क्या अन्य देशों में महिलाएं भारत से अधिक ‘सुरक्षित’ हैं

Friday, Jun 29, 2018 - 03:48 AM (IST)

गत दिनों दो घटनाओं और संबंधित प्रतिक्रियाओं ने भारत के एक वर्ग की औपनिवेशिक मानसिकता और उनके चयनात्मक दुराग्रह को फिर रेखांकित कर दिया। एक मामला झारखंड से संबंधित रहा, जहां 5 युवतियों से सामूहिक बलात्कार की खबर सामने तो आई, किन्तु वह मीडिया की ‘बिग ब्रेकिंग’ से ओझल रही। तो दूसरी ओर एक विदेशी संस्था ने अपने सर्वे में भारत को महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक देश घोषित कर दिया, जिसे कुछ बड़े भारतीय मीडिया संस्थानों ने जस का तस प्रस्तुत कर दिया। 

नि:संदेह, महिलाओं से संबंधित कोई भी अपराध भारत ही नहीं, शेष विश्व के किसी भी देश या सभ्य समाज के लिए कलंक है। इस बीच एक विदेशी गैर-सरकारी संगठन ‘थॉमसन रॉयटर्स फाऊंडेशन’ ने 26 जून को रिपोर्ट जारी कर भारत को महिलाओं के लिए विश्व का सबसे खतरनाक देश बताया है। दावा किया गया है कि 26 मार्च से 4 मई के कालखंड में 548 विशेषज्ञों की सलाह पर यह रिपोर्ट तैयार की गई है। 7 वर्ष पहले भी इसी एजैंसी ने इसी प्रकार के सर्वे में भारत को चौथे स्थान पर रखा था। 

अमरीका और इंगलैंड में पंजीकृत धर्मार्थ संस्था ‘थॉमसन रॉयटर्स फाऊंडेशन’ की रिपोर्ट में कई त्रुटियां हैं, जिस पर विस्तार से प्रकाश डालने की आवश्यकता थी, किन्तु उन गलतियों पर भारत के राजनीतिक-सामाजिक वर्ग और मीडिया के बड़े हिस्से, विशेषकर अंग्रेजी मीडिया ने आंखें मूंदकर अपनी औपनिवेशिक मानसिकता का परिचय दे दिया। इस जमात के लिए हर गोरी चमड़ी वाले व्यक्ति का एक-एक शब्द, उसका आकलन- मानो ब्रह्म सत्य है, जिसकी न ही पड़ताल की जा सकती है और न ही उसे चुनौती दी जा सकती है। 

क्या 40 दिनों की अवधि में संस्था द्वारा विश्वभर से केवल 548 लोगों से संवाद स्थापित कर, जिसमें अधिकांश लोगों से फोन पर बात की गई थी, उनसे एकत्र जानकारी के आधार पर किसी भी मामले में 130 करोड़ की आबादी वाले भारत का आकलन किया जा सकता है? क्या महिलाएं पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सीरिया, यमन, नाइजीरिया, सऊदी अरब में भारत से कहीं अधिक सुरक्षित हैं? इस संस्था ने अपनी सूची में एकमात्र पश्चिमी देश अमरीका को 10वें स्थान पर रखा है। क्या पश्चिमी देशों में महिलाएं किसी भी एशियाई देश की तुलना में कहीं अधिक सुरक्षित हैं? 

