुख्ता करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है कि यदि आज मैं किसी अंजान मुसीबतजदा की मदद करता हूं तो कल यदि मेरे स्वयं के साथ कोई हादसा होता है तो न जाने कितने हाथ मेरी मदद के लिए आगे आ जाएंगे।

तो अब कुछ ऐसी चीजों का जिक्र करते हैं जो अपने साथ या किसी अंजान व्यक्ति के साथ दुर्घटना या हादसा होने पर की जा सकती हैं।

स्वयं दुर्घटनाग्रस्त होने पर
1. स्थिति का जायजा लें, जहां तक हो सके बेहोशी की हालत से बचें।
2. दुर्घटना स्थल से दूर किसी सुरक्षित जगह जाने की कोशिश करें।
3. जितना हो सके खून बहना रोकने की कोशिश करें, खून बह रहे स्थान पर पट्टी बांधने की कोशिश करें क्योंकि मृत्यु का सबसे बड़ा कारण शरीर से खून का बहना है।
4. अगर कोई अंग टूट कर अलग हो गया है तो उसे समेटने की कोशिश करें और मदद के लिए शोर मचाएं।

मददगार के लिए
1. एम्बुलैंस बुलाएं, पुलिस को सूचित करें (100), नजदीकी अस्पताल ले जाएं, एमरजैंसी हैल्पलाइन नम्बर मिलाएं।
2. घायल की हालत का जायजा लें, ध्यान रखें कि गर्दन लटकने न पाए।
3. कोई अंग टूट गया है, कट कर अलग हो गया है, उसे संभालें, पॉलीथिन थैली में रखें, डाक्टर तक पहुंचाएं।
4. दुर्घटनाग्रस्त के मोबाइल या जेब से उसकी पहचान खोजें।
यदि आज आपने किसी की मदद नहीं की तो कल आपके साथ ऐसा हादसा होने पर कोई आपकी मदद नहीं करेगा। इसलिए मददगार के रूप में श्रेष्ठ नागरिक बनें। सुप्रीमकोर्ट के दिशा-निर्देश आपके साथ हैं।

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