‘नशामुक्ति’ के लिए सभी संस्थाएं आगे आएं

punjabkesari.in Thursday, Jan 29, 2015 - 02:26 AM (IST)

(जत्थे. सेवा सिंह सेखवां): पंजाब और पंजाबियों को नशीले पदार्थों के सेवन के लिए देश भर में बदनाम करने और इसका सम्पूर्ण दोष अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रही शिरोमणि अकाली दल पर थोपने का गुमराहपूर्ण प्रचार हो रहा है। यहां तक कि भाजपा नेता और देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी इसी प्रचार से गुमराह होकर पंजाब  पर उंगली उठाई है।  

नशेखोरी की समस्या एक अति संवेदनशील मुद्दा है। इसका गंभीरता से विशेषण करने की जरूरत है। मेरा यह मानना है कि इस मामले में पंजाब, पंजाबियों और शिरोमणि अकाली दल  को बदनाम करने की सोची-समझी और सुनियोजित एवं घटिया चाल राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक और संस्थागत स्तर पर चली जा रही है। इसमें विभिन्न राजनीतिक पार्टियां, धार्मिक, सामाजिक व साम्प्रदायिक संगठन संलिप्त हैं। 
 
वास्तविकता यह है कि नशीले पदार्थों का व्यापार वैश्विक स्तर पर हो रहा है और इसमें स्थानीय से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक अति आधुनिक तकनीकें प्रयुक्त हो रही हैं। यह कारोबार न केवल पूरी तरह संगठित है, बल्कि आधुनिक हथियारों से भी लैस है। इसमें राजनीतिक अपराधी, माफिया नैटवर्क, अन्तर्राष्ट्रीय ट्रांजिट प्रणालियां अनेक ढंगों से और अनेक स्तरों पर संलिप्त हैं। 
 
मैक्सिको, ब्राजील, भारत, चीन, अमरीका, रूस, यूरोप, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया, माली इत्यादि देशों की सीमाओं और अंदरूनी केन्द्रों पर यह कारोबार प्रभावशाली ढंग से पैर जमाए हुए है। विभिन्न देशों की जेलों में इसके घातक अड्डे बने हुए हैं। पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी व बिचौलिए इस तंत्र में संलिप्त हैं। 
 
कभी न सोने वाले अमरीका के शहर न्यूयार्क में स्मैक की पुडिय़ा 6 से 10 डालर के बीच बिकती है। अमरीका प्रतिवर्ष नशीले पदार्थों की रोकथाम के लिए लगभग 80 बिलियन डालर की भारी राशि खर्च करता है। इसका पड़ोसी देश मैक्सिको विश्व भर के नशीले पदार्थों और हत्यारे गिरोहों का सबसे बड़ा गढ़ है और वे बहुत धड़ल्ले से अपना कारोबार चला रहे हैं। 
 
भारत का कौन सा राज्य है, जो नशीले पदार्थों से मुक्त है? दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई, कोलकाता, जयपुर, अहमदाबाद, बेंगलूर, हैदराबाद, गोवा इत्यादि शहर नशीले पदार्थों के गढ़ हैं। ‘रेव पार्टियों’ में हर रोज हजारों युवक-युवतियां नशीले पदार्थों के सेवन से लोट-पोट होते हैं। भाजपा के प्रसिद्ध दिवंगत महासचिव प्रमोद महाजन के बेटे द्वारा नशीले पदार्थ प्रयुक्त किए जाने के बारे में कौन नहीं जानता? 
 
शिरोमणि अकाली दल राजनीति और धर्म के सुमेल में विश्वास रखता आया है। इसका मानना है कि ऊंची धार्मिक मान्यताएं ही राजनीति पर अंकुश लगा सकती हैं। अकाली नेता धार्मिक पहले और राजनीतिक बाद में होते हैं। ‘सिखों की पार्लियामैंट’ के रूप में विख्यात शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी  विशुद्ध धार्मिक उच्च जीवन मूल्यों पर पहरा देते हुए सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध सिखों और पंजाबी समाज को जागृत करती आई है। 
 