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एन.सी.आर.बी.) के अनुसार देश में 2012-16 के बीच महिलाओं से बलात्कार/यौन उत्पीडऩ के 1.68 लाख मामले सामने आए। विश्व के दूसरे सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश भारत में इस प्रकार के लगभग 33,000 घृणित मामले प्रति वर्ष सामने आते हैं, जिसमें 95 प्रतिशत में आरोपी/दोषी पीड़िता का परिचित निकलता है। पश्चिमी देशों की स्थिति क्या है? इंगलैंड-वेल्स की कुल आबादी लगभग 6 करोड़ है। वहां प्रतिवर्ष महिलाओं से बलात्कार/यौन उत्पीडऩ के 85,000 से अधिक मामले सामने आते हैं। यहां महिला द्वारा पुरुषों से भी बलात्कार के 12,000 मामले प्रतिवर्ष प्रकाश में आते हैं। इंगलैंड-वेल्स की कुल आबादी भारत का 21वां हिस्सा है, वहां बलात्कार के मामले भारत से अढ़ाई गुना अधिक सामने आते हैं। इंगलैंड की राजधानी लंदन में ‘थॉमसन रॉयटर्स फाऊंडेशन’ का मुख्यालय है, उसी देश में हर घंटे 9 लोग बलात्कार के शिकार होते हैं, फिर भी वह संगठन इंगलैंड-वेल्स को महिलाओं के लिए सुरक्षित मानता है।

अमरीका की कुल आबादी 33 करोड़ अर्थात् भारत की कुल जनसंख्या का चौथाई हिस्सा है। यहां महिलाओं से प्रतिवर्ष 2 लाख से अधिक यौन उत्पीडऩ/बलात्कार के मामले प्रकाश में आते हैैं, जिनमें से 50 प्रतिशत मामलों में प्राथमिकी ही दर्ज नहीं होती। उसके बाद भी यहां महिलाएं भारत की तुलना में 3 गुना अधिक बलात्कार की शिकार होती हैं, किन्तु ‘थॉमसन रॉयटर्स फाऊंडेशन’ को भारत महिलाओं के लिए अमरीका से अधिक खतरनाक लगता है। जिस कालखंड में इस सर्वे को संचालित किया गया, उस समय भारत में कठुआ और उन्नाव की निंदनीय बलात्कार की घटनाओं को लेकर सत्तारूढ़ भाजपा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और कई हिन्दूवादी संगठनों को आरोपित कर भारत को विश्व में कलंकित किया जा रहा था, जिसे विदेशी मीडिया भी प्राथमिकता दे रहा था। छद्म-सैकुलरिस्टों सहित ‘भारत तोड़ो गैंग’ को इसके लिए असीम आभार। 

कल्पना कीजिए यदि कोई भारतीय संस्था, 500 लोगों की राय से अमरीका या इंगलैंड के संबंध में इस प्रकार की रिपोर्ट जारी करती, तो क्या उन दोनों देशों की बड़ी-बड़ी मीडिया एजैंसियां उसे वैसी जगह देतीं, जिस प्रकार भारत में एक नामी अंग्रेजी दैनिक और अंग्रेजी न्यूज चैनल ने ब्रितानी संगठन ‘थॉमसन रॉयटर्स फाऊंडेशन’ के सर्वे को दी है? जिस समय इस विदेशी संगठन की रिपोर्ट सार्वजनिक हुई, उससे ठीक एक सप्ताह पहले झारखंड में खूंटी के कोचांग में 5 आदिवासी युवतियों से सामूहिक बलात्कार की नृशंस घटना सामने आई थी। पुलिस ने मामले में ईसाई मिशनरी के पादरी अल्फांसो आइंद और 6 लोगों पर मामला दर्ज किया है, जिनमें पादरी और 3 आरोपी गिरफ्तार किए भी जा चुके हैं। 

19 जून को मानव-तस्करी के विरोध में नुक्कड़-नाटक करने हेतु एक संगठन के 11 लोग कोचांग के आर.सी. चर्च परिसर स्थित आर.सी. मिशन स्कूल पहुंचे थे, जिनमें 5 युवतियां भी शामिल थीं। दोपहर 1 बजे कुछ हथियारबंद लोग वहां पहुंचे और नाटक में शामिल युवतियों और अन्य को जबरन गाड़ी में बैठा लिया। पुलिस के अनुसार, युवतियां स्वयं को बचाने के लिए पादरी अल्फांसो के सामने गिड़गिड़ा रही थीं किन्तु उन्होंने उन युवतियों की मदद न करते हुए सभी को बदमाशों के साथ जाने की सलाह दे डाली और कहा कि वे उन्हें 2 घंटे में छोड़ देंगे जिसके बाद उन लोगों ने जंगल में पांचों युवतियों का सामूहिक बलात्कार और उनके 3 पुरुष सहकर्मियों के साथ अप्राकृतिक दुष्कर्म किया, साथ ही इस नृशंस कृत्य का वीडियो बनाकर उसे सोशल मीडिया पर भी डाल दिया।

