अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दूसरा नाम थे ‘कुलदीप नय्यर’

punjabkesari.in Wednesday, Aug 24, 2022 - 05:13 AM (IST)

कुलदीप नय्यर का जन्म 14 अगस्त 1923 के दिन सियालकोट (अब पाकिस्तान) में हुआ था। जैसे-जैसे वह बड़े होते गए वैसे-वैसे भारत का स्वतंत्रता आंदोलन भी तेज होता गया। कुलदीप नय्यर का जन्म उसी सियालकोट में हुआ था जहां के फैज अहमद फैज थे। जवानी के दिनों में इनके ऊपर भगत सिंह का गहरा प्रभाव पड़ा।  बंटवारे के बाद कुलदीप नय्यर पहले अमृतसर, फिर जालन्धर और उसके बाद सदा के लिए दिल्ली आ बसे। मिर्जा गालिब के मोहल्ले बल्लीमारान में उन्होंने शाम को निकलने वाले उर्दू अखबार ‘अंजाम’ से अपनी पत्रकारिता आरम्भ की। वह कहते थे, ‘‘मेरा आगाज ही अंजाम से हुआ है।’’ 

बाद में महान शायर हसरत मोहानी की सलाह पर कि उर्दू का अब भारत में कोई भविष्य नहीं है कुलदीप नय्यर अंग्रेजी पत्रकारिता की ओर मुड़ गए। पढऩे के लिए वह अमरीका गए और फीस जोडऩे के लिए उन्होंने वहां घास भी काटी और भोजन परोसने का काम किया। वी.पी. सिंह ने उन्हें ब्रिटेन में भारत का राजदूत नियुक्त किया था, वहीं इंद्र कुमार गुजराल ने कुलदीप नय्यर को राज्यसभा में भेजा। 

आपातकाल के दिनों में उन्हें गिरफ्तार किया गया। उन्हें कुछ मौकों पर ही अपने पारिवारिक सदस्यों से मुलाकात करने की अनुमति मिलती। आपातकाल के बारे में लगातार लिखने से उनका कद और भी बढ़ गया। कुलदीप नय्यर ने इंदिरा गांधी के सामने झुकना कबूल नहीं किया। आपातकाल के विरोध में जेल जाने के बावजूद उनके इंदिरा गांधी और अन्य कांग्रेसी नेताओं से निजी तौर पर अच्छे रिश्ते थे। 

भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता के प्रति उनके मन में बेहद सम्मान था। भाषा विभेद की सीमाओं से ऊपर उठकर वह सम्पूर्ण भारतीय पत्रकारिता और मीडिया के लिए सोचते और लिखते थे। शुरूआती दिनों में उन्होंने कुछ दिन अखबार भी बेचे थे। महात्मा गांधी की हत्या की रिपोर्टिंग भी उन्होंने की थी। एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था, ‘‘मुझे सबसे ज्यादा संतोष तब मिलता था जब मैं रिपोर्टिंग करता था क्योंकि मैं जो लिखता था उसका असर होता था।’’ खुद इंदिरा गांधी ने स्वीकार किया था कि यह आदमी जो लिखता है उसका असर मेरे और सरकार के कामकाज पर पड़ता है। 

कुलदीप नय्यर ने एक सरकारी अधिकारी से लेकर उच्चायुक्त तक के पद को भी सुशोभित किया। पत्रकारिता उनकी पहली और आखिरी पसंद थी। अभिव्यक्ति की आजादी और लोकतंत्र की मजबूती उनके जीवन का मिशन था। मानहानि विधेयक हो या बिहार प्रैस बिल या फिर पत्रकारिता की आजादी पर कोई हमला, कुलदीप नय्यर ने हमेशा उनका जमकर विरोध किया। कहा जा सकता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दूसरा नाम कुलदीप नय्यर था। उनका निजी तौर पर किसी भी नेता से विरोध नहीं था। एक पत्रकार के नाते उन्होंने जिसके खिलाफ भी लिखा हो लेकिन निजी तौर पर उनके रिश्ते नहीं बिगड़े क्योंकि उनके लेखन में कोई पूर्वाग्रह नहीं होता था। 

भारत के लोकतंत्र में 19 महीने छाई रही अमावस पर रहस्योद्घाटन करने वाले ख्याति प्राप्त लेखक कुलदीप नय्यर ने एमरजैंसी के पीछे की सच्ची कहानी बताई थी। उन्होंने लिखा था कि अपने दौरों और साक्षात्कारों के दौरान मैंने एक बात पर गौर किया है कि चाहे सब कितने ही दब्बू क्यों न रहे हों, कुछ लोगों ने ही निरंकुश शासन को स्वीकार किया था। भारत-पाक दोस्ती के वह अलमबरदार थे। उन्होंने ही हर वर्ष 14 अगस्त को अटारी सरहद पर मोमबत्तियों की रोशनी में भाईचारे के पैगाम की पहल की। 

23 अगस्त 2018 को 95 वर्ष की आयु में कुलदीप नय्यर ने अपनी मृत्यु से पहले एक लेख लिखा जिसमें उन्होंने सरकार की वोट बैंक की राजनीति को लेकर आलोचना की। उन्होंने लिखा कि आपातकाल के दौरान भय और आज्ञाकारिता थी लेकिन स्वीकार्यता नहीं थी। आखिर कौन लोग थे जिन्होंने डराया और सरकार में या और कहीं भी किसी ने भी उनके खिलाफ संघर्ष क्यों नहीं किया?-प्रवीण निर्मोही


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