अकाली नेता हर अमावस्या और संक्रांति या अन्य धार्मिक या सामाजिक पर्वों एवं हर प्रकार के धार्मिक मंचों पर गुरबाणी की तुकों और कथाओं का हवाला देकर संगतों को नशीले पदार्थों, गंदी आदतों और हिंसा से दूर रहने की शिक्षा देते हैं। 
 
वर्तमान अकाली नेता धर्म के मामले में कोरे हैं। वे शिरोमणि अकाली दल के गौरवशाली और कुर्बानियों भरे, राष्ट्रवादी तथा सरबत के भले वाले चरित्र से परिचित नहीं। आज प्रकाश सिंह बादल, सुखदेव सिंह ढींडसा, रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा और तोता सिंह जैसे गिने-चुने नेता ही हैं, जो शिरोमणि अकाली दल के सिद्धांतों के प्रति समर्मित हैं और पंजाब के विरुद्ध हर रोज हो रही नई-नई साजिशों से चिंतित हैं। इन लोगों को ही गरिमापूर्ण अकाली संस्कृति को उजागर करते हुए नशेखोरी और सामाजिक कुरीतियों से पंजाब को मुक्त कराना होगा। 
 
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी  के सदस्य अब राजनीति अधिक करते हैं और धर्म प्रचार, सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध जागृति पैदा करने, युवकों को सिख पंथ और श्रम संस्कृति के साथ जोडऩे के काम से विमुख हो चुके हैं। आजकल शिरोमणि कमेटी अमृतपान करने वालों के आंकड़े तो जारी करती है लेकिन नशा छोडऩे वालों के नहीं। 
 
कांग्रेस पार्टी और पंजाब व केन्द्र की इसकी सरकारें सदैव अपने आकाओं के आदेशों पर पंजाब के साथ द्रोह करती रही हैं। इसी पार्टी की सरकारों ने पंजाब को आर्थिक तौर पर बर्बाद किया और इसके युवकों को पथभ्रष्ट किया है। 
 
भारतीय जनता पार्टी और आर.एस.एस. ने पंजाब में सामाजिक कुरीतियों और नशीले पदार्थों तथा साम्प्रदायिक मानसिकता के विरुद्ध कोई आंदोलन नहीं चलाया। इनकी वर्तमान नशा विरोधी रैलियां केवल पार्टी सदस्यता बढ़ाने के अलावा और कुछ नहीं है। आम आदमी पार्टी भी केवल सत्ता हासिल करने को ही लक्ष्य बनाए हुए है। यह भी सामाजिक कुरीतियों और नशेखोरी के मामले में पंजाब को बदनाम करने की साजिशों के विरुद्ध कुछ नहीं कर रही। 
 
पंजाब में अनेक धार्मिक सम्प्रदायों के बड़े-बड़े डेरे हैं। पंजाब के 13000 गांवों में 52000 से अधिक छोटे-बड़े बाबा और संत मौजूद हैं। ये लोग युवकों और आम लोगों को नशीले पदार्थों तथा सामाजिक कुरीतियों का परित्याग करने का उपदेश केवल आडम्बर के रूप में ही करते हैं। इनके द्वारा संचालित नशा मुक्ति केन्द्र वास्तव में ‘नशा लगाऊ केन्द्र’ सिद्ध हो रहे हैं। 
 
पंजाब में नशीले पदार्थों से संबंधित सुनियोजित साजिश को असफल बनाने के लिए सभी राजनीतिक पार्टियों, धार्मिक संगठनों, सम्प्रदायों, गैर सरकारी संस्थाओं को आपसी गिले-शिकवे भुलाकर नशीले पदार्थों के विरुद्ध जागरूकता आंदोलन शुरू करना चाहिए। सामाजिक सम्मेलनों, सैमीनारों, नाटकों, मेलों के साथ-साथ मीडिया में भी जोरदार प्रचार अभियान चलाया जाना चाहिए। लोगों को मानसिक तौर पर नशेखोरी के विरुद्ध तैयार करना होगा और उन्हें बताना होगा कि नशा कभी अकेला नहीं आता। इसके साथ गरीबी, बीमारी, अपराध, यौनाचार और आखिर मौत भी आती है। 
 

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