आरोप है कि जब बलात्कारी नुक्कड़-नाटककर्मियों को वापस मिशन छोड़ गए तो पादरी अल्फांसो ने उन्हें पुलिस के पास न जाने की सलाह दी और चुप रहने को कहा। घटना के दूसरे दिन 20 जून को पादरी अल्फांसो खूंटी जाकर युवतियों से फिर मिले और उनसे कहा कि यदि वे पुलिस से शिकायत करेंगी तो उनके परिजनों की जान को भी खतरा हो सकता है। क्या पादरी का अपराध से पूर्व और उसके बाद का आचरण इस पूरे प्रकरण में उनके, चर्च और ईसाई मिशनरी के शामिल होने का सूचक नहीं है? गिरफ्तारी के विरोध में खूंटी में भाजपा सांसद करिया मुंडा के घर पर कुछ लोगों ने हमला कर 3 सुरक्षाकर्मियों का अपहरण कर लिया। 

यक्ष प्रश्न है कि क्या कोचांग की घटना को लेकर मीडिया में उस प्रकार की सक्रियता और समाज के भीतर वैसी उग्रता दिखी, जैसी कठुआ मामले में देखी गई थी? क्या यह सत्य नहीं कि इस दोहरे मापदंड का एकमात्र कारण आरोपियों का मजहब है? पादरी अल्फांसो की गिरफ्तारी के बाद झारखंड पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाए जा रहे हैं, जिनमें अधिकांश वही लोग शामिल हैं जिन्होंने कठुआ मामले में पुलिस के आरोप-पत्र में एक-एक शब्द को सच मानकर कई दिनों तक देश-विदेश में भारत और हिन्दुओं को अपमानित किया था। उसी का परिणाम है कि ‘थॉमसन रॉयटर्स फाऊंडेशन’ जैसी विदेशी एजैंसियां अपने गुप्त उद्देश्यों की पूर्ति हेतु इस प्रकार की पक्षपाती रिपोर्ट लेकर आई हैं। वास्तव में, ‘थॉमसन रॉयटर्स फाऊंडेशन’ जैसी संस्थाओं का गुप्त एजैंडा भारत में सक्रिय उन विदेशी शक्तियों का साथ देना होता है, जो यहां की बहुलतावादी, सनातनी और कालजयी संस्कृति और परम्पराओं से घृणा करती हैं।

इस वर्ष ‘ऑक्सफैम’ नामक विदेशी गैर-सरकारी संगठन ने भी भारत को कलंकित करने हेतु आर्थिक असमानता पर रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, उसे भी भारतीय मीडिया के एक वर्ग और कई राजनीतिक दलों ने प्रमुखता दी थी। किन्तु इस संस्था का असली चेहरा तब सामने आ गया, जब अफ्रीका के भूकम्पग्रस्त हैती में उसके अधिकारी आर्थिक सहायता के बदले भूकम्प पीड़ित महिलाओं से यौन-संबंध बनाने में लिप्त पाए गए, जिसकी पुष्टि इंगलैंड में हाऊस ऑफ कॉमन्स की जांच में भी हो चुकी है। आवश्यकता इस बात की है कि भारतीय मीडिया और तथाकथित प्रबुद्ध वर्ग औपनिवेशिक मानसिकता से बाहर निकलें। क्या यह खेद का विषय नहीं है कि स्वतंत्रता के 7 दशक बाद भी भारत का एक वर्ग उसी गुलाम औपनिवेशिक मानसिकता का शिकार है?-बलबीर पुंज

Pardeep

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