महाराष्ट्र में राज्यपाल की ‘मिलीभगत’ से ‘अवैध सरकार’ अस्तित्व में आई

Thursday, Jan 22, 2015 - 03:38 AM (IST)

(पी.बी. सावंत) महाराष्ट्र विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी बेशक अल्पमत में थी, तो भी अन्य किसी भी पार्टी की तुलना में इसकी विधायक संख्या अधिक होने के कारण राज्यपाल ने इस शर्त पर इसे सरकार बनाने का न्यौता दिया कि वह 15 दिन के अंदर-अंदर सदन में अपना बहुमत सिद्ध करेगी। पार्टी कानून सम्मत ढंग से ऐसा सिद्ध करने में तब असफल रही, जब 12 नवम्बर 2014 को इसने ऐसा प्रयास किया। ऐसे में राज्यपाल को संसदीय सरकार की कैबिनेट प्रणाली की सुस्थापित मर्यादाओं का अनुसरण करते हुए इस मंत्रिमंडल को भंग कर देना चाहिए था। राज्यपाल ऐसा करने में असफल रहे और पराजित सरकार को 5 दिसम्बर 2014 तक सत्ता में बने रहने की अनुमति दी।

इस दिन तक इसने शिवसेना के साथ गठबंधन बना लिया और सदन में अपना बहुमत सिद्ध कर दिया, जोकि अवैध और संविधान के प्रावधानों के विरुद्ध था। परिणामस्वरूप महाराष्ट्र में राज्यपाल की मिलीभगत से एक अवैध सरकार का शासन अस्तित्व में आ गया। इस सरकार द्वारा किए गए सभी कृत्य और हर प्रकार के खर्च कानून के विरुद्ध, अलोकतांत्रिक और विशिष्ट रूप में संविधान का उल्लंघन करने वाले हैं।

विचारणीय अवधि में मंत्रिमंडल के न केवल सभी कृत्य कानून की नजरों में नाजायज हैं, बल्कि इस अवधि दौरान मंत्रिमंडल द्वारा किए गए खर्च की राशि भी सदस्य मंत्रियों से वसूलीयोग्य है। यह सत्य है कि संविधान में ऐसी स्थिति, जब पराजित या सदन का विश्वास खो चुका मंत्रिमंडल त्यागपत्र नहीं देता अथवा राष्ट्रपति या राज्यपाल (जैसा भी मामला हो) इसे बर्खास्त नहीं करते, से निपटने के लिए विस्तार सहित ऐसा कोई प्रावधान नहीं किया गया। लेकिन ऐसी स्थिति से निपटना इसलिए जरूरी है क्योंकि लोकतांत्रिक सरकार की बहुत अच्छी तरह अवधारणा है कि सदा बहुमत समर्थित सरकार ही शासन करेगी और अल्पमत सरकार शासन नहीं करेगी।

इस प्रकार की स्थिति का इलाज यह है कि संविधान की धारा 356 (1) के अन्तर्गत कार्रवाई करते हुए राष्ट्रपति अपना शासन लागू करें और इसके साथ-साथ राज्यपाल को बर्खास्त करने के लिए धारा 156 (2) का उपयोग करें। जब तक ये संवैधानिक तौर पर मान्य मिसाली कार्रवाइयां नहीं की जातीं, तब तक इस देश में संसदीय लोकतांत्रिक को जिन्दा रखना संभव नहीं होगा। बहुमत खो देने या सदन का विश्वास खो देने पर मंत्रिमंडल द्वारा त्यागपत्र दिया जाना लोकतांत्रिक गवर्नैंस की कैबिनेट प्रणाली की आधारभूत शर्त है। सत्ता हस्तांतरण का यही एकमात्र सभ्य और समतल रास्ता है।

अत: यदि पराजित सरकार कार्यालय खाली नहीं करती तो यह हिंसा को आमंत्रण है। हथियारों का आश्रय लेकर सरकार का परिवर्तन करना लोकतंत्र की मूल भावना के ही विपरीत है। यह लोकतंत्र का निषेध है। इस प्रकार की घटना की अनदेखी यदि एक बार भी की जाती है तो यह परिपाटी ही बन जाएगी और शीघ्र ही संविधान को सेंध लग जाएगी एवं लोकतंत्र एक अघोषित तानाशाही में बदल जाएगा।

सभी लोकतंत्रवादियों के लिए यह जरूरी है कि वे अपनी-अपनी खुशफहमियों से ऊपर उठें और बुनियादी लोकतांत्रिक अनिवार्यताओं में लग रही सेंध का विरोध करें एवं इस देश में लोकतंत्र को बचाएं। महाराष्ट्र में जो हुआ है वह संविधान और कानून को ताक पर रखते हुए सत्ता के निर्लज्ज और मनमाने उपयोग से किसी भी तरह कम नहीं। देश के किसी भी अन्य भाग को कानूनहीनता के शासन के ऐसे दिन न देखने पड़ें, जो 12 नवम्बर से लेकर 5 दिसम्बर 2014 तक महाराष्ट्र राज्य को देखने पड़े हैं।

चूंकि संवैधानिक तौर पर ऐसी गंभीर स्थिति (जहां तक मुझे याद है) देश में पहली बार पैदा हुई है, इसलिए यह जरूरी है कि संवैधानिक कानून का संज्ञान रखने वाले सभी लोग इस समस्या पर चिन्तन-मनन करें तथा इसका हल सुझाएं। (मंदिरा पब्लिकेशन्स)

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