क्या हम ‘फूहड़ या अशिष्ट’ लोग हैं

Sunday, Oct 27, 2019 - 01:06 AM (IST)

मैं जानता हूं कि यह उकसाहटपूर्ण प्रश्र है लेकिन मेरा मानना है कि यह ऐसा है जिसे पूछा जाना चाहिए- क्या हम फूहड़ या अशिष्ट लोग हैं? क्या हमें कोई अनुमान नहीं कि क्या बोला जाना चाहिए तथा किसे दबाया और कभी भी अभिव्यक्त नहीं किया जाना चाहिए? इस मूर्खतापूर्ण मान्यता के अंतर्गत कि हमें जो चाहते हैं वह कहने का अधिकार है, हम आमतौर पर मुंह से मूर्खतापूर्ण बातें निकाल देते हैं। 

आप मानें अथवा नहीं, भारतीय जनता पार्टी के दो वरिष्ठ नेताओं ने ऐसे ही अभिजीत बनर्जी का भारत आने पर स्वागत किया। वह अर्थशास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार जीतने के कुछ ही दिनों के भीतर भारत आए लेकिन भाजपा के प्रमुख मंत्री तथा वरिष्ठ अधिकारी न केवल प्रभावहीन थे बल्कि आलोचनात्मक और आमतौर पर मेरी निजी राय में अत्यंत रूखे थे। क्या मैं बढ़ा-चढ़ा कर कह रहा हूं? क्या मैंने अतिशयोक्तिपूर्ण भाषा का इस्तेमाल किया, जहां सम्भवत: नरम वाक्य शैली अधिक उपयुक्त होती? या फिर मैं न्यूनाधिक सटीक हूं? आप खुद निर्णय करें। 

उपेक्षापूर्ण व आलोचनात्मक गोयल
पहले, प्रैस कांफ्रैंस में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल न केवल उपेक्षापूर्ण थे बल्कि अभिजीत बनर्जी के कांग्रेस की न्याय योजना के साथ संबंध को लेकर आलोचनात्मक भी थे। यदि आप भूल गए हों तो यह भारतीय जनसंख्या के सबसे गरीब 20 प्रतिशत लोगों को प्रतिमाह 6000  रुपए देने का वायदा था। गोयल ने शुरूआत की कि ‘अभिजीत बनर्जी ने नोबेल पुरस्कार जीता है। मैं उन्हें बधाई देता हूं।’ उन्होंने आगे कहा कि ‘मगर आप सभी जानते हैं कि उनकी समझ क्या है। उनकी सोच पूरी तरह से वामपंथ की ओर झुकाव वाली है। उन्होंने बहुत प्रभावशाली ढंग से न्याय योजना की प्रशंसा की थी लेकिन भारत के लोगों ने उनकी सोच को पूरी तरह से नकार दिया था।’ 

इस तथ्य के अतिरिक्त, जो सही नहीं भी हो सकता, कम से कम इस कारण से कि यह तर्क प्रधानमंत्री किसान योजना न्याय से भिन्न नहीं है, यह कहना भी एक मूर्खतापूर्ण बात है। भारत के लोगों ने बनर्जी की सोच का समर्थन करने के लिए वोट नहीं दी। वास्तव में यदि वे उनकी सोच से जानकार होते तो इस बात की पूरी सम्भावना थी कि वे इसे गर्मजोशी से अंगीकार कर लेते। यह महज एक फूहड़ तथा अशिष्ट टिप्पणी थी। यह निश्चित तौर पर एक मंत्री के अनुकूल नहीं। दरअसल यह बनर्जी की बजाय गोयल का अधिक खुलासा करती है। मैं तो यह कहूंगा कि यह गोयल को नीचा दिखाती है। 

सिन्हा ने शॄमदा किया
यद्यपि गोयल की मूर्खता को उनकी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव राहुल सिन्हा द्वारा की गई टिप्पणी ने भांप लिया: ‘जिन लोगों की दूसरी पत्नी विदेशी है केवल वही नोबेल हासिल कर रहे हैं। मुझे नहीं पता कि नोबेल हासिल करने के लिए यह एक शर्त है या नहीं।’ मैं एक भी ऐसे व्यक्ति से नहीं मिला, जो यह मानता हो कि कहने के लिए यह एक समझदारीपूर्ण अथवा नैतिक रूप से तर्कपूर्ण बात है। इससे मुझे हर किसी में एक छटपटाहट दिखाई दी। अधिकतर भाजपा समर्थक हैं। वे अन्य हर किसी की तरह चापलूस थे। गोयल ने चाहे अपनी सरकार को परेशानी में डाला हो लेकिन सिन्हा ने निश्चित तौर पर अपनी पार्टी के लिए शॄमदगी की स्थिति पैदा कर दी। फिर मुझे जो चीज विशेष रूप से हैरानीजनक लगी, जो राजनीतिज्ञ बहुत सामान्य करते हैं, यह दावा कि उनकी बात को सही तरह से नहीं लिया गया या अपनी गलती को ढांपने के लिए किसी अन्य संदर्भ का हवाला देते हैं। 

यदि प्रधानमंत्री बीच में दखल नहीं देते तो स्थिति वास्तव में चिंताजनक होती। बनर्जी के दिल्ली में अंतिम दिन नरेन्द्र मोदी ने उनसे मुलाकात की और ऐसा करने के लिए ट्वीट के माध्यम से अपनी खुशी जाहिर की। इससे बनर्जी को कुछ राहत मिली होगी, जिन्होंने तब तक यह कह दिया था कि भाजपा की निजी आलोचना परेशान करने वाली है। मगर इससे गोयल तथा सिन्हा दोषमुक्त नहीं हो जाते। तो क्या अब आप समझ सकते हैं कि मैंने उस तरीके से क्यों शुरूआत की? क्या हम फूहड़ तथा अशिष्ट लोग हैं जो इतना भी नहीं जानते कि क्या कहना है और कब अनपढ़तापूर्ण विचारों को व्यक्त किए बिना छोड़ देना है? या क्या हममें से अधिकतर उन बातों से अचम्भित हैं जो मैंने अभी व्यक्त कीं। हमें यह स्पष्ट करना चाहिए कि ये हमारे मूल्य नहीं हैं और यह व्यवहार स्वीकार्य नहीं है।

वाजपेयी का उदाहरण भुलाया
फिर भी हमेशा ऐसा नहीं होता। अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे जब अमत्र्य सेन, जो अत्यंत कटु आलोचकों में से एक थे, ने 1998 में अर्थशास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार जीता। प्रधानमंत्री ने तुरंत उन्हें भारत रत्न की उपाधि दी तथा जीवन पर्यन्त एयर इंडिया में प्रथम श्रेणी यात्रा करने के लिए नि:शुल्क पास दिया। यह दुखद है कि वाजपेयी के प्रशंसनीय उदाहरण को उन लोगों द्वारा भुला दिया गया जो खुद को उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी समझते हैं। मैं हैरान होता हूं कि वह उनके व्यवहार को लेकर क्या सोचते होंगे?-करण थापर
 

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